केरल के पहले दलित पुजारी को चाकू मारा

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बीजू नारायण

पलक्कड। देश के दक्षिण में दलितों और कट्टरवादी विचारधारा के विरोधियों पर हमले बढ़ते जा रहे हैं. दक्षिण भारत से ही धर्म और विचारधारा के नाम पर हिंसा का एक और मामला सामने आया है.

यहां आज केरल में एक दलित पुजारी बीजू नारायण को चाकू मार दिया गया. बीजू पर उनके घर के सामने चाकू से हमला किया गया, जिसमें वह बुरी तरह से घायल हो गए. बीजू की हालत फिलहाल स्थिर है, लेकिन इस घटना के बाद बीजू स्तब्ध हैं. धार्मिक कारणों से दलित समाज के किसी व्यक्ति पर हमला करने का इस साल का यह दूसरा मामला है.

पटेल लंबी के रहने वाले बीजू केरल के एक मंदिर के पुजारी थे. पुजारी बनने के लिए उन्होंने काफी मेहनत भी की थी. उन्होंने केरल के त्रावणकोर देवस्वोम बोर्ड से चारों वेदों का अध्ययन किया है. और ऐसा कर के पुजारी बनने वाले वो पहले दलित हैं. इसके बाद से ही वो कई रूढ़िवादी और हिंदुवादी संगठनों के निशाने पर थे.

मनुवादी विचारधारा को मानने वाले तमाम लोग इस बात से खफा थे कि एक दलित आखिर पुजारी कैसे बन गया. इसको लेकर एक खास वर्ग में काफी गुस्सा था. इस हमले से पहले बीजू को धमकियां भी मिल चुकी थी.

आंकड़ों की बात करें तो केरल में विचारधारा के चलते तेजी से हिंसा बढ़ी है. पिछले 17 सालों में वहां 172 से ज्यादा राजनीतिक कार्यकर्ताओं की हत्या हो चुकी है.

भारत की पहली अंतराष्ट्रीय फिल्म बनाएंगे विशाल भारद्वाज

फिल्मकार विशाल भारद्वाज ने मंगलवार को बताया कि वह अपनी आगामी फिल्म को लेकर उत्साहित होने के साथ-साथ घबराए हुए भी हैं. यह ‘जीरो डार्क थर्टी’ का प्रीक्वल है और अल कायदा प्रमुख ओसामा बिन लादेन पर लिखी पुस्तक ‘द एक्जाइल’ पर आधारित होगी. फिल्म का शीर्षक कथित तौर पर ‘ऐबटाबाद’ है और यह माना जाता है कि इसकी कहानी तोरा बोरा और एब्टाबाद में बिताए ओसामा के आखिरी दिनों पर आधारित होगी.

‘कमीने’ के निर्देशक ने ट्विटर पर कहा, “इस नए विषय पर काम को लेकर उत्साहित हूं लेकिन साथ ही घबराहट भी है और क्योंकि यह मेरे लिए पूरी तरह नई संस्कृतियों और भाषाओं की सबसे बड़ी चुनौती है.” भले ही ओसामा बिन लादेन प्राथमिक किरदारों में से एक होंगे, लेकिन इसकी कहानी इब्राहिम के परिप्रेक्ष्य से सुनाई जाएगी, जिसे कई वर्षो तक ओसामा की देखरेख और सुरक्षा के लिए रखा गया था.

 

विशाल भारद्वाज जंगली पिक्चर्स की सहभागिता में इसका सह-निर्माण और निर्देशन करेंगे. अगर फिल्म सफलतापूर्वक बनती है तो यह भारत की पहली अंतर्राष्ट्रीय फिल्म होगी. हालांकि, अभी टीम और कलाकारों का चयन नहीं किया गया है.

डाक विभाग ने निकाली 2,492 पदों की वैकेंसी, जल्‍द करें आवेदन

Chattisgarh Postal Circle में Gramin Dak Sevak के पदों के लिए नोटिफिकेशन जारी किया गया है. इस सरकारी नौकरी के लिए आवेदन करने से पहले रोजगार संबंधी सभी आवश्यक जानकारियां पढ़ लें, उसके बाद ही आवेदन करें. पद का नाम : Gramin Dak Sevak कुल पद की संख्या : 2492 योग्यता : इस भर्ती के लिए आवेदन करने वाले उम्मीदवार का 10वीं पास होना अनिवार्य है. उम्र : 18 से 40 साल के बीच होनी चाहिए. चुनाव प्रक्रिया : 10वीं कक्षा में प्राप्त अंकों के आधार पर चयन किया जाएगा. अंतिम तारीख : आवेदन करने की अंतिम तारीख 20 अक्टूबर 2017 है. कैसे करें आवेदन : आवेदन करने के लिए ऑफिशियल वेबसाइट indiapost.gov.in और appost.in/gdsonline पर जाएं.

दबंग दिल्ली vs पटना पाइरेट्स: पटना ने की 36-34 से जीत दर्ज

काफी प्रयास के बाद भी दंबग दिल्ली प्रो कबड्डी लीग (पीकेएल) के सीजन-5 में अपने घर में हार के सिलसिले को रोक न सकी। पटना पाइरेट्स ने मंगलवार को त्यागराज स्टेडियम में खेले गए मैच में दिल्ली को 36-34 से मात दी। पहले हाफ में पूरी तरह से पिछड़ने के बाद भी दिल्ली ने बेहतरीन वापसी की और पटना जैसी मजबूत टीम को परेशान कर दिया। एक समय स्कोर बराबरी पर था, लेकिन अंत के कुछ पलों में पटना के कप्तान प्रदीप नरवाल ने एक बार फिर बेहतरीन प्रदर्शन करते हुए दिल्ली को जीत से महरूम रखा। प्रदीप ने 14 अंक लिए।

पटना ने बेहतरीन शुरुआत की और चार मिनट के खेल में ही 11-0 की बढ़त ले ली। यहां से दिल्ली ने अपने आप को संभाला और अंक लेने शुरू किए। पहले हाफ के अंत तक दिल्ली 13-18 से पीछे थी।

दूसरे हाफ में मेजबान टीम ने बेहतरीन वापसी की 26वें मिनट में 24-23 से आगे निकल गई। हालांकि पटना ने फिर 27-24 से बढ़त ले ली थी। यहां से दोनों टीमों के बीच बेहतरीन मुकाबला देखा गया। 34वें मिनट में स्कोर 30-30 से बराबर था। अगले पल स्कोर 31-31 से बराबर हो गया। यहां से मैच कहीं भी जा सकता था, लेकिन प्रदीप ने अपनी टीम को हार का मुंह नहीं देखने दिया।

गुजरात में ये तीन युवा बिगाड़ सकते हैं भाजपा का सियासी गणित

Three young

अहमदाबाद। गुजरात विधानसभा चुनाव की सरगर्मियां तेज हो गई हैं. गुजरात की सत्ता पर दो दशक से काबिज बीजेपी के लिए इस बार राह आसान नहीं है. 23 सितंबर को संकल्प दिवस के सौ साल पूरा होने पर गुजरात के वडोदरा पहुंच कर मायावती ने जहां वहां के दलित समुदाय को उनके साथ होने का संकेत दे दिया है तो राहुल गांधी भी मोदी के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं.

लेकिन राजनैतिक दलों के अलावा तीन ऐसे युवा भी हैं जो मोदी और शाह की मुश्किल बढ़ा सकते हैं. इसमें पट्टीदार आंदोलन चलाने वाले हार्दिक पटेल हैं तो वहीं ऊना आंदोलन के बाद तेजी से चर्चा में आए जिग्नेश मेवाणी का नाम भी शामिल है. अल्पेश ठाकुर तीसरा ऐसा नाम है, जो भाजपा के वापस गुजरात की सत्ता में आने का रास्ता मुश्किल बना सकते हैं.

पटेल आरक्षण आंदोलन के जरिए हार्दिक पटेल को प्रदेश ही नहीं बल्कि देश में नई पहचान मिली. हार्दिक पटेल ने आंदोलन के जरिए गुजरात की तस्वीर को बदल कर रख दिया. गुजरात में पटेल समुदाय करीब 20 फीसदी हैं, जो सत्ता बनाने और बिगाड़ने की ताकत रखता है. सीटों की बात करें तो राज्य की 182 विधानसभा सीटों में से 70 सीटों पर पटेल समुदाय का प्रभाव है. पिछले दो दशक से राज्य का पटेल समुदाय बीजेपी का परम्परागत वोटर रहा है, जो फिलहाल नाराज माना जा रहा है.

इसी का नतीजा रहा कि 2015 में हुए जिला पंचायत चुनाव में सौराष्ट्र की 11 में से 8 पर कांग्रेस विजयी रही और बीजेपी को करारी हार का सामना करना पड़ा. विधानसभा चुनाव रहते बीजेपी पटेलों की नाराजगी को दूर नहीं किया तो जीत का सिलसिला जारी रखना आसान नहीं होगा. केशुभाई पटेल जैसे दिग्गज पटेल नेता भी पटेलों को भाजपा के खिलाफ करने में सहायक होंगे.

गुजरात में युवा दलित नेता के तौर पर जिग्नेश मेवाणी ने अपनी पहचान बनाई है. जिग्नेश पेशे से वकील और सामाजिक कार्यकर्ता हैं. मेवाणी ने ऊना में गोरक्षा के नाम पर दलितों की पिटाई के खिलाफ हुए आंदोलन का नेतृत्व किया था ‘आजादी कूच आंदोलन’ में जिग्नेश ने 20 हजार दलितों को एक साथ मरे जानवर न उठाने और मैला न ढोने की शपथ दिलाई थी. मेवाणी के उस आंदोलन से अब भी गुजरात के दलित जुड़े हुए हैं. इस आंदोलन को हर वर्ग का समर्थन मिला. ऊना आंदोलन में दलित मुस्लिम एकता का बेजोड़ नजारा देखा गया. सूबे में करीब 7 फीसदी दलित मतदाता हैं.

अल्पेश ने अन्य पिछड़ा वर्ग के 146 समुदायों को एकजुट करने का महत्वपूर्ण काम किया है. एक रैली के दौरान अल्पेश ने धमकी दी थी कि अगर पटेलों की मांगों के सामने बीजेपी शासित गुजरात सरकार ने घुटने टेके तो सरकार को उखाड़ फेंका जाएगा. अल्पेश लगातार बीजेपी को निशाने पर ले रहे हैं. अल्पेश ने गुजरात के करीब 80 देहात की विधानसभा सीटों पर बूथ स्तर पर प्रबंधन का काम किया है. माना जाता है कि उनके पास ओबीसी समाज का साथ है, जो कि गुजरात में 60 से ज्यादा सीटों पर अपना असर रखता है.

बिजली परियोजना के लिए तेलंगाना को मिलेंगे 4,009 करोड़ रुपये

सार्वजनिक क्षेत्र की पावर फाइनेंस कॉरपोरेशन (पीएफसी) ने तेलंगाना के नलगोंडा जिले में 4,000 मेगावाट क्षमता का बिजली संयंत्र स्थापित करने के लिए राज्य को 4,009 करोड़ रुपये की वित्तीय सहायता देने की प्रतिबद्धता जताई है।

पीएफसी ने एक बयान में कहा कि उसने तेलंगाना पावर जेनरेशन कॉरपारेशन लि. (टीएसजीईएनसीओ) को 800-800 मेगावाट क्षमता की पांच इकाइयां लगाने के लिए 4009 करोड़ रुपये का मियादी कर्ज मंजूर किया है। कोयला आधारित याद्री तापीय बिजली संयंत्र तेलंगाना के नलगोंडा जिले में लगाया जाएगा। इसमें अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी यानी सुपर क्रिटिकल प्रौद्योगिकी का उपयोग होगा। याद्री तापीय बिजली संयंत्र 2978.4 करोड़ यूनिट बिजली पैदा करेगा और इससे भविष्य में तेलंगाना की बिजली जरूरतें पूरी होंगी।

परियोजना के लिए कर्ज को लेकर पीएफसी और टीएसजीईएनसीओ के अधिकारियों के बीच हाल ही में हैदराबाद में एक समझौता हुआ। इस मौके पर पीएफसी के चेयरमैन और प्रबंध निदेशक राजीव शर्मा, टीएसजीईएनसीओ के चेयरमैन और प्रबंध निदेशक डी प्रभाकर राव तथा अन्य अधिकारी मौजूद थे।

‘जातिवादी राम ने दलित ऋषि की हत्या की, गर्भवती पत्नी को जंगल भेजा’

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Shambuk yatra

बेंगलुरू। वारंगल में कांचा इलैया पर हमला होने के बाद, अब कन्नड़ के मशहूर लेखक हिंदूवादियों के निशाने पर है. कन्नड़ लेखक केएस भगवान ने कर्नाटक पुलिस से सुरक्षा की मांग की है.

दरअसल, केएस भगवान ने एक पब्लिक स्पीच में भगवान राम पर टिप्पणी की है. केएस भगवान ने कहा है राम कोई भगवान नहीं थे. वो सिर्फ एक इंसान थे जिनमें खूबियां थी. उन्होंने कहा कि राम ने सिर्फ 11 साल राज किया. जिसमें उन्होंने अपनी गर्भवती पत्नी को जंगल भेज दिया और दूसरा ब्राह्मण के कहने पर दलित शम्बुक की हत्या कर दी.

केएस भगवान ने राम को जातिवादी बताया. उन्होंने कहा कि राम ब्राह्मणों की पूजा करते थे. राम ने दलित की हत्या की थी. इसके बाद उन्होंने कहा कि गीता में जातिवाद की बात कही गई है. इसके बाद उन्होंने शंकराचार्य पर भी टिप्पणी की. इसके बाद उन्होंने राम मंदिर बनाए जाने की मांग पर सवाल खड़े करते हुए कहा कि ये लोगों को खुद सोचना चाहिए.

केएस भगवान ने कर्नाटक सरकार से सुरक्षा की मांग की है. के एस भगवान हिन्दू धर्म पर लिखते रहते हैं. वे अनुवादक और तर्कवादी माने जाते हैं. पुलिस उन पर पहले भी धार्मिक भावनाएं भड़काने का केस दर्ज कर चुकी है.

BHU आंदोलन का राजनीतिकरण छात्राओं के लिए अभिशाप

bhu protest

बीएचयू प्रकरण में न्‍यायिक जांच के आदेश से एक अध्‍याय समाप्‍त हो चुका है, कुछ बातें कही जानी चाहिए जो अब तक नहीं कही गई हैं. सबसे पहली बात उन लड़कियों के बारे में, जो वाकई अपनी सुरक्षा से खौफ़ज़दा थीं और धरने पर बिना किसी सियासी संगठन के उकसावे के बैठी थीं. अगर हम पूर्वांचल के समाज को थोड़ा भीतर तक समझते हों, तो हमें सबसे पहले इनकी चिंता होनी चाहिए. मुझे शक़ है कि छुट्टियों पर घर जाने के बाद ये अपनी पढ़ाई पहले की तरह जारी रख पाएंगी. अखबारों और चैनलों पर इनका चेहरा आने के बाद माता-पिता और परिवार का जो दबाव इन्‍हें झेलना होगा, उसकी कल्‍पना हम-आप सहज नहीं कर सकते. इस लिहाज से देखें तो एक शांतिपूर्ण धरने को अचानक इतनी हाइप मिलना और इसका राजनीतिकरण कई लड़कियों के लिए अभिशाप बनकर उभरेगा.

दूसरी बात, चूंकि विश्‍वविद्यालय में नियुक्तियों को लेकर बीते दो साल से ठाकुर बनाम ब्राह्मण की लड़ाई चल रही थी और इसे तानने का एक बहाना खोजा जा रहा था, सो जिन लोगों ने भी छात्रा सुरक्षा की घटना का इस्‍तेमाल अपने बिरादरी के हित में करने की कोशिश की है उन्‍होंने प्रकारांतर से परिसर का नुकसान किया है. इसमें उन छात्र-छात्राओं का भी पर्याप्‍त हाथ है जो लगातार सुरक्षा के नाम पर हुए धरने को अराजनीतिक बता रहे थे, लेकिन मूल में वे सब अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़े हुए थे. एबीवीपी की छात्रा की अगुवाई में शुरू किया धरना आखिर अराजनीतिक कैसे हो सकता है, यह बात भी सोची जानी चाहिए.

तीसरी बात उन संगठनों और लोगों की जो बीएचयू के मामले को बनारस से आगे ले गए हैं. इनमें ज्‍यादातर नागरिक समाज के संगठन, वामपंथी छात्र संगठन और दिल्‍ली के पेशेवर आंदोलनकारी लोग हैं. इन लोगों को किसी भी संघर्ष में हाथ डालने से पहले आंदोलनों की स्‍थानीय प्रकृति और अंतर्विरोधों को समझना चाहिए. किसी आंदोलन का व्‍यापक हो जाना अच्‍छी बात हो सकती है, लेकिन यह ध्‍यान रखा जाना चाहिए कि आंदोलनकारी ताकतें अनजाने में किसी दूसरे के पाले में न खेलने लग जाएं. मुझे लगता है कि दो दिन जबान बंद रखने के बाद अचानक चैनलों पर नमूदार हुए कुलपति ने एक झटके में आंदोलनकारी लोगों, संगठनों और मीडिया को अपने एजेंडे का हिस्‍सा बना लिया है. अगर कुलपति जाते भी हैं, तो यह आरएसएस के भीतर ठाकुर लॉबी की जीत होगी. ऐसे में वाम संगठनों की भूमिका बेगानी शादी में अब्‍दुल्‍ला दीवाने से ज्‍यादा की नहीं रह जाएगी.

बीएचयू एक विशाल ब्‍लैक होल है. यहां उठा आंदोलन उस ब्‍लैक होल से निकला था और एक झटके में उसी में समा गया. बीच के वक्‍फ़े में उसे हाइजैक करने की बहुत सारी कोशिशें हुई हैं. इससे किसी का वास्‍तव में भला नहीं हुआ है. हां, नुकसान बेशक होगा. उन्‍हीं लड़कियों का, जिन्‍होंने ईमानदारी से अपनी आवाज़ उठायी थी. दिल्‍लीवाले इस बात को कभी नहीं समझेंगे क्‍योंकि उन्‍हें हर नए नारे में सत्‍ता परिवर्तन का अक्‍स ही दिखता है. बनारस को अगर दिल्‍ली के आधुनिक मूल्‍य समझने की ज़रूरत है, तो दिल्‍ली के लोगों को भी बनारस के पारंपरिक समाज को समझना होगा. बनारस जैसा ठहरा हुआ समाज धीरे-धीरे बदलता है. इसे धीरे-धीरे अपनी गति से ही बदलने दें, तो बेहतर.

– यह लेख अभिषेक श्रीवास्तव ने लिखा है. लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं.

मनमोहन सिंह ने खोला था विदेशी निवेश का रास्ता

Manmohan Singh

मेरे जवाब से बेहतर है मेरी खामोशी, न जाने कितने सवालों की आबरू रख ली। 27 अप्रैल, 2012 को संसद में उस वक्त के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने ये शेर पढ़ा था. उन दिनों यूपीए सरकार हर मोर्चे पर फेल हो रही थी. घोटाले पर घोटाले उजागर हो रहे थे, विपक्ष मनमोहन सिंह को बार-बार बोलने के लिए उकसा रहा था, उनकी चुप्पी पर सवाल उठ रहे थे, उन्हें ‘मौन’मोहन सिंह का खिताब दिया जा रहा था. फिर भी इस सरदार की चुप्पी नहीं टूटी. जब टूटी तो वही शेर पढ़ा, जो मैंने ऊपर लिखा है.

मनमोहन सिंह जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी के बाद देश में सबसे ज्यादा वक्त तक प्रधानमंत्री रहे. देश के सबसे ताकतवर पद पर रहे, लेकिन कमजोर प्रधानमंत्री के तौर पर सबसे ज्यादा बदनाम भी हुए. एक ऐसे प्रधानमंत्री, जिनकी खामोशी को विपक्ष ने चुनावों में मुद्दा तक बना लिया. पहली बार ऐसा हुआ कि प्रधानमंत्री कार्यालय को बाकायदा प्रेस कान्फ्रेंस करके बताना पड़ा कि प्रधानमंत्री रहते हुए मनमोहन सिंह ने कितनी बार चुप्पी तोड़ी है.

मनमोहन सिंह न तो कभी राजनीति में रहे और न ही राजनीति से उनका कोई खास लेना-देना रहा. हालात की मजबूरियों ने उन्हें प्रधानमंत्री पद तक पहुंचाया तो मजबूर और कमजोर प्रधानमंत्री का तमगा उनके नाम के आगे से बीजेपी ने कभी हटने नहीं दिया.

दस साल की सत्ता में मनमोहन सिंह ने बहुत कुछ देखा. देश को विकास की राह पर चलते देखा तो अपनी ही सरकार को भ्रष्टाचार की गर्त में जाते देखा. कॉमनवेल्थ गेम में करोड़ों का वारा न्यारा करने वाला कलमाड़ी देखा तो किसी राजा का अरबों का टूजी घोटाला देखा. ‘कोयले’ की कालिख ने तो मनमोहन सिंह का भी दामन मैला कर दिया.

तो क्या भारत के राजनीतिक इतिहास में मनमोहन सिंह को सबसे मजबूर और कमजोर प्रधानमंत्री के तौर पर आंका जाएगा? क्या सबसे भ्रष्टाचारी सरकार चलाने वाले प्रधानमंत्री के तौर पर याद किए जाएंगे? क्या रिमोट कंट्रोल से चलने प्रधानमंत्री के तौर पर इतिहास याद करेगा मनमोहन सिंह को? ये सवाल मनमोहन सिंह को भी भीतर से चाल रहे थे. तभी तो सत्ता के आखिरी दिनों में उन्होंने कहा था-मुझे उम्मीद है कि इतिहास उदारता के साथ मेरा मूल्यांकन करेगा.

मनमोहन में काबीलियत की कमी नहीं थी. उनकी ईमानदारी को लेकर कभी कोई सवाल नहीं उठा. उनके कमिटमेंट पर कोई सवाल नहीं उठा. मनमोहन सिंह, जो रिजर्व बैंक के गवर्नर रहे, चंद्रशेखर ने जिन्हें प्रधानमंत्री बनने के बाद अपना वित्तीय सलाहकार बनाया. राजीव गांधी ने जिन्हें प्लानिंग कमीशन का उपाध्यक्ष बनाया, नरसिंह राव ने जिन्हें बुलाकर देश का वित्तमंत्री बनाया था.

दरअसल नरसिंह राव कुशल कप्तान थे, मनमोहन सिंह उनकी टीम के ‘सचिन तेंदुलकर थे’. वो 1991 का साल था, जब मनमोहन सिंह देश के वित्त मंत्री बने थे. तब अर्थव्यवस्था गर्त में जा रही थी. देश का सोना गिरवी रखने की नौबत आ चुकी थी. महंगाई चरम सीमा पर थी. मनमोहन ने जब आर्थिक सुधारों की छड़ी घुमाई तो कायापलट होने लगा. विपक्ष मनमोहन पर सवालों की बारिश कर रहा था, लेकिन मनमोहन के सिर पर छतरी ताने नरसिंह राव खड़े थे. मनमोहन सिंह ने विदेशी निवेश का रास्ता खोल दिया था. जिस तरह से आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खोल रहे हैं. नतीजा ये हुआ कि आर्थिक सुधार रंग लाने लगे. देश का गिरवी रखा सोना भी वापस आया. अर्थव्यवस्था भी पटरी पर लौटी. 1991-92 में जो जीडीपी ग्रोथ सिर्फ 1.3 थी, वो 1992-93 में 5.1 और 1994-95 तक 7.3 हो गई. उदारीकरण के चलते इन्फार्मेशन टेक्लनोलॉजी और टेलिकॉम सेक्टर में क्रांति हुई और उन दिनों इस क्षेत्र में करीब 1 करोड़ लोगों को रोजगार मिला. ये मनमोहन सिंह की बतौर खिलाड़ी जीत थी तो उससे बड़ी जीत नरसिंह राव की कप्तानी की भी थी.

2004 में मनमोहन सिंह जब खुद कप्तान (प्रधानमंत्री) बने तो पहले पांच साल उनकी सरकार बड़े मजे में चली. कई मोर्चे फतेह किए, सड़कें बनीं, अर्थव्यवस्था को पंख लगे, जीडीपी ग्रोथ 8.1 तक पहुंची. मनमोहन सरकार ने सूचना का अधिकार देकर जनता के हाथों में एक बहुत बड़ी ताकत थमाई. लालकृष्ण आडवाणी शेरवानी पहने खड़े रह गए, 2009 में देश की जनता ने फिर मनमोहन को सत्ता के सिंहासन पर बिठा दिया. ये मनमोहन सिंह के काम का इनाम था. लेकिन दूसरी पारी में मनमोहन न खुद संभल पाए और न सरकार संभाल पाए. बस रिमोट कंट्रोल पीएम बनकर रह गए.

यूपीए-1 में मनमोहन सिंह ने जितना कमाया था, यूपीए-2 में सब गंवा दिया. घोटालों की झड़ी लग गई, महंगाई आसमान छूने लगी. पाकिस्तानी सैनिक हमारे सैनिकों के सिर तक काट ले गए. चीन भारत की सीमा में कई बार घुस आया. मनमोहन सिंह की कई बार कांग्रेस के भीतर भी बेइज्जती हुई, लेकिन उन्होंने इस्तीफा नहीं दिया, बाकायदा पद पर बने रहकर वफादारी की कीमत चुकाई. तमाम आरोपों का ठीकरा उनके सिर फोड़ा गया, वे खामोश रहे. ये मनमोहन सिंह की चुप्पी नहीं थी, वे चुपचाप सत्ता का ‘विष’ पी रहे थे. जुबान खोलते तो उनके ही आसपास के कई खद्दरधारी जेल में होते, चुप रहे, बहुतों की इज्जत बचा ली.

मनमोहन सिंह बद नहीं थे, लेकिन बदनाम ज्यादा हो गए. मनमोहन सिंह की जिंदगी नाकामियों और कामयाबियों की दास्तानों से भरी पड़ी है. इतिहास भी उन पर फैसला करने में हमेशा कश्मकश में रहेगा. उनकी आलोचना तो हो सकती है, लेकिन उन्हें नजरअंदाज करना उनके साथ बेईमानी होगी.

– यह लेख विकास मिश्रा ने लिखा है. लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं. इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े हैं.

रिटायरमेंट से 3 दिन पहले पड़ी रेड, मिली 500 करोड़ की संपत्ति

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officer

विशाखापत्तनम। आंध्र प्रदेश में भ्रष्टाचार निरोधक दल (एंटी करप्शन ब्यूरो) ने एक निगम अधिकारी को आय से अधिक संपत्ति के मामले में गिरफ्तार किया है. विशाखापत्तनम में अधिकारी के घर पर छापे के दौरान एसबी को 500 करोड़ की संपत्ति बरामद हुई. सबसे हैरान की बात तो ये है कि ये अधिकारी तीन दिन बाद रिटायर होने वाला था. मामले में एससीबी ने जिस अधिकारी को गिरफ्तार किया है उसका नाम गोला वेंकटा रघुरामी रेड्डी है. स्टेट टाउन प्लानिंग के डाइरेक्टर हैं, जो कि म्यूनिसिपल एडमिनिस्ट्रेशन डिपार्टमेंट के अंतर्गत काम करता है. एससीबी ने अधिकारी के घर समेत 15 स्थानों पर छापेमारी की, जिसमें विसाखापतनम, विजयवाड़ा, तिरूपति और महाराष्ट्र का शिरडी शामिल है.

रेड्डी बुधवार को रिटायर होने वाले हैं. अपनी रिटायरमेंट की खुशी के मौके पर गोला रेड्डी अपने रिश्तेदारों और दोस्तों के लिए विदेश में एक ग्रैंड पार्टी का आयोजन करने वाला था. रेड्डी ने पार्टी में शामिल होने वाले लोगों के लिए हवाई टिकट भी खुद ही बुक कराए थे. रेड्डी का शिरडी में सांई सूरज कुंज नाम से खुद का होटल है. इसके अलावा विजयवाड़ा के पास गन्नावरम में 300 एकड़ मंहगी जमीन भी मौजूद है. एसीबी के अफसरों ने गोला रेड्डी के घर से 50 लाख रुपए कैश बरामद किया है.

एसीबी डायरेक्टर जनरल आरपी ठाकुर ने बताया कि सोमवार की सुबह छापेमारी शुरू की गई और ये मंगलवार तक चलती रही. उन्होंने बताया कि जब्त संपत्ति की कीमत 500 करोड़ से अधिक की हो सकती है. उन्होंने ये भी कहा कि अभी रेड्डी के बैंक खातों और लॉकरों को खोलना बाकी है. यहां हमें और भी संपत्ति का पता चलेगा. अधिकारी ने बताया कि रेड्डी को आय से अधिक संपत्ति रखने के मामले में गिरफ्तार किया गया है.

उन्होंने बताया कि रेड्डी की मासिक आया लगभग एक लाख रुपये है. एसीबी के सूत्रों के मुताबिक एंटी करप्शन ब्यूरो की 15 टीमों ने एक साथ अलग-अलग ठिकाने पर छापे मारी की थी. गोला रेड़्डी के घर से एसीबी की टीम को वॉशिग में मशीनों में कई किलो सोना और 19 करोड़ के हीरे जेवरात बरामद किए है.

अंडरग्राउंड मेट्रो में धमाका, 5 लोग घायल

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london metro

लंदन। लंदन मेट्रो में फिर धमाके की खबर आ रही है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक लंदन के टावर हिल स्टेशन की अंडरग्राउंड ट्रेन में धमाका होने की खबर आ रही है. खबर है कि इस आग में महिलाएं और बच्चों सहित पांच लोग घायल हो गए हैं. हालांकि धमाके के कारणों के बारे में अभी पता नहीं चल पाया है. घटना के बाद स्टेशन पर ट्रेनों की आवाजाही रोक दी गई है.

ब्रिटिश ट्रांसपोर्ट पुलिस ने ट्वीट किया है कि मोबाइल फोन के चार्जर में आग लगने की वजह से आग लगी है. प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार उन्होंने एक बैग से विस्फोटक की गंध आ रही थी. इसके बाद टावर हिल स्टेशन पर अफरातफरी मच गई. ब्रिटिश ट्रांसपोर्ट पुलिस ने बताया कि पुलिस को आग की सूचना की कॉल मिली थी.

खबर के मुताबिक छोटे धमाके के बाद ऐसिड की बदबू आने की बात भी कही जा रही है. प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार विस्फोट फोन चार्जर या फिर बैट्री पैक से हुआ होगा. चश्मदीदों के अनुसार इस घटना में 5 लोग घायल हुए हैं.

गौरतलब है कि पिछले कुछ सालों से लंदन लगातार आतंकियों के निशाने पर है. दो सप्ताह पहले भी लंदन के पार्सन्स ग्रीन स्टेशन में एक बाल्टी बम के जरिए धमाका किया गया था. इस हमले में 20 से अधिक लोग घायल हो गए थे. धमाके के बाद घटनास्थल पर अफरातफरी मच गई थी.

केवल आतंकवादी ही नहीं, आजाद आयरलैंड के लिए संघर्ष करने वाले चरमपंथी आयरिश रिपब्लिकन आर्मी (IRA) ने भी ब्रिटेन और आयरलैंड में कई बड़ी वारदातों को अंजाम दिया है.

CPAT 2017 की एप्‍लीकेशन जमा करने की लास्‍ट डेट बढ़ी

लखनऊ विश्वविद्यालय ने संयुक्त प्री आयुष टेस्ट (सीपीएटी 2017) के लिए ऑनलाइन आवेदन जमा करने की अंतिम तिथि बढ़ा दी है. उम्मीदवार जिन्होंने परीक्षा के लिए अभी तक आवेदन नहीं किया है, अब वह 27 सितंबर 2017 तक आवेदन कर सकते हैं. लखनऊ विश्वविद्यालय 4 अक्टूबर को परीक्षा आयोजित करेगा और एडमिट कार्ड 29 सितंबर से उपलब्ध होगा. परीक्षा योग्‍य उम्मीदवारों को चुनने और उत्तर प्रदेश में बीएएमएस, बीएमएस और बीएचएमएस पाठ्यक्रमों में प्रवेश देने के लिए आयोजित की जाएगी. परीक्षा का विवरण सीपीएटी 2017 की आधिकारिक वेबसाइट पर cpatup2017.in पर उपलब्ध है.

परीक्षा आयोजित करने के बाद, विश्वविद्यालय 6 अक्टूबर को आंसर की जारी कर सकता है. विश्वविद्यालय उम्मीदवारों को 8 अक्टूबर 2017 तक जारी किए गए प्रोविजनल आंसर की पर आपत्तियों उठाने की अनुमति देगा.

उम्मीदवार 12 अक्टूबर 2017 को अंतिम परिणाम की उम्मीद कर सकते हैं।

इसी तरह, लखनऊ विश्वविद्यालय एमबीए (2018-2019) में एडमिशन के लिए भी ऑनलाइन आवेदन स्वीकार कर रहा है. ‘यूनिवर्सिटी ग्रांट्स कमीशन द्वारा मान्यता प्राप्त किसी भी यूनिवर्सिटी से 10 + 2 + 3 सिस्टम के साथ किसी भी स्ट्रीम में स्नातक स्तर की पढ़ाई पूरी करने वाले छात्र एमबीए कार्यक्रमों में एडमिशन ले सकते हैं. उम्मीदवार के ग्रेजुएशन लेवल पर न्यूनतम 50 फीसद अंक भी होने चाहिए. हालांकि अनुसूचित जाति / अनुसूचित जाति के उम्मीदवारों के लिए ग्रेजुएशन लेवल पर न्यूनतम पास प्रतिशत 45 फीसद होगा.

कमल हासन ने दिए भाजपा के साथ जाने के संकेत

kamal Hasaan

नई दिल्ली। दक्षिण के सुपरस्टार माने जाने वाले कमल हासन राजनीति में आने की तैयारी में हैं. कमल हासन ने टाइम्स ऑफ इंडिया के साथ एक इंटरव्यू में बीजेपी में शामिल होने के संकेत दिए हैं. कमल हासन ने अपनी खुद की राजनीतिक पार्टी बनाने की घोषणा की थी. अपने इस इंटरव्यू में कमल हासन ने अपनी विचारधारा पर किए गए सवाल पर ये संकेत दिया. उनसे पूछा गया था क्या वो अपनी लेफ्ट की विचारधारा पर ही टिके रहेंगे? इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि वो अभी फैसला नहीं कर पाए हैं. ऐसा जरूरी नहीं है.

उन्होंने कहा कि उनका मुख्य उद्देश्य जनता की सेवा करना है, अगर इसके लिए उन्हें दूसरी विचारधारा में भी शामिल होना पड़े, तो वो होंगे. लेकिन अभी ऐसा कुछ फैसला नहीं लिया गया है.

क्या वो बीजेपी के साथ गठबंधन करेंगे? सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि अगर मेरी विचारधारा प्रभावित नहीं होगी और बात प्रशासन की होगी तो फिर गठबंधन की संभावना हो सकती है लेकिन इसमें राज्य की भलाई प्राथमिकता होगी. मुझे नहीं पता है कि उन्हें मेरी विचारधारा से कोई समस्या है. वैसे भी अगर लोगों की भलाई की बात आए तो, किसी भी पार्टी में शामिल होने में कोई समस्या नहीं होनी चाहिए.

उन्होंने कहा है कि वो गठबंधन के चक्कर में कोई समझौता नहीं करेंगे. उन्होंने कहा कि अगर समझौते के तौर पर मुझसे ये कहा जाए कि मैं थोड़ा भ्रष्टाचार बर्दाश्त कर लूं तो ये मुझसे नहीं होगा. ये वैसा ही है जैसे खाने की प्लेट में अपशिष्ट रख दिया जाए.

बता दें कि हाल ही में कमल हासन ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से मुलाकात की थी इसके बाद से ही उनके आम आदमी पार्टी के साथ जाने को लेकर कयास लगाए जाने लगे थे.

सलमान ने जा़हिर की पिता बनने की इच्छा

बॉलिवुड स्टार सलमान खान भी करन जौहर की राह पर चल सकते हैं. अपने टीवी शो बिग बॉस के पहले उन्होंने अपने फैंस को यह कहकर खुशी दे दी है कि वह पिता बनने के बारे में सोच रहे हैं. दऱअसल सलमान ने एक इंटरव्यू में कहा कि उन्हें बच्चों से लगाव है और वह बिना शादी किए ही पिता बनना चाहते हैं.

50 की उम्र पार कर चुके इस बॉलिवुड अभिनेता ने सिंगल फादर बनने की इच्छा जताई. अगर सलमान सिंगल फादर बनते हैं तो वह भी करन जौहर और तुषार कपूर जैसे सितारों की लिस्ट में शामिल हो जाएंगे. सलमान ने इंटरव्यू में कहा, ‘मेरे पैरंट्स चाहते हैं कि मैं शादी कर सेटल हो जाऊं. मैं पिता बनना चाहता हूं और हो सकता है कि बिना शादी किए सिंगल फादर बनूं.’

फिलहाल सलमान खान अपने टीवी शो की तैयारी में बिजी हैं. सलमान ढाई दशक के करियर में उनका नाम कई अभिनेत्रियों से जुड़ा लेकिन शादी तक बात नहीं पहुंच सकी. सलमान की पिछली फिल्म ट्यूबलाइट कुछ कमाल नहीं कर पाई और अभी वह टाइगर जिंदा है की शूटिंग भी कर रहे हैं.