राजस्थान के झालावाड़ ज़िले में पीपलोदी गांव के सरकारी स्कूल में सुबह 7.30 बजे जब बच्चे प्रार्थना कर रहे थे, अचानक स्कूल भवन की छत भरभराकर गिर गई। हादसे में 5 से ज्यादा बच्चों की जान जाने जबकि 25 से ज्यादा मासूम बच्चे और कुछ शिक्षकों के गंभीर रूप से घायल होने की खबर है। जिस स्कूल में हादसा हुआ, उसके इमारत की हालत लंबे समय से खराब थी। दीवारें दरक रही थीं, छत झूल रही थी, लेकिन मरम्मत के नाम पर किसी अधिकारी या जनप्रतिनिधि ने कोई कदम नहीं उठाया। उठाते भी क्यों, इस स्कूल में न किसी रसूखदार के बच्चे पढ़ते हैं और ना ही नेता और अधिकारियों के बच्चे।
यह वही झालावाड़ है, जिससे वसुंधरा राजे लम्बे समय तक विधायक रही हैं, और उनके बेटे दुष्यंत सिंह संसद में इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं। लेकिन बड़े नामों के चकाचौंध में गरीबों की कौन सोचे भला। आरोप यह भी है कि प्रदेश के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा की सरकार ने भी प्राथमिक शिक्षा को कभी अपनी प्राथमिकता नहीं बनाया। सरकारी आंकड़ों में ‘स्कूल चले हम अभियान’ चलता रहा, लेकिन ज़मीनी हकीकत यही है कि बच्चे जर्जर भवनों में अपनी जान जोखिम में डालकर पढ़ने को मजबूर हैं। और आज तो हादसा हो ही गया।
हादसे के बाद स्थानीय लोग और परिजन आक्रोश में हैं। उनका कहना है कि बार-बार शिकायतों के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं हुई और प्रशासन ने आंखें मूंदें रखी। यह सिर्फ लापरवाही नहीं, यह अपराध है, जिसमें सरकार और स्थानीय जनप्रतिनिधियों से लेकर शिक्षा विभाग तक सब दोषी हैं।
सत्ता ने फिर से साफ कर दिया है कि गरीबों के जान की कोई कीमत नहीं होती। यह अचानक हुआ हादसा नहीं है, बल्कि इस हादसे को न्यौता दिया गया। ऐसे में-
- इस हादसे के दोषी अधिकारियों पर हत्या का मुकदमा दर्ज होना चाहिए।
- परिजनों को सिर्फ मुआवजा नहीं, बल्कि न्याय मिलना चाहिए।
- प्रदेश के सभी सरकारी स्कूलों की इमारतों का तत्काल निरीक्षण होना चाहिए, ताकि भविष्य में इस तरह का कोई दूसरा हादसा न हो।
साफ है कि अगर स्कूलों की मरम्मत सही समय पर हो जाती तो इस हादसे को रोका जा सकता था। जो मासूम जिंदगियां छीन ली गई, वो अपने आंगन में खेल रही होती।

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