राष्ट्रपति पद का चुनाव एकदम नजदीक है ऐसे में राजनीतिक पार्टियों की धड़कने तेजी से बढ़ती जा रही हैं. जब समस्त विपक्ष एक साझा उम्मीदवार उतारने की कोशिश में लगा था, उसी बीच बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एनडीए उम्मीदवार रामनाथ कोविंद को समर्थन देकर सबको चौंका दिया. एनडीए से मुकाबला होने से पहले अब विपक्ष के खेमे में ही रार मच गई है. राजनीतिक गलियारों से लेकर आमजन के बीच इस सवाल का जवाब पाने को बेताबी है कि आखिर नीतीश ने क्यों एनडीए उम्मीदवार में समर्थन का फैसला किया है.
असल में बिहार में महादलित वोटबैंक बहुत बड़ा निर्णायक है. संयोग से रामनाथ कोविंद भी महादलित श्रेणी से ही आते हैं. बिहार में लालू प्रसाद यादव के यादव-मुस्लिम गठजोड़ पर नीतीश कुमार के भारी होने की वजह महादलित वोटबैंक का उनके साथ जाना ही रहा है. नीतीश के लिए महादलित वोटों का महत्व इसी से समझा जा सकता है कि उन्होंने 2014 में अपनी जगह जीतनराम मांझी को मुख्यमंत्री बनाने का दांव चला था. मांझी भी महादलित श्रेणी से ही आते हैं. बाद में जब मांझी की राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं हद पार करने लगीं तो नीतीश को उन्हें हटा कर खुद मुख्यमंत्री बनना पड़ा. मांझी ने इस फैसले को महादलितों का अपमान करार दिया था. 2015 के आम चुनाव में नीतीश कुमार महागठबंधन के जरिए दोबारा सत्ता में तो आ गए लेकिन वह बैसाखी के सहारे अपनी ताकत बनाए रखने के बजाय अकेले अपने दम पर मजबूत दिखना चाहते हैं. इसके लिए उन्हें महादलित वोट बैंक का साथ चाहिए ही चाहिए. नीतीश को इस बात की शंका थी कि अगर उन्होंने कोविंद का विरोध किया तो महादलितों से उनकी दूरी और बढ़ जाएगी. ऐसे में उन्होंने ‘महादलित’ कोविंद का साथ देने का एलान कर महादलितों के बीच अपनी साख बढ़ा ली है, जिसका फायदा उन्हें भविष्य में दिखेगा.
नीतीश कुमार की निगाहें आने वाले बिहार चुनाव पर हैं जिसमें वे पूर्ण बहुमत की सरकार चाहतें हैं जिसका बड़ा वोट बैंक दलितो के पास है.

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