नई दिल्ली। पालि भाषा को संविधान की 8वीं सूची में शामिल करवाने के लिए बौद्ध भिक्खुओं और बौद्ध धर्म के अनुयायियों ने आज 9 मार्च को एक शांति मार्च निकाला. इसमें दिल्ली और आस-पास के क्षेत्रों के बौद्ध भिक्खु और उपासकगण शामिल हुए. प्रदर्शनकारियों में इस बात को लेकर रोष था कि भारत की प्राचीन भाषा होने के बावजूद सरकार पालि भाषा की लगातार अनदेखी कर रही है. अम्बेडकर भवन से निकल कर इस मार्च को संसद मार्ग तक जाना था, लेकिन बौद्ध धर्म के दमन को तैयार सरकार ने इसे वहीं पर रोक दिया.
इस शांति मार्च में उपस्थित लोग पालि को 8वीं सूची में शामिल करने के अलावा बुद्ध पूर्णिमा पर राष्ट्रीय अवकाश घोषित करने और देश भर में पालि संस्थान स्थापित करने की मांग कर रहे थे. ये तमाम लोग पालि भाषा को लेकर भारत सरकार के पक्षपाती रवैये से काफी आहत थे.
असल में सम्राट अशोक के शासनकाल में बौद्ध धर्म का काफी विस्तार हुआ था. भारत से होता हुआ यह विस्तार श्रीलंका सहित पूरे एशिया में फैल गया. बौद्ध धर्म का महान ग्रंथ त्रिपिटक पालि भाषा में ही है. भारत और विश्व भर में बौद्ध धर्म को मानने वाले लोगों के धार्मिक आयोजनों के दौरान बौद्ध भिक्खु पालि भाषा में ही सभी धार्मिक क्रियाओं को संपन्न कराते हैं. ऐसे में पालि भाषा का महत्व न सिर्फ भारत के लिए बल्कि विश्व में भारत की साख के लिए भी जरूरी है.
कार्यक्रम के संयोजक भंते चन्द्रकीर्त्ती और अर्चना गौतम ने मांगों के संबंध में शिष्ट मंडल के साथ राष्ट्रपति को ज्ञापन दिया.

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