रजवार विद्रोह के नायकों को सम्मान दिलाने आए वंशज

प्रथम स्वतंत्रता आंदोलन के 160 साल और देश की आजादी के 70 साल बाद भी आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभाने वाले कई नायक पीछे छूट गए. न ही उनके नाम पर कोई मूर्ति स्थापित की जा सकी और न ही उनके परिजनों की खोज खबर ली गई. जबकि भारत के प्रथम स्वतंत्रता आंदोलन में नवादा के जवाहिर रजवार, एतवा रजवार औऱ फतेह रजवार की उल्लेखनीय भूमिका रही है. ऐसे गुमनाम नायकों की भूमिका का जिक्र ब्रिटिश दस्तावेजो में भी उपलब्ध है.

ऐसे गुमनाम नायकों को पहचान दिलाने का काम बिंबिसार फाउंडेशन कर रही है. संस्था मेसकौर प्रखंड के सीतामढ़ी के राजवंशी ठाकुरबाड़ी परिसर में गुमनाम नायकों की मूर्ति स्थापित करने की दिशा में काम कर रही है. फाउंडेशन की पहल पर जल्द ही तीनों नायकों की सांकेतिक मूर्ति स्थापित होने वाली है.

अगर इन नायकों की बात करें तो जवाहिर रजवार नारदीगंज प्रखंड के पसई गांव के रहनेवाले थे, जबकि एतवा रजवार गोविंदपुर के कर्णपुर के रहने वाले थे. वहीं फतेह रजवार भी नवादा से जुड़े थे. इनके संघर्ष की कहानी का जिक्र ब्रिटिश दस्तावेजों के अलावा बिहार-झारखंड के स्वतंत्रता संग्राम पुस्तक, पटना केपी जायसवाल शोध संस्थान से प्रकाशित प्रज्ञा भारती जैसे किताबों में मिलती है.

इन नायकों ने भारत पर अंग्रेजी शासन के दौरान उन्हें खूब परेशान किया था. सरकारी कचहरी, बंगले, जमींदार और उसके कारिंदे की संपत्ति विद्रोहियों के निशाने पर थी. विद्रोहियों को जब भी अंग्रेजों के खिलाफ मौका मिलता वो घटना को अंजाम देने से नहीं चूकते थे. तब अंग्रेज अधिकारियों ने विद्रोह पर काबू पाने के लिए विद्रोहियों को चोर औऱ डकैत जैसा नाम देना शुरू कर दिया ताकि आम जनता विद्रोहियों को समर्थन देना बंद कर दे. अंग्रेज इनके विद्रोह से खासे परेशान हो गए. आखिरकार अंग्रेजों ने इनको पकड़ने की मुहिम शुरू कर दी.

27 सितंबर 1957 को जब जवाहिर रजवार अपने करीब 300 अन्य साथियों के साथ विद्रोह की रणनीति बना रहे थे, तभी अंग्रेज सैनिकों ने उन पर हमला कर दिया. इस हमले में जवाहिर रजवार के चाचा फागू रजवार की मौत हो गई और कई अन्य विद्रोहियों के साथ जवाहिर भी जख्मी हो गए. बाद में जख्मी जवाहिर की मौत हो गई. इसके पहले 12 सितंबर 1957 को एतवा की गिरफ्तारी के लिए अंग्रेज और जमींदारों की सेना की एतवा और विद्रोहियों से मुठभेड़ हो गई. इस लड़ाई में एतवा तो बच निकले लेकिन उनके 10-12 साथी शहीद हो गए.

थके अंग्रेजों ने एतवा की गिरफ्तारी के लिए 200 रुपये का इनाम घोषित कर दिया. 9 अप्रैल 1963 को करीब दस हजार पुलिस मिलिट्री और जमींदार की फौज ने एतवा रजवार को गिरफ्तार करने के लिए अभियान चलाया, लेकिन एतवा बच निकले. इसके बाद वीर नायक एतवा रजवार के नेतृत्व में 10 सालों तक छिटपुट विद्रोह चलता रहा. बिंबिसार फाउंडेशन इन नायकों को और उनके शानदार इतिहास को सहेजने की कोशिश में जुटा है.

अशोक प्रियदर्शी

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