ओडिशा। ओडिशा के पहाड़ों और जंगलों से निकली एक नई रोशनी आज पूरे देश को राह दिखा रही है। यह कहानी है संघर्ष की, जज़्बे की और असंभव को संभव करने की। चम्पा रसपेडा, जो कि दिदायि जनजाति से आती हैं, ने इतिहास रच दिया है। कठिन परिस्थितियों और सीमित संसाधनों के बीच, उन्होंने NEET परीक्षा पास कर अपने समुदाय की पहली छात्रा बनने का गौरव हासिल किया। उनके लिए यह सिर्फ एक व्यक्तिगत जीत नहीं है, बल्कि यह उन हजारों आदिवासी बेटियों के सपनों का भी सच होना है, जिन्हें समाज ने अक्सर हाशिये पर छोड़ दिया।
इसी राह पर चलते हुए, ओडिशा के ही गजपति जिले के एक अनाथ आदिवासी युवक नीरा मलिक ने भी कमाल कर दिखाया। जीवन में अपार संघर्षों और चुनौतियों का सामना करने के बावजूद, उन्होंने हार नहीं मानी और NEET 2025 पास करके MBBS सीट हासिल की। उनका सपना है कि वे डॉक्टर बनकर गरीब और वंचित लोगों की सेवा करें।
इन दोनों की कहानियां इस बात का सबूत हैं कि अगर इच्छाशक्ति प्रबल हो और मेहनत सच्ची, तो कोई बाधा बड़ी नहीं होती। समाज ने चाहे संसाधन न दिए हों, पर इन युवाओं ने अपने संघर्ष और लगन से यह साबित कर दिया कि वंचित समाज के बच्चे भी डॉक्टर बनने का सपना देख सकते हैं और उसे पूरा भी कर सकते हैं।
आज चम्पा और नीरा की यह उपलब्धि न केवल ओडिशा के आदिवासी समाज के लिए, बल्कि पूरे देश के हाशिये पर खड़े लाखों बच्चों के लिए एक संदेश है कि भले ही हमारी स्थिति कैसी भी हो, वह हमारी मंजिल तय नहीं करती, बल्कि तुम्हारा संघर्ष और साहस ही तुम्हारा भविष्य लिखता है।

डॉ. पूजा राय पेशे से शिक्षिका हैं। स्त्री मुद्दों पर लगातार लेखन के जरिय सक्रिय हैं। उनके द्वारा लिखी गई पुस्तक ‘आधी आबादी का दर्द’ खासी लोकप्रिय हुई थी।