जाति और आरक्षण की बहस के बीच सरकार की तरफ से एक नया प्रस्ताव आया है। सरकार चाहती है कि प्रशासनिक सेवा के इंटरव्यू में जाति और वर्ण से जुड़े उपनाम, धार्मिक प्रतीकों आदि का कोई उल्लेख नहीं होना चाहिए। यह खबर सामाजिक न्याय मंत्रालय की ओर से आ रही है। सामाजिक न्याय मंत्रालय की तरफ से आ रही इस रिपोर्ट में निजी क्षेत्र में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षण की भी मांग की गई है। कहा जा रहा है कि ‘समाज के उन्नत वर्गों के बराबर नौकरी की सुरक्षा’ देने के लिए इस तरह की व्यवस्था की योजना बन सकती है।
रिपोर्ट के जरिए केंद्र सरकार द्वारा सिफारिश की गई है कि सिविल सेवा और अन्य केंद्रीय या राज्य स्तरीय परीक्षाओं में साक्षात्कार में उम्मीदवारों के जाति उपनाम या विवरण प्रकट नहीं किए जाने चाहिए। ऐसा इसलिए क्योंकि इससे साक्षात्कार के दौरान बहुजनों के खिलाफ भेदभाव की संभावना बढ़ जाती है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि केंद्र और राज्य दोनों स्तरों पर सिविल सेवाओं और अन्य सेवाओं में खुली प्रतियोगिताओं के माध्यम से चयन की प्रक्रिया में व्यक्तित्व परीक्षण/साक्षात्कार के चरण में भेदभाव की संभावना अधिक होती है।
गौरतलब है कि दलित इंडियन चैंबर ऑफ कामर्स (डिक्की) द्वारा बीते सात दशकों में दलित बहुजन समाज के सशक्तिकरण की प्रक्रिया में आ रही समस्याओं पर एक अध्ययन किया गया है। इस अध्ययन पर आधारित इस रिपोर्ट में उक्त अनुशंसाएं की गयी हैं।
अंग्रेजी में खबर पढ़ने के लिए इस लिंक पर जाएं

दलित दस्तक (Dalit Dastak) साल 2012 से लगातार दलित-आदिवासी (Marginalized) समाज की आवाज उठा रहा है। मासिक पत्रिका के तौर पर शुरू हुआ दलित दस्तक आज वेबसाइट, यू-ट्यूब और प्रकाशन संस्थान (दास पब्लिकेशन) के तौर पर काम कर रहा है। इसके संपादक अशोक कुमार (अशोक दास) 2006 से पत्रकारिता में हैं और तमाम मीडिया संस्थानों में काम कर चुके हैं। Bahujanbooks.com नाम से हमारी वेबसाइट भी है, जहां से बहुजन साहित्य को ऑनलाइन बुक किया जा सकता है। दलित-बहुजन समाज की खबरों के लिए दलित दस्तक को सोशल मीडिया पर लाइक और फॉलो करिए। हम तक खबर पहुंचाने के लिए हमें dalitdastak@gmail.com पर ई-मेल करें या 9013942612 पर व्हाट्सएप करें।