यूँ भारत में “पंडित” शब्द बहुत रूढ़ अर्थों में प्रयोग किया जाता है लेकिन बौद्ध अर्थों में पांच विद्याओं से मंडित व्यक्ति को पंडित कहतें हैं:
1. शब्द विद्या 2. हेतु विद्या 3. शीलकर्म विद्या 4. चिकित्सा विद्या 5. अध्यात्म विद्या
आधुनिक शब्दावली में इसे निम्नवत कहेंगे:
1. शब्द विद्या अर्थात भाषा विज्ञान अथवा language science or linguistics
2. हेतु विद्या अर्थात तर्क शास्त्र यानी logic या reasoning
3. शीलकर्म विद्या यानी कौशल या आजीविका लायक शिल्प अर्थात हुनर यानी Skills
4. चिकित्सा विद्या यानी medical science
5. अध्यात्म विद्या अर्थात spiritual science
इन पांच विद्याओं से मंडित व्यक्ति को पंडित कहा जाता है। “पंडित” शब्द में संलग्न उपसर्ग “पं” पांच के अर्थ में है। धम्मपद में पूरा एक अध्याय है- पंडित वग्गो। यूँ प्रचलित परम्परा में भी पंडित शब्द की बड़ी उदात्त परिभाषा दी गयी है:
मातृवत परदारेषु परदृव्यं लोष्टवत।
आत्मवतसर्वेषु यः जानाति सः पंडितः।।
अर्थात् परस्त्री को माँ की तरह देखने वाला, दूसरे के धन को कंकड़, पत्थर समझने वाला, दूसरों में अपना ही स्वरूप देखना, जो ऐसा जानता है वह पंडित है।
बौद्धकाल में तक्षशिला विश्वविद्यालय में उपरोक्त वर्णित पांच विद्याओं से मंडित को “पंडित” की उपाधि यानी डिग्री प्रदान की जाती थी। पंडितों के पंडित को यानी पंडित उपाधि पाए लोगों पढ़ाने वाले को महापंडित की उपाधि दी जाती थी और महापंडित के भी उपाध्याय को “अग्ग महापंडित” उपाधि प्रदान की जाती थी। पालि भाषा में “अग्ग” उपसर्ग यानी “अग्र” का अर्थ होता है- सर्वश्रेष्ठ। अग्गमहापंडित अथवा अग्रमहापंडित यानी श्रेष्ठतम पंडित।
मूलतः बर्मा अर्थात म्यान्मार के तथा कुशीनगर में प्रवासरत रहे पूज्य भदन्त ज्ञानेश्वर महाथेर को सन् 1997 में म्यान्मार की सरकार द्वारा “अग्गमहापंडित” की उपाधि प्रदान की गयी।
“अग्ग महासद्धम्म जोतिका धजा” की उपाधि वर्ष 2005 में प्रदान की गयी, वर्ष 2016 में “अभिधम्म महासद्धम्म जोतिका धजा” से विभूषित किया गया और 04 जनवरी 2021, बर्मा के स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर वहाँ की सरकार ने पूज्य भदन्त ज्ञानेश्वर महाथेर को अपने देश के महानतम सम्मान “अभिधजा महारथ गुरू” प्रदान किया है, जैसे भारत का सर्वोच्च राजकीय “भारत रत्न” होता है, वैसे।
“अभिधजा महारथ गुरू” थेरवाद का उच्चतम सम्मान है। एक अर्थ में यह सारे विश्व में थेरवाद का गौरव है। यह सम्मान भारत में प्रवास कर रहे, भारतीय नागरिकता के साथ भारत को धन्य कर रहे पूज्य भदन्त ज्ञानेश्वर महाथेर भारत की भूमि में ही शान्त हो गये। दिनांक 31 अक्टूबर’2025 को 90 वर्ष की आयु में लम्बी बीमारी के बाद पूज्य भदन्त ने लखनऊ के मेदान्ता अस्पताल में शरीर त्याग दिया। संघ द्वारा लिये गये निर्णय के अनुसार पूज्य का पार्थिव शरीर थाई बुद्ध विहार, कुशीनगर में 10 नवम्बर’2025 तक दर्शनार्थ पूजित होता रहेगा। अंतिम संस्कार 11 नवम्बर’2025 को होगा।
सन् 1936 में जन्मे पूज्य भदन्त ज्ञानेश्वर महाथेर का जन्म मूलतः बर्मा का है लेकिन अपने स्वदेशीय गुरू पूज्य भदन्त चन्द्रमणि जी के साथ वे आजीवन के लिए भारत आ गये और यहीं के होकर रह गये।
पूज्य भदन्त चन्द्रमणि महाथेर के द्वारा 14 अक्टूबर’1956 को अशोक विजयदशमी के दिन नागपुर में बोधिसत्व बाबा साहेब को तथा साथ उनके लाखों अनुयायियों को बुद्ध धम्म की दीक्षा प्रदान की गयी थी। वे उस समय भारत में रह रहे थेरवाद के वरिष्ठतम भिक्खु थे। इन अर्थों में पूज्य भदन्त ज्ञानेश्वर महाथेर बोधिसत्व बाबा साहेब के गुरुभाई थे।
27 फरवरी’2021, शनिवार, माघ पूर्णिमा उपोसथ के दिन समन्वय सेवा संस्थान भारत द्वारा पूज्य भदन्त ज्ञानेश्वर महाथेर को “Gem of Dhamma Award” प्रदान कर आशीर्वाद लिया गया था। उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा अन्तरराष्ट्रीय बौद्ध शोध संस्थान (संस्कृति विभाग उत्तर प्रदेश) के तत्वावधान में आयोजित बुद्धिस्ट कानक्लेव-2021 में भी पूज्य का मार्च 2021 में सम्मान किया गया था।
आज धम्म के आकाश से एक सितारा टूट गया। समन्वय परिवार को पूज्य का सतत आशीर्वाद मिलता रहा है। समस्त समन्वय परिवार शोकाकुल है।
बौद्ध विद्वान राजेश चंद्रा द्वारा दी गई श्रद्धांजलि साभार प्रकाशित

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