जयंती विशेषः ज्योतिबा फुले के जीवन की इन 10 बातों को जानना बेहद जरूरी

देश भर में 11 अप्रैल को राष्ट्रपिता ज्योतिबा फुले की जयंती पूरा बहुजन समाज धूमधाम से मनाता है. ज्योतिबा फुले महान भारतीय विचारक, समाजसेवी, लेखक, दार्शनिक और क्रांतिकारी थे. महिलाओं में शिक्षा के प्रसार और महिला सुधार के लिए उन्होंने अपना पूरा जीवन लगा दिया. बाबासाहेब अम्बेडकर भी ज्योतिबा फुले को अपना गुरू मानते थे. उनकी जयंती के मौके पर हम आपको ज्‍योतिबा फुले के जीवन से जुड़ी उन 10 बातों को बताते हैं, जिसे जानना सबके लिए जरूरी है.

1. ज्‍योतिबा फुले का जन्‍म 11 अप्रैल 1827 को पुणे में हुआ था. वह माली समाज से थे. वह स्त्रियों की दशा सुधारने के पक्षधर थे. साथ ही दलितों के साथ होने वाले भेदभाव के घोर आलोचक थे.

2. ज्योतिबा ने 21 साल की उम्र में अंग्रेजी की सातवीं क्‍लास की पढ़ाई पूरी की. दरअसल उन्होंने अपनी शुरुआती पढ़ाई मराठी में की, लेकिन फिर लोगों द्वारा यह कहने पर की स्कूल जाने से बेटा बेकार हो जाएगा, पिता ने ज्योतिबा को स्कूल से निकाल दिया. बाद में फिर से पढ़ाई की अहमियत समझ में आने पर उन्होंने ज्योतिबा को पढ़ाना शुरू किया.

3. साल 1840 में वे सावित्री बाई के साथ शादी के बंधन में बंध गए. ज्योतिबा स्त्री और पुरुष दोनों को समान मानते थे. इसलिए उन्होंने स्त्रियों की दशा सुधारने और समाज में उन्‍हें पहचान दिलाने के लिए 1854 में एक स्‍कूल खोला. यह देश का पहला ऐसा स्‍कूल था जिसे लड़कियों के लिए खोला गया था.

4. समाजसेवा के काम में सक्रिय होने के बाद ज्योतिबा फुले ने महिला शिक्षा के लिए काम करना शुरू हुआ. महिला शिक्षा और दलितों के पक्ष में बोलने के कारण उनके पिता ने उन्हें घर से निकाल दिया था. तो वहीं ज्योतिबा दलितों के साथ भेदभाव के घोर विरोधी थे. उन्होंने उनके लिए अपने घर के पानी की टंकी भी खोल दी. नतीजतन उन्‍हें जाति से बहिष्‍कृत कर दिया गया.

5. समाज के निम्‍न तबकों, पिछड़ों और दलितों को न्‍याय दिलाने के उद्देश्य से ज्‍योतिबा फुले ने ‘सत्‍यशोधक समाज’ की स्‍थापना की. सत्‍यशोधक समाज के संघर्ष की बदौलत ही सरकार ने एग्रीकल्‍चर एक्‍ट पास किया.

6. ज्योतिबा फुले ने उन्‍होंने विधवा विवाह का समर्थन और बाल विवाह का जमकर विरोध किया. उन्होंने बिना ब्राह्मण शादी को बॉम्‍बे हाईकोर्ट से मान्‍यता दिलवाई.

7. साल 1873 में ज्‍योतिबा फुले की किताब ‘गुलामगिरी’ प्रकाशित हुई. यह पुस्तक आज भी बहुजन आंदोलन की प्रमुख किताबों में शामिल है. माना जाता है कि इस पुस्तक में बताए गए विचारों के आधार पर दक्ष‍िण भारत में कई आंदोलन चले. ‘गुलामगिरी’ के अलावा ज्योतिबा फुले ने ‘तृतीय रत्‍न’, ‘छत्रपति शिवाजी’, ‘राजा भोसले का पखड़ा’, ‘किसान का कोड़ा’ और ‘अछूतों की कैफियत’ जैसी कई किताबें लिखीं.

8. विधवा महिलाओं के कल्याण के लिए ज्योतिबा ने पत्नी सावित्रीबाई के साथ मिलकर काफी काम किया. उस दौर में गर्भवती विधवा स्त्रियों के सामने जान दे देने के अलावा और कोई उपाय नहीं था. फुले ने उनके लिए भी अलग से रहने की व्यवस्था की.

9. उन्होंने एक गर्भवती विधवा ब्राह्ण स्त्री के गर्भ से जन्मे बच्चे यशवंत को गोद लिया और उसे पढ़ा लिखाकर डॉक्टर बनाया. बाद में फुले दंपत्ति ने यशवंत को अपना उत्तराधिकारी बनाया.

10. उनकी समाज सेवा से प्रभावित होकर 1888 में मुंबई में एक सभा में उन्‍हें ‘महात्‍मा’ की उपाधि दी गई. महात्‍मा ज्‍योतिबा फुले ने 63 साल की उम्र में 28 नवंबर 1890 को पुणे में अपने प्राण त्‍याग दिए.

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