करूर, तामिलनाडु। एक गांव में मनुवादियों ने 200 फीट लंबी और 10 फीट ऊंची दीवार बनाई है। आरोप है कि यह दीवार इसलिए बनाई गई है ताकि गांव के दलितों को थोट्टिया नायकर के इलाकों में जाने से रोका जा सके। दलित समाज के लोग इस दीवार को छुआछूत की दीवार कह रहे हैं। मामला तमिलनाडु के करूर जिले का है। जिले के मुथुलादमपट्टी गांव में बनी इस दीवार से मामला गरमा गया है।
अनुसूचित जाति के तहत आने वाले अरुंथथियार समुदाय के लोगों ने आरोप लगाया है कि थोट्टिया नायकर जाति के हिंदुओं ने ये दीवार बनाई है। उनका आरोप है कि यह दीवार दलितों की आवाजाही को रोकने के लिए बनाई गई है। दलित समाज ने इसे ‘छुआछूत की दीवार’ कहा है।
खास बात यह है कि यह दीवार सरकारी स्वामित्व वाली सार्वजनिक जमीन पर बनाई गई है और यह करूर कलेक्टर कार्यालय से महज एक किलोमीटर दूर स्थित है। “द हिंदू” की रिपोर्ट के मुताबिक, दलितों का कहना है कि उन्होंने जब दीवार निर्माण की जानकारी पाई तो राजस्व अधिकारियों से इसकी शिकायत की। थंथोनी गांव के ग्राम प्रशासनिक अधिकारी ने मौके का निरीक्षण कर थोट्टिया समुदाय को मौखिक रूप से कार्य रोकने को कहा, लेकिन उन्होंने इन निर्देशों की अनदेखी करते हुए दीवार का निर्माण तेजी से पूरा कर लिया।
मामला बढ़ता देख और दलित समाज के विरोध के बाद राजस्व और पुलिस विभाग के अधिकारियों को बीच में आना पड़ा। हालांकि 13 जुलाई और 29 जुलाई को हुई दो बैठकों के बावजूद इसका कोई समाधान नहीं निकाल पाया है।
दलित समुदाय से आने वाले 57 वर्षीय पी. मरुधाई ने कहा, “यह दीवार हमें हमारे ही गांव में अलग-थलग करने का प्रतीक है। यह सीधा-सीधा जातिगत भेदभाव है और हमें अपमानित करने का तरीका।” उनका आरोप है कि मनुवादी लोग उन्हें मंदिर उत्सव के दौरान सार्वजनिक ‘नाटक मंच’ के उपयोग की अनुमति नहीं देते, यहां तक कि जब वे अपने लिए अलग मंच या शौचालय बनाना चाहते हैं, तब भी उन्हें रोका जाता है। रिपोर्ट के मुताबिक, 50 वर्षीय एस. दुरैयासामी ने कहा, “हमें मनुवादियों के इलाकों में बिना चप्पल के ही जाने को मजबूर किया जाता है। अगर हम चप्पल पहनकर चले जाएं, तो वे गालियां देते हैं और चिल्लाते हैं।”
हालांकि दूसरी ओर थोट्टिया नायकर समुदाय के लोग इससे इंकार कर रहे हैं और दीवार बनाने की वजह कुछ और बता रहे हैं। रिपोर्ट के मुताबिक 62 वर्षीय आर. कंदासामी ने आरोपों को सिरे से नकारते हुए कहा, “हमने दीवार इसलिए बनाई ताकि हमारे क्षेत्र में नशे में धुत बाहरी लोग परेशान न करें। यह जगह तो वर्षों से हमारे उपयोग में है।”
तो वहीं प्रशासन इस मामले में गोल-गोल घुमा रहा है। करूर के कलेक्टर एम. थंगवेल ने द हिन्दू से बातचीत में कहा, “मैं अभी यह नहीं कह सकता कि यह छुआछूत की दीवार है या नहीं। मैंने राजस्व विभागीय अधिकारी को जांच का आदेश दिया है और उनकी रिपोर्ट का इंतजार है। रिपोर्ट मिलने के बाद ही स्थिति स्पष्ट की जा सकती है।”
लेकिन यहां बड़ा सवाल यह है कि क्या कोई भी व्यक्ति बिना किसी इजाजत किसी भी सरकारी जमीन पर कोई दीवार बना सकता है? वह भी उस जमीन पर जिससे लोगों का आना-जाना हो। यह दीवार जिस लिए बनाई गई हो, यह साफ है कि यह असंवैधानिक और गैर कानूनी है। अब सवाल यह है कि इस गैर कानूनी दीवार को तुरंत गिराने की बजाय प्रशासन मामले को उलझाए रखने में क्यों जुटा है?

पत्रकारिता और लेखन में रुचि रखने वाले सिद्धार्थ गौतम दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वहां वह विश्वविद्यायल स्तर के कई लेखन प्रतियोगिताओं के विजेता रहे हैं। पिछले दो साल से दलित दस्तक से जुड़े हैं और सब-एडिटर के पद पर कार्यरत हैं।