दलित वर्ग का कोई भी चेहरा जब भी पहली बार उभरता है, उस पर दलित होने का ठप्पा पहले लगा दिया जाता है. जिग्नेश मेवाणी भी जब आंदोलन में सक्रिय हुए तो उनके मुद्दों से पहले उनकी जाति की चर्चा होने लगी थी. हालांकि गुजरात की राजनीति में तेजी से उभरे मेवाणी को बार-बार खुद को दलित नेता कहना अच्छा नहीं लग रहा है. जिग्नेश मेवाणी का कहना है कि मैं सिर्फ दलित नेता नहीं हूं.
असल में मेवाणी का कहना है कि मैं सभी का नेता हूं. वह दावा करते हैं कि वडगाम में उन्हें 50 हजार से ज्यादा मुसलमानों ने वोट दिया और उनकी जीत के लिए 250 से अधिक महिलाओें ने रोज़ा रखा था. जिग्नेश मेवाणी कहते हैं कि-
‘मेरी लड़ाई गरीबों, वंचितों और शोषितों की है. अगर कोई दलित कारखाना मालिक अपने ब्राह्मण कर्मचारियों पर अत्याचार करता है तो मैं गरीब ब्राह्मण की लड़ाई लडूंगा’. वह आदिवासियों को भी जोड़ने की बात कहते हैं.
जिग्नेश मेवाणी अब राजनीति में हैं. जाहिर सी बात है कि राजनीति में सबका वोट और समर्थन मायने रखता है, लेकिन ऐसा कम ही देखने में आया है कि अन्य वर्गों के लोगों ने किसी दलित समाज के व्यक्ति को अपना नेता माना हो. यहां तक की जाति की वजह से ही जगजीवन राम देश के प्रधानमंत्री नहीं बन पाए थे, क्योंकि सवर्णों को यह मंजूर नहीं था. तो डॉ. अम्बेडकर द्वारा महिलाओं, देश की अर्थव्यवस्था और कर्मचारी हितों के लिए तमाम काम करने के बावजूद उन्हें दलितों का नेता कह कर सीमित करने की कोशिश लगातार जारी है.
तो बहुजन समाज पार्टी के नारे बहुजन हिताय बहुजन सुखाय को बदलकर सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय कर देने और उत्तर प्रदेश में बेहतर शासन देने के बावजूद बसपा की नेता मायावती को सवर्ण समाज के लोग आज तक नहीं अपना पाए. देखना है, जिग्नेश मेवाणी का भ्रम कब टूटता है.

अशोक दास (अशोक कुमार) दलित-आदिवासी समाज को केंद्र में रखकर पत्रकारिता करने वाले देश के चर्चित पत्रकार हैं। वह ‘दलित दस्तक मीडिया संस्थान’ के संस्थापक और संपादक हैं। उनकी पत्रकारिता को भारत सहित अमेरिका, कनाडा, स्वीडन और दुबई जैसे देशों में सराहा जा चुका है। वह इन देशों की यात्रा भी कर चुके हैं। अशोक दास की पत्रकारिता के बारे में देश-विदेश के तमाम पत्र-पत्रिकाओं ने, जिनमें DW (जर्मनी), The Asahi Shimbun (जापान), The Mainichi Newspaper (जापान), द वीक मैगजीन (भारत) और हिन्दुस्तान टाईम्स (भारत) आदि मीडिया संस्थानों में फीचर प्रकाशित हो चुके हैं। अशोक, दुनिया भर में प्रतिष्ठित अमेरिका के हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में फरवरी, 2020 में व्याख्यान दे चुके हैं। उन्हें खोजी पत्रकारिता के दुनिया के सबसे बड़े संगठन Global Investigation Journalism Network की ओर से 2023 में स्वीडन, गोथनबर्ग मे आयोजिक कांफ्रेंस के लिए फेलोशिप मिल चुकी है।