लंदन/नई दिल्ली। भारत के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस बी.आर. गवई ने हाल ही में लंदन के ग्रेज़ इन में भारत रत्न डॉ. भीमराव आंबेडकर को ऐतिहासिक श्रद्धांजलि अर्पित की। यही वह प्रतिष्ठित संस्थान है जहां डॉ. आंबेडकर ने 1920 के दशक में अपनी वकालत की शिक्षा ग्रहण की थी, और जहां से उन्होंने भारतीय न्याय प्रणाली को बदलने की नींव रखी।
इस दौरान सीजेआई गवई ने कहा, “यह वही स्थान है जहां डॉ. आंबेडकर ने अपने कानूनी चिंतन को आकार दिया, और जो आगे चलकर भारतीय संविधान के निर्माण का आधार बना। आज यहां खड़े होकर उनके योगदान को स्मरण करना मेरे लिए व्यक्तिगत रूप से गौरव का विषय है।” उन्होंने यह भी कहा कि एक दलित पृष्ठभूमि से आने वाले व्यक्ति के रूप में उनका सर्वोच्च न्यायालय के शीर्ष पद तक पहुंचना, डॉ. आंबेडकर की उस दूरदर्शिता का परिणाम है जिसमें उन्होंने समानता और न्याय के सिद्धांतों को भारत के संविधान में सुनिश्चित किया।
इस मौके पर ग्रेज़ इन द्वारा डॉ. आंबेडकर की दुर्लभ तस्वीरें, उनके प्रवेश प्रपत्र, और अन्य ऐतिहासिक दस्तावेज भी प्रदर्शित किए गए। ये वही दस्तावेज हैं जिन्होंने एक अछूत कहे जाने वाले युवक को दुनिया के सर्वश्रेष्ठ विधि संस्थानों में प्रवेश दिलाया था। इस कार्यक्रम में यूके सुप्रीम कोर्ट की पूर्व जज लेडी जस्टिस आर्डेन, भारत सरकार के कानून राज्य मंत्री अर्जुन राम मेघवाल, सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश विक्रम नाथ, भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और भारत के उच्चायुक्त विक्रम दोराईस्वामी भी मौजूद थे।
गौरतलब है कि डॉ. आंबेडकर ने 1922 में ग्रेज़ इन में लॉ की पढ़ाई पूरी की थी। उन्होंने न केवल बैरिस्टर की डिग्री प्राप्त की, बल्कि आगे चलकर भारतीय संविधान की रचना में केंद्रीय भूमिका निभाई। इस ऐतिहासिक अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में भारत के सर्वोच्च न्यायालय के दलित मुख्य न्यायाधीश द्वारा उन्हें श्रद्धांजलि देना, सामाजिक न्याय की दिशा में एक गहरी प्रतीकात्मक जीत मानी जा रही है।
