नई दिल्ली। वह वक्त बीत गया जब दलित और आदिवासी समाज अपने खिलाफ होने वाले अत्याचारों को अपनी नियति मान लेता था। अब वह अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाने लगा है। देश की संसद राज्यसभा में सामने आए ताजा आंकड़ों से यह साबित भी होता है। हालांकि यह आंकड़े समाज के भीतर मौजूद भारी जातिवाद की कलई भी खोलते हैं।
साल 2020 में केंद्र सरकार की सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय ने एक नंबर जारी किया था। दलितों और आदिवासियों के लिए जारी इस एससी-एसटी अत्याचार निवारण हेल्पलाइन नंबर पर बीते करीब पांच सालों में 6 लाख 34 हजार से ज्यादा कॉल रिकार्ड किये गए हैं।
यह जानकारी खुद सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता राज्य मंत्री रामदास अठावले ने दी है। हेल्पलाइन पर दर्ज किये गए इन फोन कॉल्स में-
सबसे ज्यादा 3 लाख 40 हजार कॉल्ड यूपी से आई है।
दूसरे नंबर पर बिहार है, जहां से 59,205 कॉल्स आई है।
तीसरे नंबर पर राजस्थान है। वहां से 40,228 कॉल्स आई है।
आंकड़ों के मुताबिक 2020 में हेल्पलाइन पर जहां सिर्फ 6,000 कॉल्स आई थीं, वहीं 2024 में यह संख्या 1.05 लाख के पार चली गई। यानी एससी-एसटी समाज के लोग अत्याचार की घटनाएं रिपोर्ट करने में संकोच नहीं कर रहे हैं। हालांकि यह वो आंकड़े हैं जो हेल्पलाइन के जरिये दर्ज किये गए हैं। सीधे पुलिस स्टेशन में अत्याचार की रिपोर्ट के आंकड़े इससे अलग हैं।
इस पूरी प्रक्रिया में किसी भी शिकायत को अत्याचार तब ही माना जाता है जब वह दो केंद्रीय कानूनों नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1955 और अनुसूचित जाति व जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के तहत आते हों।
अगर आपके साथ भी जाति के आधार पर भेदभाव हो रहा है और आपका मामला ऊपर बताए गए अधिनियमों के तहत आता है तो आप भी राष्ट्रीय अत्याचार निवारण हेल्पलाइन 14566 पर शिकायत कर सकते हैं। लेकिन यहां बड़ा सवाल यह भी है कि भारत में जातिवाद आखिर कब रुकेगा?