भारत के सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस बोबडे की न्यायिक सूझ बूझ और टिप्पणियों पर गंभीर सवाल उठाए जा रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के ठीक पहले भारत की 4000 महिला अधिकार कार्यकर्ताओं और समूहों ने जस्टिस बोबड़े को एक खुला पत्र लिखा है। इस पत्र में मांग की गई है कि जस्टिस बोबड़े अदालत में बोले गए अपने शब्द वापस लें, भारत की महिलाओं से माफी मांगें और इस्तीफा दें।
दरअसल, जस्टिस बोबड़े ने सुप्रीम कोर्ट में दो विभिन्न मामलों की सुनवाई करते हुए कथित रूप से विवादित टिप्पणियाँ की हैं जिन्हें महिलाओं के खिलाफ माना जा रहा है। उन्होंने बलात्कार के केस में सुनवाई करते हुए बलात्कारी से सवाल किया कि क्या आप पीड़िता से विवाह करना चाहेंगे? जस्टिस बोबड़े ने अपनी टिप्पणी में कहा कि “अगर आप पीड़िता से शादी करना चाहते हैं, तो हम आपकी मदद कर सकते हैं। अगर नहीं तो आपकी नौकरी चली जाएगी और आप जेल जाएंगे। आपने लड़की को बहकाया, उसके साथ बलात्कार किया। हम आपको शादी के लिए मजबूर नहीं कर रहे हैं। हमें बताएं कि क्या आप करेंगे। अन्यथा, आप कहेंगे कि हम आपको उससे शादी करने के लिए मजबूर कर रहे हैं।” इस टिप्पणी के बाद उन्होंने आरोपी की गिरफ़्तारी पर एक महीने की रोक भी लगा दी है।
इस खुले पत्र में भारतीय न्याय प्रणाली पर गंभीर सवाल भी उठाए गए हैं। पत्र में जस्टिस बोबड़े को कहा गया है कि आपके शब्द न्यायपालिका की गरिमा के अनुकूल नहीं हैं। आपके शब्दों से न्यायपालिका के निचले स्तरों सहित पुलिस और प्रशासन को यह संदेश जाता है कि भारत की महिलाओं को न्याय मांगने का अधिकार नहीं है। आपके शब्दों से भारत की महिलायें और लड़कियां अपना मुंह बंद रखने को मजबूर हो जाएंगी और बलात्कारियों के हौसले बढ़ेंगे। इस पत्र ने भारत के नागरिक समाज और मीडिया में भारत के शासन-प्रशासन सहित न्यायपालिका के काम करने के तरीके के बारे में नए सवाल खड़े कर दिए हैं।

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