रोहतक। दो साध्वियों से यौन शोषण के दोषी डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख गुरमीत राम रहीम सिंह को सीबीआई कोर्ट से दोनों मामलों में 10-10 साल की सजा मिलने के बाद, उन्हें जेल में कैदी नंबर 1997 दिया गया है. 20 साल जेल की सजा पाए बलात्कारी बाबा की जेल में सोमवार को पहली रात गुजारी है.
यौन शोषण के मामले में मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक रामरहीम पूरी रात बैरक में जागता रहा. बैरक में इधर से उधर टहलता रहा और सो नहीं पाया. गुरमीत को खाने में 4 रोटी और सब्जी दी गई थी लेकिन उसने सिर्फ आधी रोटी और सब्जी खाई. राम रहीम को जेल प्रशासन ने नया कैदी नंबर 8647 दिया है.
अबतक विलासिता की जिंदगी जीने वाला राम रहीम अब जेल में आम कैदियों की तरह काम कर रहे हैं. बलात्कारी बाबा अब सुबह जल्दी उठता है और और लाइन में लगकर खाना लेना पड़ रहा है. वहीं रात में जमीन पर सोने के लिए राम रहीम को एक कंबल दिया गया है. इतना ही नहीं राम रहीम को जेल और अपनी बैरक में झाड़ू लगाने के अलावा बैरक में पौछा भी लगाना काम सौंपा गया है.
सुबह के समय आम कैदियों की तरह डेरा प्रमुख को भी चाय और ब्रेड मिलेगी. दोपहर को खाने में पांच रोटी और एक दाल देने का प्रावधान है. दिन में 250 ग्राम दूध मिलेगा. शाम को चाय और रात को पांच रोटी व एक सब्जी खाने में मिलेगी. बाकी किसी भी समय दूध या चाय देने की कोई व्यवस्था नहीं है.
डेरा प्रमुख चूंकि कम पढ़ा लिखा है, इसलिए उससे लेबर वर्क (मजदूरी) कराई जाएगी. लेबर वर्क के लिए वह फिट है या नहीं, इसके लिए मेडिकल जांच होगी. डाक्टरों ने उसे फिट करार दिया तो जेल प्रबंधन फैक्ट्री में बढ़ई का काम, चारपाई और कुर्सी बुनने, बागवानी करने अथवा बेकरी में बिस्कुट बनाने का काम दे सकता है. काम करने के उसका ड्यूटी टाइम सुबह आठ बजे से शाम चार बजे तक होगा. राम रहीम ने नौवीं तक पढ़ाई की है.
जेल मैनुअल के अनुसार आम कैदी की तरह डेरा प्रमुख को भी सफेद रंग के कपड़े पहनने होंगे. अपने साथ वह जो कपड़े लेकर गया है, उसे जेल में ले जाने की इजाजत नहीं होगी. अमूमन प्रभावशाली कैदी अपने खुद के सफेद कपड़े जेल में पहनते रहे हैं, लेकिन मीडिया ट्रायल से बचने के लिए जेल प्रबंधन डेरा मुखी को उसके अपने कपड़े पहनने की इजाजत नहीं देगा. डेरा प्रमुख के वकीलों ने अपनी जेल बदले जाने की अर्जी लगाई है, इसलिए देर सबेर उसकी जेल भी बदली जा सकती है.

दलित दस्तक (Dalit Dastak) साल 2012 से लगातार दलित-आदिवासी (Marginalized) समाज की आवाज उठा रहा है। मासिक पत्रिका के तौर पर शुरू हुआ दलित दस्तक आज वेबसाइट, यू-ट्यूब और प्रकाशन संस्थान (दास पब्लिकेशन) के तौर पर काम कर रहा है। इसके संपादक अशोक कुमार (अशोक दास) 2006 से पत्रकारिता में हैं और तमाम मीडिया संस्थानों में काम कर चुके हैं। Bahujanbooks.com नाम से हमारी वेबसाइट भी है, जहां से बहुजन साहित्य को ऑनलाइन बुक किया जा सकता है। दलित-बहुजन समाज की खबरों के लिए दलित दस्तक को सोशल मीडिया पर लाइक और फॉलो करिए। हम तक खबर पहुंचाने के लिए हमें dalitdastak@gmail.com पर ई-मेल करें या 9013942612 पर व्हाट्सएप करें।