खुद को सामाजिक न्याय और गरीबों का मसीहा कहने वाले लालू प्रसाद यादव की राजनीति और परिवार खतरे में है. कई घोटाले और वित्तिय अनियमितता के लिए लालू यादव का पूरा परिवार ही जांच एजेंसियों के शिकंजे में है. तो ताजा घटनाक्रम में सीबीआई की विशेष अदालत ने लालू यादव को चारा घोटाले में दोषी करार दिया है. फैसला तीन जनवरी को होगा.
इससे पहले पिछले ही दिनों ईडी यानि प्रवर्तन निदेशालय ने लालू परिवार की पटना स्थित तीन एकड़ भूमि जब्त कर ली है. करीब 45 करोड़ रुपये कीमत वाली इसी जमीन पर बिहार का सबसे बड़ा मॉल बन रहा था. हालांकि जमीन जब्त करने की कार्रवाई अस्थायी तौर पर की गई है. इस मामले में प्रवर्तन निदेशालय लालू की पत्नी एवं पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी, उनके बेटे तेजस्वी यादव से पूछताछ कर चुकी है. लालू यादव से भी पूछताछ हुई है. इस मामले में अगर लालू यादव गलत साबित होते हैं तो ईडी जमीन को जब्त कर लेगी. लालू यादव का परिवार और भी कई मामलों में जांच एजेंसियों के निशाने पर है. ऐसे में चारा घोटाले पर फैसला आने के बाद क्या लालू यादव की राजनीति खत्म होने के कगार पर है?
बीते बिहार चुनाव के बाद लालू यादव जिस मजबूती से उभरे थे, वह इतनी जल्दी धाराशायी हो जाएंगे, इसकी कल्पना बड़े-बड़े राजनीतिक विश्लेषकों ने भी नहीं की होगी. राजनीति को जानने वाले सभी लोगों को लगा कि तमाम बाधाओं को चीरते हुए लालू यादव फिर से सामने आ गए हैं. तेजस्वी यादव के उप मुख्यमंत्री बनने के बाद लगा कि उन्होंने अपनी अगली पीढी को स्थापित कर दिया है, लेकिन अचानक सब धाराशायी होता दिख रहा है.
लालू यादव जितनी तेजी से और जितने मजबूत होकर बिहार की सियासत में उभरे थे, बिहार में शायद ही कोई दूसरा उभरा होगा. गरीबों के मसीहा, सामाजिक न्याय के पुरोधा, मुसलमानों के हितैषी जैसे तमाम उपाधि लालू यादव को बिहार की जनता ने दी. सत्ता में आने के बाद लालू यादव अक्सर यह दावा करते थे कि वह बिहार में बंगाल के वामदलों से लंबा शासन चलाकर उसका रिकार्ड तोड़ेंगे. और बिहार की राजनीति को समझने वाले जानते थे कि लालू सच बोल रहे हैं. लालू यादव में वो सारी काबिलियत थी, जिसके बूते वह बिहार की सत्ता पर सालों तक रह सकते थे. लेकिन लालू की ताकत कब उनका अहंकार बन गई, उनको खुद पता नहीं चला. वह भूल गए कि लोकतंत्र में सरकारें वोट से बनती हैं और वोट देने वाली जनता को अहंकार पसंद नहीं है. रही सही कसर चारा घोटाले ने निकाल दी.
लालू यादव अदालत द्वारा दोषी ठहराए जा चुके हैं. नियम के मुताबिक अब वह चुनाव नहीं लड़ सकते. कहते हैं किस्मत दुबारा मौका नहीं देती. लेकिन लालू यादव को बिहार की जनता ने दुबारा मौका दिया. हालांकि वह इस मौके को संभाल नहीं पाएं. राजनैतिक विरोधी लालू की हर उस कमजोरी को ढूंढ़ कर सामने ला रहे हैं जिससे वो उन्हें नुकसान पहुंचा सके. शायद राजनीति का यही चरित्र है. लालू यादव के सामने अपने परिवार और अपनी राजनीति दोनों को बचाने की चुनौती है. लालू यादव के बेटे तेजस्वी यादव का आरोप है कि सभी जांच एजेंसियां दबाव में काम कर रही हैं. वह मामले को हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ले जाने की बात कह रहे हैं. तेजस्वी का कहना है कि लालू एक व्यक्ति नहीं बल्कि विचारधारा हैं, जिन्हें खत्म करना मुश्किल है. तेजस्वी की बातों में कितनी सच्चाई है यह तो वक्त बताएगा, लेकिन सच्चाई यह है कि फिलहाल पूरा लालू कुनबा खतरे में है.

अशोक दास (अशोक कुमार) दलित-आदिवासी समाज को केंद्र में रखकर पत्रकारिता करने वाले देश के चर्चित पत्रकार हैं। वह ‘दलित दस्तक मीडिया संस्थान’ के संस्थापक और संपादक हैं। उनकी पत्रकारिता को भारत सहित अमेरिका, कनाडा, स्वीडन और दुबई जैसे देशों में सराहा जा चुका है। वह इन देशों की यात्रा भी कर चुके हैं। अशोक दास की पत्रकारिता के बारे में देश-विदेश के तमाम पत्र-पत्रिकाओं ने, जिनमें DW (जर्मनी), The Asahi Shimbun (जापान), The Mainichi Newspaper (जापान), द वीक मैगजीन (भारत) और हिन्दुस्तान टाईम्स (भारत) आदि मीडिया संस्थानों में फीचर प्रकाशित हो चुके हैं। अशोक, दुनिया भर में प्रतिष्ठित अमेरिका के हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में फरवरी, 2020 में व्याख्यान दे चुके हैं। उन्हें खोजी पत्रकारिता के दुनिया के सबसे बड़े संगठन Global Investigation Journalism Network की ओर से 2023 में स्वीडन, गोथनबर्ग मे आयोजिक कांफ्रेंस के लिए फेलोशिप मिल चुकी है।