नई दिल्ली। नोबल पुरस्कार से सम्मानित ‘भारत रत्न’ अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन ने साल 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी विरोधी गैर सांप्रदायिक पार्टियों से एकजुट होने की अपील की है ताकि एनडीए को सत्ता में आने से रोका जाए.
अमर्त्य सेन ने बीजेपी पर हमला करते हुए उसे एक वो बीमार पार्टी बताया, जिसने 55 फीसदी सीटों के साथ सत्ता हासिल कर ली, जबकि उसे केवल 31 फीसदी वोट ही हासिल हुए थे. सेन बीजेपी को गलत इरादों से सत्ता में आई पार्टी मानते हैं. क्या माना जाए कि अमर्त्य सेन के मुताबिक देश की जनता ने ‘गलत इरादों वाली पार्टी’ को देश सौंपा है?
सवाल उठता है कि आखिर अमर्त्य सेन को एनडीए या फिर मोदी सरकार से क्या नाराजगी है?
दरअसल साल 2014 में भी अमर्त्य सेन ने मोदी के पीएम पद की दावेदारी का जोरदार विरोध किया था. अमर्त्य सेन की अपील विपक्ष के लिए भाजपा को घेरने का मौका हो सकती है. हालांकि भाजपा ने भी सेन पर पलटवार किया है और अमर्त्य सेन की तुलना उन बुद्धिजीवियों से की है जिन्होंने हमेशा समाज को गुमराह किया.
अमर्त्य सेन को साल 1998 में अर्थशास्त्र के लिये नोबल पुरस्कार मिला था. बंगाल की मिट्टी से उभरे अर्थशास्त्र के नायक अमर्त्य सेन ने गरीबों, स्वास्थ और शिक्षा को लेकर अपने विचारों से दुनिया में सबका ध्यान खींचा था. लेकिन आज वो एनडीए को सत्ता में आने से रोकने की अपील कर देश में सबका ध्यान खींच रहे हैं. खासबात ये है कि अमर्त्य सेन को एनडीए सरकार ने ही ‘भारत-रत्न’ दिया था. उस वक्त एनडीए सरकार के पीएम अटल बिहारी वाजपेयी थे.
लेकिन साल 2014 आते-आते अमर्त्य सेन की एनडीए को लेकर मानसिकता बदल गई. साल 2014 में जब बीजेपी ने गुजरात के तत्तकालीन सीएम नरेंद्र मोदी को पीएम पद का उम्मीदवार घोषित किया तो अमर्त्य सेन ने इसका विरोध किया. सेन ने मोदी की पीएम पद की दावेदारी पर सवाल उठाए. जिसके बाद बीजेपी के पश्चिम बंगाल से नेता चंदन मित्रा ने ‘भारत-रत्न’ वापस लेने तक की मांग कर डाली थी.
अमर्त्य सेन के विचारों को निजी विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बता कर कांग्रेस और वामदलों ने बीजेपी पर जमकर हमला बोला था. इसके बाद से लगातार ही अमर्त्य सेन मोदी सरकार पर सवाल उठाते रहे हैं. उन्होंने यहां तक कहा कि पीएम मोदी को आर्थिक विकास के मामलों की समझ नही हैं. उन्होंने नोटबंदी को दिशाहीन मिसाइल कहते हुए गलत फैसला बताया था.
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