भीलवाड़ा। बाबासाहेब डॉ. अम्बेडकर की बात करना और उनकी प्रतिमा को स्थापित करने के लिए खड़ा होना एक अम्बेडकरवादी के लिए इतना भारी पड़ गया कि उस पर सरकार और विभाग की नजर टेढ़ी हो गई. नतीजा उस पर मनगढंत आरोप लगाकर पिछले पंद्रह महीनों में उसका 8 ट्रांसफर किया जा चुका है और 15 महीनों से विभाग ने उसकी सैलरी रोक दी है. पीड़ित के साथ उत्पीड़न की यह इंतहा तब है जब न तो उसके ऊपर कोई आपराधिक मुकदमा है और न ही विभागीय शिकायत. मामला विधानसभा तक में उठ चुका है लेकिन उसे अभी तक न्याय नहीं मिला है.
घटना राजस्थान के भीलवाड़ा की है. वाल्मीकि जाति के अशोक कुमार चिन्नाल यहां स्वास्थ विभाग में नौकरी करते हैं. अशोक अम्बेडकरवादी हैं और सामाजिक मंचों पर भी सक्रिय रहते हैं. अशोक के गांव भीलवाड़ा जिले के हलेड़ में एक सरकारी जमीन खाली पड़ी थी. 2013 में अशोक सहित तमाम अम्बेडकरवादी इस पर बाबासाहेब की प्रतिमा स्थापित करना चाहते थे. गांव के सरपंच से NOC मिलने के बाद 25 दिसंबर 2013 को वहां बाबासाहेब की प्रतिमा लगा दी गई. सत्ताधारी दल भाजपा के कार्यकर्ताओं ने इसे अपनी जमीन बताते हुए बाबासाहेब की प्रतिमा को तोड़ दिया, हालांकि अशोक सहित अन्य अम्बेडकरवादियों के विरोध के कारण वह इस पर कब्जा नहीं कर सकें. चूंकि अशोक ज्यादा सक्रिय और मुखर थे सो उनको घेरने की कोशिशें शुरू हो गई. 2015 में उन्हें बाबासाहेब की जयंती के बाद एक मामूली शिकायत पर अशोक को घेरने का मौका मिल गया.
अशोक पर न सिर्फ हमला हुआ, बल्कि उनके विभाग ने भी उन्हें परेशान करने में कोई कसर नहीं छोड़ा. आलम यह हुआ कि किसी खास व्यक्ति के इशारे पर विभाग ने उन्हें लगातार परेशान करना शुरू कर दिया. उनके एक के बाद एक ट्रांसफर किए गए और पिछले कई महीनों से उनकी सैलरी रोक दी गई. अशोक का आरोप है कि उनपर हमले किए गए. एक ट्रक दुर्घटना में अशोक के भाई की मौत हो गई, जबकि अशोक गंभीर रूप से घायल हो गए.
अशोक के पक्ष में राजस्थान में बसपा के विधायकों ने मामला विधानसभा तक में उठाया. झूंझुनू के खेतरी से बसपा विधायक पूरण मल सैनी ने विधानसभा में मामले को उठाते हुए अशोक को फिर से पहले की तरह मुख्यालय पर ट्रांसफऱ करने और उनका वेतन बहाल करने की मांग की. उन्होंने बाबासाहेब की खंडित की गई प्रतिमा को भी ठीक कर फिर से स्थापित करने की मांग की, लेकिन इसके बावजूद भी अशोक की परेशानी कम नहीं हुई है.
अशोक का कहना है कि अगर मैंने कोई गलती की है तो पुलिस मुझ पर एफआईआर दर्ज कर कार्रवाई करे. विभाग मुझे क्यों परेशान कर रहा है और मेरा वेतन क्यों रोक दिया गया है, यह मेरी समझ से परे है. अशोक राजस्थान में न्याय का हर दरवाजा खटखटा चुके हैं, लेकिन उन्हें अब तक न्याय नहीं मिला है. अशोक चिन्नाल के पक्ष में अब अम्बेडकरवादी संगठन एकजुट होने लगे हैं. डॉ. भीमराव अम्बेडकर विकास समिति ने राज्यपाल कल्याण सिंह को पत्र लिखकर अशोक के लिए न्याय मांगा है और न्याय नहीं मिलने की सूरत में बड़े आंदोलन की चेतावनी दी है. लेकिन अम्बेडकरवादी होने और बाबासाहेब अम्बेडकर की प्रतिमा स्थापित करने के कारण अशोक जिस तरह पूरे प्रदेश सरकार की नजरों में चुभ गए हैं वह सरकार की सोच पर सवाल उठाता है.

अशोक दास (अशोक कुमार) दलित-आदिवासी समाज को केंद्र में रखकर पत्रकारिता करने वाले देश के चर्चित पत्रकार हैं। वह ‘दलित दस्तक मीडिया संस्थान’ के संस्थापक और संपादक हैं। उनकी पत्रकारिता को भारत सहित अमेरिका, कनाडा, स्वीडन और दुबई जैसे देशों में सराहा जा चुका है। वह इन देशों की यात्रा भी कर चुके हैं। अशोक दास की पत्रकारिता के बारे में देश-विदेश के तमाम पत्र-पत्रिकाओं ने, जिनमें DW (जर्मनी), The Asahi Shimbun (जापान), The Mainichi Newspaper (जापान), द वीक मैगजीन (भारत) और हिन्दुस्तान टाईम्स (भारत) आदि मीडिया संस्थानों में फीचर प्रकाशित हो चुके हैं। अशोक, दुनिया भर में प्रतिष्ठित अमेरिका के हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में फरवरी, 2020 में व्याख्यान दे चुके हैं। उन्हें खोजी पत्रकारिता के दुनिया के सबसे बड़े संगठन Global Investigation Journalism Network की ओर से 2023 में स्वीडन, गोथनबर्ग मे आयोजिक कांफ्रेंस के लिए फेलोशिप मिल चुकी है।