बसपा के उभार से भाजपा को खतरा!

mayawati

लखनऊ। उत्तर प्रदेश निकाय चुनाव में भाजपा ने जीत दर्ज की है और माना जा रह है कि योगी का करिश्मा और मोदी लहर अभी भी बरकरार है और 2019 के चुनाव में भाजपा के लिए दोनों ही बड़ा फैक्टर साबित होने जा रहे हैं. लेकिन इन चुनावों परिणामों नजर डालें तो बसपा भी वापसी करती दिख रही है. कई सालों के बाद बसपा के खेमे में थोड़ी राहत वापस लौटी है. लोकसभा चुनाव में जहां बसपा को लोकसभा में एक भी सीट नहीं मिली थी तो विधानसभा चुनाव में पार्टी लाख कोशिशें करने के बाद भी तीसरे नंबर रही. लेकिन निकाय चुनाव में बसपा ने सपा को तीसरे नंबर पर धकेल दिया है और मुस्लिम बाहुल्य इलाकों में अच्छा प्रदर्शन किया है इसके साथ ही मेरठ और अलीगढ़ में मेयर का चुनाव जीत लिया.

इतना ही नहीं झांसी, आगरा और सहारनपुर में पार्टी दूसरे नंबर रही है. चुनावी नतीजों से साफ है कि मुस्लिम वोटरों का झुकाव बसपा की ओर बढ़ा रहा है. मायावती की कोशिश भी यही है कि उत्तर प्रदेश में मुस्लिम वोटर किसी भी तरह से उसके पाले में आ जाएं तो सपा को आसानी से पीछे छोड़ सकती है और खुद को भाजपा के मुकाबले खड़ा कर सकती है. बसपा अभी तक निकाय चुनावों में ज्यादा रुचि नहीं दिखाती रही है. 2006 और 2012 के चुनाव में पार्टी ने प्रत्याशी ही नहीं उतारे थे. लेकिन जिस तरह से चुनाव अब माइक्रो मैनेजमेंट की ओर बढ़ते जा रहे हैं उससे साफ जाहिर है कि कार्यकर्ताओं को पार्टी से जोड़े रखने के लिए हर चुनाव से गंभीरता लेना होगा. हालांकि इस चुनाव में मायावती हो या अखिलेश यादव कहीं भी रैली करने नहीं गए थे.

सवाल इस बात का है कि अगर उत्तर प्रदेश में बसपा का का उभार होता है तो किसका सबसे ज्यादा नुकसान होगा, जाहिर यह सपा और कांग्रेस को सबसे ज्यादा खामियाजा भुगतना पड़ सकता है क्योंकि समाजवादी पार्टी का आधार वोट बैंक मुस्लिम-यादव ही हैं. अगर इसमें सेंध लगने का मतलब है कि सपा को सीधा नुकसान. दलितों और मुस्लिम समीकरण काम कर गया तो कांग्रेस को भी अच्छा-खासा नुकसान हो सकता है क्योंकि उत्तर प्रदेश में इन दोनों का भी वोट कांग्रेस को मिलता रहा है. हालांकि उत्तर प्रदेश के कई चुनाव गवाह रहे हैं कि जब यहां पर हाथी दौड़ा है सभी को रौंदता चला गया. इसलिए बसपा का उभार भाजपा के लिए कम खतरनाक साबित नहीं होगा क्योंकि योगी के सीएम बनने के बाद से ब्राह्णणों में भी कई मु्द्दों पर नाराजगी देखी जा सकती है. अब यह आंकलन का मुद्दा है कि किस पार्टी को ज्यादा नुकसान हो सकता है.

एनडीटीवी से साभार

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