नई दिल्ली। आरक्षण में वर्गीकरण के बाद अब एससी-एसटी को मिलने वाले आरक्षण को आय के आधार पर देने की मांग करने वाली एक जनहित याचिका यानी PIL सुप्रीम कोर्ट में डाली गई है, जिसे शीर्ष अदालत ने सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया है। याचिका में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के भीतर आरक्षण के लाभ के बंटवारे में आर्थिक आधार को शामिल करने की मांग की गई है। इसका संज्ञान लेते हुए कोर्ट ने इस संबंध में केंद्र सरकार को 10 अक्टूबर तक जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है।
याचिका में कहा गया है कि आज़ादी के बाद से चली आ रही आरक्षण व्यवस्था का फायदा एससी-एसटी समुदायों के भीतर एक सीमित वर्ग जो कि सशक्त है, उसतक सिमट गया है। तर्क दिया गया है कि एससी-एसटी वर्ग के आर्थिक रूप से बेहद पिछड़े लोग अब भी हाशिये पर हैं। उन्हें अब तक आरक्षण का ज्यादा लाभ नहीं मिल सका है। इसलिए, आरक्षण के लाभ में उन लोगों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए जो इसी समाज के तो हैं, लेकिन आर्थिक रूप से सबसे ज्यादा पिछड़े हैं।
यानी कुल मिलाकर इस याचिका में ओबीसी की तरह ही दलितों के क्रीमी लेयर वर्ग को आरक्षण से बाहर करने की वकालत की गई है। हालांकि इस तरह की मांग पहले भी की जाती रही है, लेकिन आरक्षण को आर्थिक की जगह सामाजिक बताते हुए हमेशा यह मांग खारिज होती रही है। इसकी एक जायज वहज भी है।
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 15(4) और 16(4) राज्य को सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण की अनुमति देता है। जहां तक दलित और आदिवासी वर्ग की बात है तो उनके लिए यह आरक्षण उनकी ऐतिहासिक सामाजिक वंचना के आधार पर तय हुई थी, न कि आर्थिक स्थिति के आधार पर। क्योंकि दलितों से भेदभाव आर्थिक आधार पर नहीं, बल्कि उनकी जातीय पहचान के कारण ज्यादा होता है।
आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के रुख को देखें तो बीते ढाई दशक में यह काफी बदला है।
- 1992 में Indra Sawhney vs Union of India (Mandal Commission केस) मामले में सुप्रीम कोर्ट ने OBC में ‘क्रीमी लेयर’ लागू करने का आदेश दिया। लेकिन SC/ST को क्रीमी लेयर से बाहर रखा गया। इसके पीछे तर्क दिया गया कि SC/ST की वंचना का मूल कारण सामाजिक भेदभाव है, आर्थिक स्थिति नहीं।
- साल 2006 में एम. नागराज Vs यूनियन ऑफ इंडिया मामले में सुप्रीम कोर्ट ने SC/ST को पदोन्नति में आरक्षण की अनुमति दी, साथ ही क्रीमी लेयर की मांग को खारिज किया। उस फैसले में भी सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि SC/ST आरक्षण का उद्देश्य सामाजिक पिछड़ेपन की भरपाई करना है।
लेकिन साल 2014 के बाद तमाम फैसलों में आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट की सोच और रुख बदलने लगा। जो सुप्रीम कोर्ट साल 1992 में इंदिरा साहनी मामले में एससी-एसटी में इस आधार पर क्रीमी लेयर को खारिज करने का फैसला सुना रहा था कि SC/ST की वंचना का मूल कारण सामाजिक भेदभाव है आर्थिक स्थिति नहीं। उसी शीर्ष अदालत ने
- 2018 में जरनैल सिंह vs लछमी नारायन गुप्ता मामले में SC-ST में भी पदोन्नति में आरक्षण के लिए ‘क्रीमी लेयर’ सिद्धांत लागू करने का संकेत दिया। सर्वोच्च न्यायालय का तर्क था कि जो SC/ST आर्थिक और सामाजिक रूप से उन्नत हो चुके हैं, उन्हें लाभ से बाहर किया जा सकता है।एक अन्य मामले में-
- 2020 में चेब्रोलु लीला प्रसाद राव vs स्टेट ऑफ आंध्र प्रदेश मामले में आदिवासी समाज से जुड़े आरक्षण पर सु्प्रीम कोर्ट ने ST में 100% आरक्षण को असंवैधानिक बताया। सर्वोच्च न्यायालय ने तर्क दिया कि आरक्षण में अति-सीमा संविधान के बुनियादी ढांचे के खिलाफ है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने तब क्रीमी लेयर पर सीधे टिप्पणी नहीं की।
- 2022 में तो स्टेट ऑफ पंजाब vs दविन्दर सिंह मामले में अपने फैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने SC/ST उप-वर्गीकरण का रास्ता साफ कर दिया। साथ ही आर्थिक आधार पर आंतरिक विभाजन का भी संकेत दिया था।
इस बीच अब आर्थिक आधार पर आरक्षण की जनहित याचिका को स्वीकार कर सुप्रीम कोर्ट ने इस समाज की धड़कने तो बढ़ा ही दी है। और इसके राजनीतिक और सामाजिक असर क्या होंगे, यह सवाल उठने लगे हैं। सुप्रीम कोर्ट के इस कदम से एक बार फिर यह बहस शुरू हो गई है कि आरक्षण का आधार क्या होना चाहिए? साफ है कि अगर सुप्रीम कोर्ट इस याचिका पर साकारात्मक रुख दिखाता है तो आने वाले महीनों में यह मामला सिर्फ कोर्ट की चारदीवारी में नहीं, बल्कि सड़क से संसद तक गूंज सकता है।

राज कुमार साल 2020 से मीडिया में सक्रिय हैं। उत्तर प्रदेश की राजनीतिक और सामाजिक गतिविधियों पर पैनी नजर रखते हैं।

