
90 के दशक में दलितों का वोट हासिल करना सबसे आसान था. गांव के दबंग के लोग दलितों के मुहल्ले में जाकर पोलिंग बूथ तक उनके पहुंचने का रास्ता बंद कर देते थे. इस तरह कोई दलित वोट देने नहीं जा पाता था और उनके नाम के वोट कोई और डाल देता था. वक्त बदला और दलितों को वोट देने से रोक पाना मुश्किल होता गया. तब नेता दलितों के मुहल्लों में जाने लगें, उनसे हाथ जोड़कर वोट मांगने लगें.
दलित थोड़े और संबल हो गए तो अब वही नेता दलितों का वोट हासिल करने के लिए उनके घर अपनी चारपाई लगाने और खाने लगे हैं. वो दलितों के घर जाकर खा रहे हैं. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उनके मंत्री इन दिनों ग्राम स्वराज अभियान चला रहे हैं. इसके तहत वो उत्तर प्रदेश के जिलों में घूम रहे हैं और दलितों के घर खाना खा रहे हैं. ऐसा कर वह उन्हें ‘उपकृत’ कर रहे हैं या फिर ‘हैसियत’ दिखा रहे हैं, यह बहस का मुद्दा है.
लेकिन गांव में रात्रि विश्राम और दलितों के घर भोज की कलई खुल गई है. जो बात सामने आई है, उसके मुताबिक घर तो दलित का है, लेकिन खाने का बर्तन और खाना कहीं और से आ रहा है. या फिर दलितों के चूल्हे में घुसकर भाजपा की महिला नेता खुद रोटियां सेक रही हैं. सीएम योगी ने 23 अप्रैल को प्रतापगढ़ के मधुपुर गांव में दयाराम सरोज के घर खाना खाया. इसको खूब प्रचारित किया गया. लेकिन इसी खाने के दौरान योगी की मंत्री स्वाति सिंह द्वारा रोटी सेकने की घटना ने मोदी सरकार और भाजपा के समरसता की कलई खोलकर रख दी है. ठाकुर बिरादरी की स्वाति सिंह ने दयाराम सरोज के रसोई में बैठकर योगी आदित्यनाथ के लिए रोटी बनाई थी. स्वाति जिस चूल्हे पर रोटी बना रही हैं, उसपर भी ध्यान देना जरूरी है. वह घर का चूल्हा नहीं बल्कि अलग से ईंटों को जोड़कर बनाया गया चूल्हा है.
भाजपा नेताओं का दलितों के घर खाने की इससे पहले भी आई कई तस्वीरें सवाल उठाती रही है. इन तस्वीरों में अक्सर बोतलबंद पानी दिख जाता है, तो वहीं दस लोगों के लिए एक से बर्तन उपलब्ध होते हैं. एक सामान्य दलित परिवार में ऐसा नहीं होता है. जो तस्वीरे मीडिया के सामने परोसी जाती है या फिर जो तस्वीरे मीडिया लोगों के सामने परोसता है, उसमें कद्दावर नेताओं के बीच बैठे हुए दलित परिवार के मुखिया का डर उसके चेहरे पर दिखता है.
देश के तकरीबन 85 फीसदी दलितों की आय 5000 रुपये महीने से भी कम है, ऐसे में एक सामान्य दलित परिवार में नेताओं के भोज का खर्चा उठाने की कुव्वत कम ही है. राजनीति के इस दौर में दलित आज भी मोहरा बने हुए हैं, जिसे सब अपने हिसाब से नचाने की कोशिश में जुटे हैं. असल में भाजपा जो भोज कर रही है, उसमें घर सिर्फ दलित का है, खाना तो खुद उन्हीं का है. अब इसमें रसोईये का भी जुड़ जाना दलितों के प्रति भाजपाईयों के घृणा को साफ कर देता है.

अशोक दास (अशोक कुमार) दलित-आदिवासी समाज को केंद्र में रखकर पत्रकारिता करने वाले देश के चर्चित पत्रकार हैं। वह ‘दलित दस्तक मीडिया संस्थान’ के संस्थापक और संपादक हैं। उनकी पत्रकारिता को भारत सहित अमेरिका, कनाडा, स्वीडन और दुबई जैसे देशों में सराहा जा चुका है। वह इन देशों की यात्रा भी कर चुके हैं। अशोक दास की पत्रकारिता के बारे में देश-विदेश के तमाम पत्र-पत्रिकाओं ने, जिनमें DW (जर्मनी), The Asahi Shimbun (जापान), The Mainichi Newspaper (जापान), द वीक मैगजीन (भारत) और हिन्दुस्तान टाईम्स (भारत) आदि मीडिया संस्थानों में फीचर प्रकाशित हो चुके हैं। अशोक, दुनिया भर में प्रतिष्ठित अमेरिका के हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में फरवरी, 2020 में व्याख्यान दे चुके हैं। उन्हें खोजी पत्रकारिता के दुनिया के सबसे बड़े संगठन Global Investigation Journalism Network की ओर से 2023 में स्वीडन, गोथनबर्ग मे आयोजिक कांफ्रेंस के लिए फेलोशिप मिल चुकी है।