संघ लोक सेवा आयोग ने एक बार फिर से बीते 5 फरवरी को ज्वाइंट सेक्रेटरी और डायरेक्टर के पदों पर लेटरल एंट्री के लिए आवेदन आमंत्रित किया है। यूपीएससी ने विभिन्न सरकारी विभागों में 3 ज्वॉइंट सेक्रेटरी और 27 डायरेक्टर लेवल के कुल 30 पदों के लिए आवेदन मांगे हैं। इस भर्ती से प्राइवेट सेक्टर के 30 और विशेषज्ञों को सीधे नियुक्त किया जाएगा। आयोग द्वारा निकाली गई इस भर्ती का मामला 9 फरवरी को संसद में उठा। समाजवादी पार्टी के राज्यसभा सांसद राम गोपाल यादव ने इस मुद्दे को संसद में उठाया और कहा कि ऐसा करने से सिविल सेवा प्रतिभागियों और आईएएस अधिकारियों में खासी नाराजगी है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि ऐसी नियुक्तियों में आरक्षण व्यवस्था का भी बिल्कुल ध्यान नहीं रखा गया है।
इसी के विरोध में अब बहुजन समाज के बुद्धिजीवि और नेताओं ने खुलकर सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। 16 फरवरी को इसी के विरोध में जंतर-मंतर पर विरोध प्रदर्शन होना है। तो संविधान बचाओ संघर्ष समिति ने 7 मार्च को भारत बंद का आवाहन किया है। अखिलेश यादव से लेकर उदित राज और आम आदमी पार्टी के मंत्री राजेन्द्र पाल गौतम तक सबने लैटरल एंट्री को लेकर कड़ी प्रतिक्रिया जताई है। राजेन्द्र पाल गौतम ने तो आंदोलन का ऐलान कर दिया है। हम आंदोलन के मुद्दे पर बाद में आएंगे, पहले हम आपको बताते हैं कि क्या है लैटरल एंट्री और इसकी आड़ में देश के आम युवाओं के साथ किस तरह एक बड़ा धोखा किया जा रहा है जो सिविल सेवा में चयनित होने के लिए सालों साल जी-तोड़ मेहनत करते हैं।
क्या है लैटरल एंट्री
संघ लोक सेवा आयोग जिन ज्वाइंट सेक्रेटरी और डायरेक्टरके पदों पर लेटरल एंट्री के लि आवेदन आमंत्रित किए हैं, आम तौर पर इन पदों पर सिविल सेवा अधिकारियों को नियुक्त किया जाता है। लेकिन अब लेटरल एंट्री की आड़ में इन पदों पर प्राइवेट सेक्टर के अनुभवी और विशेषज्ञ पेशेवरों को नियुक्त किया जा सकेगा। इन पदों पर नियुक्ति के लिए कोई लिखित परीक्षा नहीं होगी और उम्मीदवारों का चयन सिर्फ इंटरव्यू के आधार पर किया जाएगा। बस भर्ती के लिए आवेदक के पास मास्टर डिग्री होनी चाहिए। यूपीएससी ये भर्ती तीन साल के कॉन्ट्रेक्ट पर निकालती है, लेकिन प्रदर्शन के आधार पर इसे 5 साल तक बढ़ाया जा सकता है। पहली बार साल 2018 में ‘सीधी भर्ती व्यवस्था के जरिए संयुक्त सचिव रैंक के पदों के लिए आवेदन आमंत्रित किए गए थे। इसमें कुल 6,077 लोगों ने आवेदन किए थे। इसके तहत पहली बार निजी क्षेत्रों के नौ विशेषज्ञों को केंद्र सरकार के विभिन्न विभागों में संयुक्त सचिव के पदों पर तैनाती के लिए चुना गया था।
क्या है आरक्षण को खतरा
सीधे निजी क्षेत्र के विशेषज्ञों को चुने जाने के कारण दलित, आदिवासी और पिछड़े वर्ग को भारी नुकसान हो रहा है, क्योंकि इस तरह की नियुक्तियों में आरक्षण का कोई प्रावधान नहीं है। इस कारण आरक्षित वर्ग के युवाओं को ऐसी नियुक्तियों में आरक्षण का कोई लाभ नहीं मिल पाएगा। न ही मुसलमान युवाओं को ही कोई मौका मिलेग। लेटरल एंट्री के तहत पहली बार जिन नौ लोगों को संयुक्ति सचिव के पदों पर नियुक्त किया गया, उनके नामों को गौर से देखिए। यह एक बानगी भर है। UPSC द्वारा चुने गए नौ विशेषज्ञों में अंबर दुबे (नागरिक उड्डयन), अरुण गोयल (वाणिज्य), राजीव सक्सेना (आर्थिक मामले), सुजीत कुमार बाजपेयी (पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन), सौरभ मिश्रा (वित्तीय सेवाएँ), दिनेश दयानंद जगदाले (नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा), सुमन प्रसाद सिंह (सड़क परिवहन और राजमार्ग), भूषण कुमार (शिपिंग) और काकोली घोष (कृषि, सहयोग और किसान कल्याण) शामिल हैं। यानी साफ है कि इन सीधी भर्तियों में दलितों, पिछड़ों और आदिवासियों के लिए सारे रास्ते पूरी तरह बंद हैं जो उन्हीं की भर्ती होगी, जिन्हें सरकार चाहेगी।
हालांकि अब इसके खिलाफ माहौल बनने लगा है और तमाम आम और खास लोग लैटरल एंट्री के नाम खिलाफ मुखर होकर बोल रहे हैं। इस मुद्दो को सोशल मीडिया पर लंबे वक्त से उठा रहे वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल ने हाल ही में इस बारे में ट्विट किया है। उन्होंने लिखा है- लैटरल एंट्री तमाम जाति-धर्म के उन स्टूडेंट्स और युवाओं के हितों के ख़िलाफ़ है, जो Competition Exams की तैयारी में रात-रात भर जगते हैं। लैटरल एंट्री नौकरशाही का कोलिजियम सिस्टम है।
तो आईएएस सूर्यप्रताप सिंह (@suryapsingh_IAS) ने लिखा है-
IAS के पदों को लूट सको तो लूट लो!
लैटरल एंट्री के नाम से तृतीय या चतुर्थ श्रेणी को नहीं,IAS के पदों को ठेके(Contract) पर लुटा रही केंद्र सरकार l ये सब एक्सपर्ट के नाम पर हो रहा है l
ये IAS की नहीं,पिछले दरवाजे से एक विचारधारा की एंट्री, सरकार में हो रही है l
ये है न्यू इंडिया l— Surya Pratap Singh IAS Rtd. (@suryapsingh_IAS) February 7, 2021
समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष और यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भी इसके खिलाफ आवाज उठाई है। उन्होंने अपने ट्विट में लिखा-
भाजपा खुले आम अपनों को लाने के लिए पिछला दरवाज़ा खोल रही है और जो अभ्यर्थी सालों-साल मेहनत करते हैं उनका क्या.
भाजपा सरकार अब ख़ुद को भी ठेके पर देकर विश्व भ्रमण पर निकल जाए वैसे भी उनसे देश नहीं संभल रहा है. pic.twitter.com/4TpkYIYorD
— Akhilesh Yadav (@yadavakhilesh) February 7, 2021
तो वहीं वंचित तबके की आवाज को मजबूती से उठाने वाले राजेंद्र पाल गौतम जो कि दिल्ली सरकार में सोशल जस्टिस मिनिस्टर भी हैं, लैटरल इंट्री के खिलाफ आंदोलन का ऐलान कर दिया है।
जल्द ही लेटरल एंट्री से जॉइंट सेक्रेटरी बनाने के खिलाफ़ हम एक बड़ा आंदोलन करेंगे। सभी साथी तैयार रहें। https://t.co/pIFMcQ6C5V
— Rajendra Pal Gautam (@AdvRajendraPal) February 7, 2021
कुल मिलाकर देखें तो दिलीप मंडल की इस आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता कि लैटरल एंट्री की व्यस्था सही मायने में नौकरशाही का कोलेजियम सिस्टम बनाने की कोशिश है। 2-4 लाइन और बोलेंगे।

अशोक दास (अशोक कुमार) दलित-आदिवासी समाज को केंद्र में रखकर पत्रकारिता करने वाले देश के चर्चित पत्रकार हैं। वह ‘दलित दस्तक मीडिया संस्थान’ के संस्थापक और संपादक हैं। उनकी पत्रकारिता को भारत सहित अमेरिका, कनाडा, स्वीडन और दुबई जैसे देशों में सराहा जा चुका है। वह इन देशों की यात्रा भी कर चुके हैं। अशोक दास की पत्रकारिता के बारे में देश-विदेश के तमाम पत्र-पत्रिकाओं ने, जिनमें DW (जर्मनी), The Asahi Shimbun (जापान), The Mainichi Newspaper (जापान), द वीक मैगजीन (भारत) और हिन्दुस्तान टाईम्स (भारत) आदि मीडिया संस्थानों में फीचर प्रकाशित हो चुके हैं। अशोक, दुनिया भर में प्रतिष्ठित अमेरिका के हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में फरवरी, 2020 में व्याख्यान दे चुके हैं। उन्हें खोजी पत्रकारिता के दुनिया के सबसे बड़े संगठन Global Investigation Journalism Network की ओर से 2023 में स्वीडन, गोथनबर्ग मे आयोजिक कांफ्रेंस के लिए फेलोशिप मिल चुकी है।
Very good ब्लॉग जयभीम