18 साल पहले 14 जनवरी 2007 की तारीख भारतीय इतिहास में दर्ज हो गई थी, जब जस्टिस के.जी. बालकृष्णन ने भारत के 37वें मुख्य न्यायाधीश के पद की शपथ ली। जस्टिस के. जी. बालकृष्णन की यह नियुक्ति भारतीय न्यायपालिका में एक ऐतिहासिक क्षण था, क्योंकि यह पहली बार था जब दलित समुदाय से आने वाले किसी व्यक्ति ने भारत के सर्वोच्च न्यायालय के सर्वोच्च पद को संभाला।
इस ऐतिहासिक क्षण के 18 साल बाद एक बार फिर ऐसा ही वक्त आया, जब भारतीय लोकतंत्र और मजबूत होता दिखा। तारीख भी 14 ही है, हालांकि महीना मई का है। 14 मई 2025 को जस्टिस बी.आर. गवई यानी जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई ने भारत के सर्वोच्च न्यायालय के 52वें मुख्य न्यायाधीश के तौर पर शपथ ली। यह शपथ राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उन्हें राष्ट्रपति भवन में दिलाई।
यह मौका देश के अन्य मुख्य न्यायाधीशों की तरह एक और मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति जैसा सामान्य मौका नहीं था, बल्कि यह उससे अलग और अनोखा था। जस्टिस गवई को मुख्य न्यायाधीश पद की शपथ राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने दिलाई। राष्ट्रपति मुर्मू और नए चीफ जस्टिस बी.आर. गवई दोनों भारत के उस समुदाय से आते हैं जो सदियों से वंचित, शोषित और पीड़ित रहा है। इन दोनों का एक फ्रेम में आना भारतीय इतिहास की बड़ी घटना है। इस शपथ ग्रहण समारोह में दोनों मुख्य भूमिका में थे और बाकी सभी दर्शक।
यह घटना बेहद खास है। क्योंकि यह उस देश की घटना है, जहां हर दिन जातीय उत्पीड़न होता है। यह उस देश की घटना है, जहां यूपी के बाराबंकी जिले से हाल ही में यह खबर आई थी कि निजामपुर गांव की दलित बस्ती में आजादी के 78 सालों बाद एक किशोर ने पहली बार 10वीं की परीक्षा पास की। यह उस देश की घटना है, जहां हाल ही में घोड़ी पर बैठकर बारात निकाल रहे दलित समाज के एक युवक पर कथित ऊंची जाति की एक महिला ने पत्थर बरसा डाले। उसे गालियां दी कि वह उनके घर के सामने से घोड़ी पर बैठकर कैसे जा सकता है। यह उस देश की घटना है, जहां देश के पहले कानून मंत्री, भारत रत्न और संविधान निर्माता डॉ. भीमराव आंबेडकर के सम्मान में ‘जय भीम’ कहने पर बोधगया में हाल ही में एक स्थानीय दुकानदार ने अंबेडकरवादी बौद्ध समाज के लोगों को अपमानित करने की कोशिश की। तो जय भीम का गाना बजाने, टैटू बनवाने और गाड़ी पर ‘जय भीम’ लिखने पर दलित समाज के युवाओं के साथ मारपीट की जाती है।
उसी समाज के व्यक्ति ने आज देश के सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के पद की शपथ ली है। जस्टिस गवई की यह नियुक्ति भारतीय न्यायपालिका के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। शपथ ग्रहण के तुरंत बाद, जस्टिस गवई ने सार्वजनिक रूप से अपनी मां के पैर छूकर आशीर्वाद लिया, इसने दिलों को जीत लिया।
यह एक ऐसी घटना है, जो लोगों के दिलों में सालों तक बसी रहेगी और जिसकी चर्चा भविष्य में लंबे समय तक होती रहेगी। यही भारतीय लोकतंत्र की ताकत है। यही भारतीय संविधान की ताकत है। यही बाबासाहेब डॉ. आंबेडकर के संघर्षों का परिणाम है।

अशोक दास (अशोक कुमार) दलित-आदिवासी समाज को केंद्र में रखकर पत्रकारिता करने वाले देश के चर्चित पत्रकार हैं। वह ‘दलित दस्तक मीडिया संस्थान’ के संस्थापक और संपादक हैं। उनकी पत्रकारिता को भारत सहित अमेरिका, कनाडा, स्वीडन और दुबई जैसे देशों में सराहा जा चुका है। वह इन देशों की यात्रा भी कर चुके हैं। अशोक दास की पत्रकारिता के बारे में देश-विदेश के तमाम पत्र-पत्रिकाओं ने, जिनमें DW (जर्मनी), The Asahi Shimbun (जापान), The Mainichi Newspaper (जापान), द वीक मैगजीन (भारत) और हिन्दुस्तान टाईम्स (भारत) आदि मीडिया संस्थानों में फीचर प्रकाशित हो चुके हैं। अशोक, दुनिया भर में प्रतिष्ठित अमेरिका के हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में फरवरी, 2020 में व्याख्यान दे चुके हैं। उन्हें खोजी पत्रकारिता के दुनिया के सबसे बड़े संगठन Global Investigation Journalism Network की ओर से 2023 में स्वीडन, गोथनबर्ग मे आयोजिक कांफ्रेंस के लिए फेलोशिप मिल चुकी है।