रांची। भारत में अनुसूचित जनजाति से आने वाले छात्रों के पास आम लोगों जितनी सुविधाएं नहीं होती है. इसके बावजूद भी आदिवासी बच्चों के माता-पिता उन्हें पढ़ाने के लिए स्कूल भेजते हैं. तमाम असुविधाओं के बाद भी अनुसूचित जनजाति से आने वाले छात्र अपनी मेहनत का लोहा मनवा रहे हैं. ये आदिवासी छात्र अपने आप को समाज में मजबूती के साथ स्थापित कर रहे हैं. हाल ही के वर्षों में अनुसूचित जनजाति के लोग छात्रों के शैक्षिक स्तर में बहुत ही सुधार हुआ है.
उच्च एवं तकनीकी शिक्षा सह कौशल विकास की ओर से जारी सरकारी आंकड़े में बताया गया है कि झारखंड में पिछले छह वर्षों के दौरान आदिवासी ग्रेजुएट छात्रों की संख्या में लगभग चार गुना बढ़ोत्तरी हुई है. मैट्रिक व इंटर के साथ-साथ स्नातक स्तर पर भी आदिवासी छात्रों की संख्या में रिकॉर्ड तोड़ बढ़ोत्तरी हुई है. उच्च और उच्चतम शिक्षा के प्रति आदिवासी छात्रों का रूझान तेजी से बढ़ा है.
इस बढ़ोतरी में लड़कों की तुलना में लड़कियों की संख्या अधिक है. साल 2011 में जहां स्नातक एसटी स्नातक करने वाले विद्यार्थियों की संख्या 30,295 थी, वह वर्ष 2016 में बढ़कर 1,13,419 हो गयी. इस दौरान वर्ष 2013 में इस संख्या में सबसे अधिक बढ़ोतरी हुई. राज्य सरकार की ओर से छात्राओं के पठन-पाठन को लेकर जो योजनाएं चलायी जा रही है, उसका असर नामांकन पर दिख रहा है.
राज्य सरकार ने छात्राओं के स्नातकोत्तर तक की पढ़ाई नि:शुल्क की है. इसके अलावा अनुसूचित जनजाति की छात्राओं के लिए छात्रवृत्ति योजनाएं भी चलायी जा रही है. राज्य सरकार ने झारखंड के 203 कस्तूरबा गांधी बालिका आवासीय विद्यालय को प्लस टू तक कर दिया है. इन विद्यालयों में अनुसूचित जनजाति की छात्राओं की संख्या सबसे अधिक है. कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय से इंटर पास छात्राओं के स्नातक में नामांकन के लिए अभियान चलाया जा रहा है.
इंटर कला संकाय में भी अनुसूचित जनजाति के बच्चों का रिजल्ट सबसे बेहतर रहा. वर्ष 2017 इंटर कला की परीक्षा में अनुसूचित जनजाति कोटि के कुल 51,225 परीक्षार्थी परीक्षा में शामिल हुए थे. जिसमें से 37986 परीक्षार्थी सफल रहे. 22,413 छात्र व 28,812 छात्राएं परीक्षा में शामिल हुई थी. छात्रों की सफलता का प्रतिशत 72.12 व छात्राओं का 75.13 फीसदी रहा. परीक्षार्थियों की सफलता का प्रतिशत 74.16 प्रतिशत रहा. अनुसूचित जनजाति के 808 छात्र व 2080 छात्राएं प्रथम श्रेणी से परीक्षा में सफल हुई. जबकि सामान्य वर्ग के 70.33 फीसदी, अनुसूचित जाति के 72.15 फीसदी, अत्यंत पिछड़ा वर्ग 72.16 व अनुसूचित जाति के 67.50 फीसदी परीक्षार्थी सफल रहे.
राज्य की पूर्व मुख्य सचिव व झारखंड एकेडमिक काउंसिल की पूर्व अध्यक्ष लक्ष्मी सिंह का कहना है कि उच्च शिक्षा में राज्य के अनुसूचित जनजाति के बच्चों की संख्या में रिकॉर्ड बढ़ोतरी सकारात्मक संकेत है. यह इस बात का परिचायक है कि लोगों में शिक्षा के प्रति जागरूकता बढ़ी है. अब यह सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि जो छात्र उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं, उन्हें रोजगार उपलब्ध कराये. इसके लिए कॉलेज स्तर पर ही विद्यार्थियों के लिए वोकेशनल ट्रेनिंग की व्यवस्था की जाये, ताकि स्नातक पास करने के साथ ही छात्र को रोजगार मिल सके. कॉलेजों में कैंपस सलेक्शन की व्यवस्था हो.
आदिवासी छात्र ऐसे ही मेहनत करते रहे तो वो बहुत जल्द देश की मुख्यधारा में हो शामिल हो जाएंगे. वे अपने समाज और देश के विकास में अहम भूमिका निभाएंगे.

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