9 मार्च 2021 को अमेरिका में एक बहुत ही महत्वपूर्ण केस की सुनवाई होने वाली है। इस केस के फैसले से यह तय होगा कि अमेरिका में जाति आधारित भेदभाव को अमेरिकन कानून के हिसाब से कैसे देखा जाए। यूरोप या अमेरिका में गोरे और काले लोगों के बीच नस्ल के आधार पर होने वाली हिंसा या भेदभाव के बारे में स्पष्ट कानून है। लेकिन दुर्भाग्य से यूरोप और अमेरिका में एक बड़ी संख्या में भारतीयों के होने के बावजूद वहां पर जाति आधारित भेदभाव के बारे में कानून स्पष्ट नहीं है। लेकिन अब इस विषय में एक उम्मीद जाग रही है। कुछ महीनों पहले कैलिफोर्निया में एक भारतीय इंजीनियर ने एक कंपनी (CISCO) के खिलाफ जातिगत आधार पर भेदभाव का आरोप लगाया था। इसके तुरंत बाद अमेरिकन नियामक संस्थाओं ने CISCO नाम की आई टी कंपनी के खिलाफ मुकदमा दायर किया था। यह मामला खूब उछला था और अमेेरिका स्थित तमाम अम्बेडकरवादी संगठनों ने इसके खिलाफ और पीड़ित के पक्ष में पुरजोर आवाज उठाई थी।
गौरतलब है कि अमेरिका के एक भारतीय इंजीनियर ने CISCO के सैन जोस स्थित मुख्यालय में काम के दौरान अपने खिलाफ जातिगत भेदभाव का आरोप लगाया था। इस बहुजन इंजीनियर ने कहा है कि उसके साथ काम करने वाले ब्राह्मण लोगों ने कार्यस्थल पर जातिगत भेदभाव करते हुए उसका अपमान किया है। यह व्यवहार 1964 के कैलिफोर्निया के कानून के हिसाब से एक अपराध है। इस मामले में कुछ महीनों से कार्रवाई चल रही है।
यहां यह भी गौर करना चाहिए कि पहले यह केस अमेरिका की संघीय अदालत में लगाया गया था, लेकिन अब इसे कैलिफोर्निया की अदालत में दायर किया गया है। इसका कारण यह है कि भेदभाव के मामलों में कैलिफोर्निया राज्य का कानून बहुत सख्त है। अगर इस मामले में अमेरिका में एक सख्त निर्णय आता है तो यह पूरे दुनिया में बसे हुए बहुजन डायस्पोरा के लिए एक बहुत बड़ी खबर होगी। इसका स्वाभाविक परिणाम यह हो सकता है कि इस मामले में फैसला आने के बाद अमेरिका में जाति आधारित भेदभाव पर कानून बन सकेगा। इसके बाद निश्चित ही इसका परिणाम भारत में रह रहे बहुजनों पर भी पड़ेगा।

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