बस्तर। भारत में हर नुक्कड़ और चौराहे पर आपको तमाम देवताओं के मंदिर मिल जाएंगे. सुबह से शाम तक यहां भक्तों का रेला लगा रहता है. मंदिरों का आलम तो यह है कि यहां राजस्थान के हाई कोर्ट में उस मनु की मूर्ति भी है, जिसके षड्यंत्र की शिकार भारत के बहुजन आज भी हैं. लेकिन इन तमाम आडंबरों के बीच छत्तीसगढ़ में एक मंदिर ऐसा भी है जो एक उम्मीद जगाता है. प्रदेश के बस्तर जिला मुख्यालय से करीब 35 किमी के फासले पर तोकापाल ब्लॉक में बुरंगपाल गांव है. दो हजार की आबादी वाला यह गांव देश में अकेला ऐसा गांव है, जहां भारत के संविधान का मंदिर है.
इसकी कहानी
करीब 25 साल पहले आदिवासियों ने स्टील प्लांट के खिलाफ एक आंदोलन किया था. इसके बाद यह मंदिर स्थापित हुआ. अब एक बार फिर इस गांव में ग्रामीण लामबंद हो रहे हैं. वजह है 9 मई 2015 को दंतेवाड़ा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने साइन हुए अल्ट्रा मेगा स्टील प्लांट को लेकर एमओयू. ग्रामीण इसका विरोध कर रहे हैं. हालांकि स्टील प्लांट का विरोध 2014 से चल रहा है. अबतक 14 गांव विरोध में चुके हैं. 1992 में 6 अक्टूबर को इस इलाके के मावलीभाटा में एसएम डायकेम के स्टील प्लांट का भूमिपूजन और शिलान्यास हुआ था.
लेकिन ग्रामीणों का आरोप था कि उनसे इस बारे में कोई सलाह नहीं ली गई, जबकि संविधान की पांचवीं अनुसूची में यह जरूरी था. प्लांट के विरोध में आदिवासी लामबंद हो गए. आंदोलन की अगुवाई यहां कलेक्टर रह चुके समाजशास्त्री डॉ. ब्रह्मदेव शर्मा ने की थी. उन्होंने बुरुंगपाल गांव में ही डेरा जमा लिया. तब उन्होंने यह मंदिर यहां बनाया था. इसी जगह से पूरा आंदोलन संचालित होता था. डॉ. ब्रह्मदेव शर्मा करीब 3 साल यहां रहे. लगातार यहां बैठकें होती थीं. इसके बाद 73 वां संविधान संशोधन विधेयक पारित हुआ.
हालांकि मंदिर का कोई कमरा नहीं है और ही इस पर छत है, लेकिन ग्रामीण इस स्थान का बेहद सम्मान करते हैं. 24 दिसंबर 1996 को तैयार हुआ मंदिर करीब 6 फीट लंबा और 8 फीट चौड़ा चबूतरे पर बना है. जिस पर पीछे की ओर 6 फीट ऊंची और 10 फीट चौड़ी दीवार बनी है. इस दीवार पर भारतीय संविधान में अनुसूचित क्षेत्रों के लिए ग्राम सभा की शक्तियां और इससे संबंधित इबारतें लिखी हैं. लेकिन इसमें ज्यादातर हिस्सा मिट चुका है. लोगों में इस स्थान को लेकर गजब की आस्था है. गांव में त्योहार हो या कोई नया काम शुरू करना हो, पूरा गांव यहीं जुटता है. संविधान की कसमें खाई जाती हैं, इसके बाद ही एक राय होकर काम शुरू करते हैं. यह परंपरा करीब 25 साल से लगातार कायम है. बस्तर जिले के बुरुंगपाल में वह शिलालेख जिसे संविधान का मंदिर मानकर पूजते हैं गांव के लोग.

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