झारखंड में शिक्षा को मजबूती देने और आदिवासी बच्चों के लिए उच्च स्तरीय आवासीय सुविधाएं सुनिश्चित करने की दिशा में राज्य सरकार ने एक और महत्वपूर्ण कदम उठाया है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने हाल ही में राजधानी रांची के करमटोली स्थित ट्राइबल हॉस्टल परिसर में राज्य के अब तक के सबसे बड़े आदिवासी बालक छात्रावास का शिलान्यास किया। इस बहुमंजिला हॉस्टल के बन जाने से राज्य के दूरदराज़ के इलाकों से आने वाले आदिवासी छात्रों को शिक्षा के अवसरों तक पहुँचने में बड़ी राहत मिलेगी। 22 मई 2025 को मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की उपस्थिति में इसका शिलान्यास हो चुका है।
राज्य सरकार की योजना के अनुसार, यह छात्रावास जी+6 मंजिला होगा और इसमें 520 आदिवासी छात्रों के रहने की सुविधा होगी। हॉस्टल में आधुनिक सुविधाओं से युक्त कमरे, अध्ययन कक्ष, लाइब्रेरी, खेलकूद की व्यवस्था, अग्निशमन प्रणाली और लिफ्ट की सुविधा भी होगी। हॉस्टल का परिसर साफ-सुथरा, हरित और सुरक्षित वातावरण प्रदान करेगा, ताकि छात्रों को पढ़ाई में कोई बाधा न हो और वे बिना किसी चिंता के अपनी शिक्षा पर पूरा ध्यान केंद्रित कर सकें।
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने इस अवसर पर कहा कि, “शिक्षा के बिना कोई भी समाज तरक्की नहीं कर सकता। हमारी सरकार ने आदिवासी और पिछड़े वर्ग के बच्चों के लिए आवासीय सुविधाओं को प्राथमिकता दी है। हमारी कोशिश है कि कोई बच्चा सिर्फ इस वजह से पढ़ाई से न छूटे कि उसके पास रहने की उचित व्यवस्था नहीं है।” मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि सरकार बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने के साथ-साथ प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए भी तैयार कर रही है, ताकि वे न केवल झारखंड में बल्कि देश के किसी भी कोने में जाकर अपनी योग्यता साबित कर सकें।
इस परियोजना की कुल लागत लगभग 26 करोड़ रुपये है और इसे 2027 तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है। भवन निर्माण विभाग इसके निर्माण का कार्य देखेगा। अधिकारियों के अनुसार निर्माण कार्य की गुणवत्ता और समयसीमा को लेकर विशेष सतर्कता बरती जाएगी ताकि बच्चों को समय पर बेहतर सुविधा मिल सके।
फिलहाल करमटोली परिसर में कुल 10 छात्रावास संचालित हैं, जिनमें करीब 2,500 आदिवासी छात्र रहते हैं। इनमें कई छात्र सुदूर ग्रामीण इलाकों से आते हैं, जहां स्कूल-कॉलेज तक पहुँच पाना आसान नहीं होता। ऐसे में यह हॉस्टल उनके लिए एक बड़ा सहारा होगा। नई इमारत के बन जाने से और अधिक बच्चों को प्रवेश दिया जा सकेगा और वर्तमान में छात्रावासों की संख्या और सुविधाओं में सुधार होगा।
राज्य सरकार की योजना यहीं तक सीमित नहीं है। मुख्यमंत्री ने घोषणा की है कि आने वाले दिनों में लड़कियों के लिए भी इसी परिसर में 528-बेड वाला आदिवासी बालिका छात्रावास बनाया जाएगा। इसके अलावा इस परिसर में डॉ. भीमराव अंबेडकर के नाम पर एक आधुनिक पुस्तकालय भी स्थापित किया जाएगा, जो बच्चों को अध्ययन और प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए अतिरिक्त संसाधन मुहैया कराएगा।
मुख्यमंत्री ने कहा कि, “डॉ. आंबेडकर ने कहा था कि शिक्षित बनो, संगठित रहो और संघर्ष करो। आज उसी विचार को आगे बढ़ाते हुए हम राज्य के बच्चों को हर वह सुविधा देना चाहते हैं जिससे वे पढ़ाई में पीछे न रहें। हम चाहते हैं कि हमारे बच्चे अफसर बनें, डॉक्टर बनें, इंजीनियर बनें और देश-दुनिया में झारखंड का नाम रौशन करें।”
राज्य सरकार द्वारा शिक्षा क्षेत्र में की जा रही कोशिशों की सराहना समाज के विभिन्न वर्गों से मिल रही है। आदिवासी समुदाय के बुजुर्गों और अभिभावकों ने इस फैसले का स्वागत किया है और कहा कि अब उनके बच्चे बेफिक्र होकर पढ़ाई कर सकेंगे। इससे पहले गाँव के बच्चों को शहर में कमरा लेकर रहना मुश्किल होता था। कई बार महँगा किराया या असुरक्षित माहौल उनकी पढ़ाई में बाधा डालता था। ऐसे में सरकार की यह योजना गरीब और वंचित तबके के लिए बड़ी राहत साबित होगी।
अधिकारी बताते हैं कि छात्रावास में रहने वाले सभी बच्चों को मुफ्त भोजन, अध्ययन सामग्री और मेडिकल सुविधा भी दी जाएगी। साथ ही परिसर में साफ-सफाई और सुरक्षा के लिए चौबीसों घंटे निगरानी का इंतजाम किया जाएगा।
राज्य सरकार ने करमटोली परिसर को आदिवासी छात्रों के लिए एक आदर्श शिक्षण परिसर के रूप में विकसित करने का खाका तैयार किया है। इसके तहत न केवल हॉस्टल बल्कि खेलकूद मैदान, सांस्कृतिक कार्यक्रम स्थल और ई-लाइब्रेरी की भी व्यवस्था की जाएगी। इस अवसर पर बड़ी संख्या में छात्र, अभिभावक और सरकारी अधिकारी मौजूद थे। मुख्यमंत्री ने बच्चों से बातचीत की और उन्हें मन लगाकर पढ़ाई करने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि सरकार बच्चों को प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए कोचिंग, पुस्तकें और इंटरनेट जैसी सुविधाएँ भी देगी, ताकि बच्चे किसी भी स्तर पर कमजोर न पड़ें।
झारखंड सरकार का यह कदम न केवल शिक्षा को सुलभ बनाने की दिशा में मील का पत्थर साबित होगा बल्कि आदिवासी और वंचित समाज के बच्चों को स्वाभिमान और आत्मनिर्भरता का नया अवसर देगा। आने वाले समय में जब ये बच्चे डॉक्टर, इंजीनियर, अफसर और प्रोफेशनल बनकर लौटेंगे तो यह छात्रावास उनके सपनों का साक्षी रहेगा।

पत्रकारिता और लेखन में रुचि रखने वाले सिद्धार्थ गौतम दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वहां वह विश्वविद्यायल स्तर के कई लेखन प्रतियोगिताओं के विजेता रहे हैं। पिछले दो साल से दलित दस्तक से जुड़े हैं और सब-एडिटर के पद पर कार्यरत हैं।