देश के हर हिस्से में वंचित समाज के बीच पहुंचना चाहता हूं

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14-15 फरवरी, 2020 को हार्वर्ड युनिवर्सिटी, अमेरिका में इंडिया कांफ्रेंस में ‘कास्ट एंड मीडिया’ विषय पर वक्ता के तौर पर शामिल हुआ

जन्म लेना शुभ है, मृत्यु होना अशुभ। हर दिन कोई न कोई जन्म लेता है, और हर दिन किसी न किसी की मृत्यु होती है। इसलिए मैं हर दिन को एक समान मानता आया हूं। मैंने 17 दिसंबर को जन्म लिया था। साल नहीं बताऊंगा, क्योंकि आप यकीन नहीं करेंगे और मुझसे युवा बने रहने का नुस्खा पूछने लगेंगे। लेकिन अब मैं खुद को सीनियर घोषित कर सकता हूं। मैंने यह मान लिया है कि मैं बचपने से बाहर आ चुका हूं और युवावस्था के शीर्ष पर हूं।

तो मैं बात कर रहा था, जन्म और मृत्यु की। इन दोनों बिन्दुओं के बीच का जो वक्त होता है, उसे जीवन कहते हैं। हम अपना जीवन कैसे जीयें ये कुछ परिवार की पृष्ठभूमि तय करती है, कुछ शिक्षा और मित्रों के प्रभाव में तय होता है, कुछ हालात तय करते हैं, और इन सबके बाद भी अगर थोड़ी-बहुत संभावना बचती है, उसमें हम तय करते हैं कि हमें क्या करना है।
मैं आज जो कर रहा हूं, मैं हमेशा से यह करना चाहता था। मैं जब यह समझ पाया कि लिखना पढ़ना भी पेशा हो सकता है, मैं हमेशा से लिखना-पढ़ना चाहता था। लेकिन इसमें हालात और वक्त ने भी बड़ी भूमिका निभाई। बाबासाहेब के मूवमेंट से कुछ बहुत सोच कर नहीं जुड़ा। काम करते-करते, लिखते-पढ़ते, कुछ वरिष्ठों के संपर्क में आकर एक वक्त मैंने महसूस किया कि मैं बाबासाहेब का सिपाही बन चुका हूं। आंबेडकरी मिशन का हिस्सा बन चुका हूं।
अमेरिकी यात्रा के दौरान कोलंबिया युनिवर्सिटी की लाइब्रेरी में लगे बाबासाहेब डॉ. आंबेडकर के बस्त के साथ

आज पहली बार है जब जन्मदिन पर कुछ लिख रहा हूं। हाशिये के समाज से ताल्लुक रखने वाले करोड़ों लोगों की तरह हमारे घर में जन्मदिन मनाने का कभी चलन नहीं रहा। चमरौटी के एक कोने में फूस के घेरे (जिसे हमारे पूर्वज घर कहते थे) में हमारी कई पीढ़ियां पेट भरने को गेहूं की रोटी को तरसती रही। दादा-परदादा कलकत्ता गए, वहां अंग्रेजों/ पूंजीपतियों के जूट मिल में मजदूरी की तो पिता और परिवार का पेट भरा। पिता परिवार के पहले ग्रेजुएट बने, तब तक देश आजाद हो गया था, बाबासाहेब ने संविधान लिखा, उसमें आरक्षण की व्यवस्था की, तब जाकर इस देश के हर संसाधन पर कब्जा कर के बैठे लोगों ने हमारे लिए कुछ नौकरियां मजबूरी में छोड़ी। पापा अशर्फी दास खानदार के पहले व्यक्ति थे, जो सिविल कोर्ट में लिपिक (क्लर्क) बनें।

तो सम्मान के साथ रोटी कमाने की जुगत में कई पीढ़ियां बीत गई। माता-पिता की परवरिश की बदौलत आज हम जन्मदिन को उत्सव के रूप में मनाने और केट काटने के लायक हो पाए हैं। हां, अब घर के बच्चों का जन्मदिन मनाने का चलन जरूर शुरू हो गया है। आज जीवन में पहली बार मां ने फोन पर थोड़ा हंसते हुए, थोड़े गौरव के साथ जन्मदिन की बधाई दी। मैंने मुझे जन्म देने के लिए मां को शुक्रिया कहा।
खैर, आंबेडकरी आंदोलन से जुड़ना मेरे जीवन की अब तक की सबसे बड़ी उपलब्धि है। इस आंदोलन ने मुझे मान दिलाया, सम्मान दिलाया, देश के हर हिस्से में हजारों-लाखों लोगों का बड़ा परिवार दिलाया। इस आंदोलन की बदौलत मैं बिहार के एक छोटे से कस्बे से अमेरिका के हार्वर्ड युनिवर्सिटी तक पहुंच पाया। मैं इस आंदोलन का कर्जदार हूं। ये जीवन इसी आंदोलन को समर्पित कर चुका हूं।
मुझे नहीं पता कि आंबेडकरी आंदोलन में मैं कितना योगदान दे पाया हूं, या इस आंदोलन में मेरे होने से क्या फर्क पड़ता है। और सच कहूं तो यह सोचना मेरा काम है भी नहीं। मैं बस हर दिन इस आंदोलन के लिए जितना कर पाऊं, करते रहना चाहता हूं। मेरे काम का, योगदान का आंकलन आपलोग करेंगे। मुझे तो बस काम करना है। मैं ऐसा बने रहना चाहता हूं कि मैं प्रशंसा और चापलूसी से खुश न हो जाऊं, किसी की आलोचना या निंदा से निराश न हो जाऊं।

मैग्जीन, वेबसाइट, यू-ट्यूब, प्रकाशन आदि के जरिए जितना कर सकता हूं, करता रहूं। मैं संचार का आदमी हूं, संचार यानी कम्यूनिकेशन यानी संवाद करने वाला। यह संवाद मैग्जीन के जरिए भी करता हूं, यू-ट्यूब के जरिए भी, वेबसाइट पर लिख कर भी, किताबें प्रकाशित कर के भी और नए साल का कैलेंडर प्रकाशित कर के भी। तमाम माध्यमों से कुछ भी कहने का सिर्फ एक उद्देश्य होता है, संवाद करना। हां, यह जरूर स्वीकार करता हूं कि जितना कर रहा हूं, उससे ज्यादा करने की ऊर्जा मुझमें है। उससे ज्यादा करना चाहता हूं।

अगर आप पूछेंगे कि आगे क्या करना है, तो मेरा जवाब होगा देश के हर हिस्से में वंचित समाज के बीच पहुंचना मेरे जीवन का उद्देश्य है। दलित-आदिवासी समाज के भीतर भी कई रंग हैं। हर प्रदेश में इस समाज का अपना इतिहास, अपनी परंपरा, जीवन जीने का अपना तरीका है। उन सारी कहानियों, परंपराओं, लोक गीतों, रिवाजों को आप सब को दिखाना चाहता हूं। दिल्ली में बैठे-बैठे मन उकताने लगा है। जीवन एकरस लगने लगा है, इसको तोड़ना चाहता हूं। बस भ्रमण पर निकल जाता चाहता हूं। बहुत सारे अनुभव समेटना चाहता हूं। आपलोगों से उन अनुभवों को बांटना चाहता हूं। उम्मीद है कि आपके गांव-शहर आऊंगा तो आप छत और रोटी जरूर देंगे। देंगे न??

बाकी, आप सबका दिया मान-सम्मान और स्नेह मेरे होने को सार्थक करता है। किसी व्यक्ति को समाज महत्वपूर्ण बनाता है। मैं आपलोगों के प्यार से अभिभूत हूं, नतमस्तक हूं। इसके बावजूद मैं यह मुगालता कभी नहीं पालता कि मैं बहुत महान काम कर रहा हूं या फिर मैं कोई “महत्वपूर्ण” व्यक्ति हूं और मुझे हर कोई जानता है। हम सब अपनी-अपनी जगह महत्वपूर्ण हैं, और हमसे ज्यादा महत्वपूर्ण हमारा काम है। क्योंकि यही हमारी पहचान है। यही वजह है कि थोड़ा छिपा रहता हूं, थोड़ा कम बोलता हूं। क्योंकि जरूरी है कि हमारा काम बोले। आखिर में जन्मदिन की बधाई देने वाले सभी मित्रों, शुभचिंतकों का धन्यवाद, बड़ों से आशीर्वाद की अपेक्षा करता हूं और मित्रों से स्नेह की। उम्मीद करता हूं कि मैं भविष्य में अपने सपनों को पूरा करने के लिए जो फैसला करूं, मेरे नजदीकी, मेरे परिवार के लोग मेरा साथ देंगे।

2 COMMENTS

  1. मै २००८ मे retd हुआ, हरियाणा मे जॉर्नलिस्ट बनना चाहता था, किन्ही २ पत्रकारों ने संस्तुति नहीं दी, आज अध्यापक हूँ, मगर टिस आज भी की पत्रकारिता मे हम क्यो नहीं आ सकते? MA pub adm, Net,STET, BA Tourism, BEd, एक्स आर्मी, अब जूनियर अध्यापक। सामाजिक/ नागरिक पत्रकार

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