वीरांगना ऊदा देवी के सम्बंध में अधिक जानकारी का अभाव है. कुछ लेखकों द्वारा उनका वाजिद अली शाह की सेना में आना उनके पति के कारण माना जाता है, तो कुछ लोगों के मुताबिक वह सीधे वाजिद अली शाह की महिला सेना में भर्ती हुई थीं. दरअसल नवाब वाजिद अली शाह ने बड़ी मात्रा में अपनी सेना में सैनिकों की भर्ती की, जिसमें लखनऊ के सभी वर्गों के गरीब लोगों को नौकरी पाने का अच्छा अवसर मिला.
ऊदा देवी के पति मक्का पासी भी वाजिद अली शाह की सेना में भर्ती हो गए. वह काफ़ी साहसी व पराक्रमी थे. वह लखनऊ के गांव उजरियांव के रहने वाले थे. अंग्रेजों ने लखनऊ के चिनहट में हुए संघर्ष में मक्का पासी और उनके तमाम साथियों को मौत के घाट उतार दिया था. अपने पति की मौत के बाद ऊदा देवी पासी अंग्रेजों से बदला लेने का मौका तलाशने लगीं. जिसके बाद उन्होंने 3 दर्जन अंग्रेज सैनिकों को अकेले मार गिराया था. इस कहानी का पूरा जिक्र हम आगे करेंगे.
जहां तक शहीद वीरांगना ऊदादेवी की बात है तो उनके संदर्भ में सबसे पहले लंदन की इंडियन हाऊस लाइब्रेरी में 1857 के गदर से संबंधित कुछ दस्तावेज व अंग्रेज लेखकों की पुस्तकें प्राप्त हुईं जिसके अनुसार ऊदादेवी नवाब वाजिद अली शाह की बेगम हजरत महल की महिला सैनिक दस्ते की कप्तान थीं.
ऊदा देवी ने वर्ष 1857 के ‘प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम’ के दौरान भारतीय सिपाहियों की ओर से युद्ध में भाग लिया था. इस विद्रोह के समय हुई लखनऊ की घेराबंदी के समय लगभग 2000 भारतीय सिपाहियों के शरण स्थल ‘सिकन्दर बाग़’ पर ब्रिटिश फौजों द्वारा चढ़ाई की गयी. 16 नवंबर, 1857 को बाग़ में शरण लिये इन 2000 भारतीय सिपाहियों का ब्रिटिश फौजों द्वारा संहार कर दिया गया था. इस दौरान वीरांगना ऊदा देवी पासी ने अंग्रेजों से सीधा लोहा लिया.
ऊदा देवी ने पुरुषों के कपड़े पहन कर खुद को एक पुरुष सैनिक के रूप में तैयार किया. और एक बंदूक और कुछ गोला-बारूद लेकर एक ऊँचे पेड़ पर चढ़ गयी. उन्होंने हमलावर ब्रिटिश सैनिकों को सिकंदर बाग़ में तब तक प्रवेश नहीं करने दिया, जब तक कि उनका गोला बारूद समाप्त नहीं हो गया. ऊदा देवी 16 नवम्बर, 1857 को 32 अंग्रेज़ सैनिकों को मौत के घाट उतारकर वीरगति को प्राप्त हुईं.
ब्रिटिश सैनिकों ने उन्हें उस समय गोली मारी, जब वे पेड़ से उतर रही थीं. जब ब्रिटिश सैनिकों ने बाग़ में प्रवेश किया, तो उन्होंने ऊदा देवी का पूरा शरीर गोलियों से छलनी कर दिया. इस लड़ाई का स्मरण कराती ऊदा देवी की एक मूर्ति सिकन्दर बाग़ परिसर में स्थापित की गई है.
उनकी वीरता का दस्तावेज विदेशों अखबारों में भी दर्ज किया गया. ‘लंदन टाइम्स’ के संवाददाता विलियम हावर्ड रसेल ने लड़ाई के समाचारों का जो डिस्पैच लंदन भेजा था, उसमें पुरुष वेशभूषा में एक स्त्री द्वारा पीपल के पेड़ से गोलियाँ चलाने तथा अंग्रेज़ सेना को भारी क्षति पहुँचाने का उल्लेख प्रमुखता से किया गया है. संभवतः ‘लंदन टाइम्स’ में छपी खबरों के आधार पर ही बाद में कार्ल मार्क्स ने भी अपनी टिप्पणी में इस घटना को समुचित स्थान दिया था.
कहा जाता है कि उनकी इस स्तब्ध कर देने वाली वीरता से अभिभूत होकर अंग्रेज़ काल्विन कैम्बेल ने हैट उतारकर शहीद ऊदा देवी को श्रद्धांजलि दी थी.
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अशोक दास (अशोक कुमार) दलित-आदिवासी समाज को केंद्र में रखकर पत्रकारिता करने वाले देश के चर्चित पत्रकार हैं। वह ‘दलित दस्तक मीडिया संस्थान’ के संस्थापक और संपादक हैं। उनकी पत्रकारिता को भारत सहित अमेरिका, कनाडा, स्वीडन और दुबई जैसे देशों में सराहा जा चुका है। वह इन देशों की यात्रा भी कर चुके हैं। अशोक दास की पत्रकारिता के बारे में देश-विदेश के तमाम पत्र-पत्रिकाओं ने, जिनमें DW (जर्मनी), The Asahi Shimbun (जापान), The Mainichi Newspaper (जापान), द वीक मैगजीन (भारत) और हिन्दुस्तान टाईम्स (भारत) आदि मीडिया संस्थानों में फीचर प्रकाशित हो चुके हैं। अशोक, दुनिया भर में प्रतिष्ठित अमेरिका के हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में फरवरी, 2020 में व्याख्यान दे चुके हैं। उन्हें खोजी पत्रकारिता के दुनिया के सबसे बड़े संगठन Global Investigation Journalism Network की ओर से 2023 में स्वीडन, गोथनबर्ग मे आयोजिक कांफ्रेंस के लिए फेलोशिप मिल चुकी है।
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