बहुजनों को गुलामी से बचाने का एक ही रास्ता है डाइवर्सिटी:एच.एल.दुसाध

मऊ। ‘कार्ल मार्क्स ने कहा है कि दुनिया का लिखित इतिहास वर्ग संघर्ष का इतिहास है.समाज में सदैव ही विरोधी आर्थिक वर्गों का अस्तित्व रहा है. एक वर्ग वह है जिसके पास उत्पादन के साधनों का स्वामित्व रहा और दूसरा वह जो केवल शारीरिक श्रम करता है. मार्क्स का बताया वर्ग संघर्ष का वह इतिहास भारत में आरक्षण पर संघर्ष के रूप में क्रियाशील रहा. क्योंकि जिस वर्ण-व्यवस्था के द्वारा भारत समाज सदियों से परचालित होता रहा, वह बुनियादी तौर पर आरक्षण की व्यवस्था रही, जिसमें उत्पादन के सभी साधन ब्राह्मण,क्षत्रिय और वैश्यों से युक्त सवर्णों के लिए आरक्षित रहे. इस हिन्दू आरक्षण में ही अपनी हिस्सेदारी के लिए वंचित बहुजन सदियों से सघर्षरत रहा. आरक्षण पर इस संघर्ष में 7 अगस्त,1990 को तब एक नया ऐतिहासिक मोड़ आया, जब पिछड़ों को मंडल रिपोर्ट के जरिये नौकरियों में 27 प्रतिशत आरक्षण मिला. तब इस आरक्षण के खात्मे लिए वर्ण-व्यवस्था का सुविधाभोगी वर्ग नए सिरे से उठ खड़ा हुआ.उसने आरक्षण के खात्मे के लिए तरह –तरह के उपाय किये,जिसमें सबसे कारगर रही 24 जुलाई ,1991 से लागू नवउदारवादी अर्थनीति. और आज इस अर्थनीति को हथियार बनाकर वह आरक्षण को लगभग पूरी तरह कागजों की शोभा बनाने के बाद मंडल उत्तरकाल में संगठित वर्ग-संघर्ष में अपनी विजय का पताका फहरा चुका है.’ यह बातें आज पालिका कम्युनिटी हॉल,मऊ में आयोजित तेरहवें ‘डाइवर्सिटी डे’ समारोह में बहुजन डाइवर्सिटी मिशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष एच.एल.दुसाध ने विषय प्रवर्तन करते हुए कही.

उन्होंने आगे कहा कि जब शासक वर्गों ने नवउदारवादी अर्थनीति को हथियार बनाकर तेजी से आरक्षण का खात्मा करना शुरू किया, तब 12-13 जनवरी ,2002 को भोपाल में आयोजित ऐतिहासिक कांफ्रेंस से डाइवर्सिटी समर्थक दलित बुद्धिजीवियों ने नौकरियों में आरक्षण से आगे बढ़कर सप्लाई, डीलरशिप, ठेकों, फिल्म-मीडिया इत्यादि अर्थोपार्जन की समस्त गतिविधियों में हिस्सेदारी की लड़ाई के लिए आरक्षित वर्गों के बुद्धिजीवी, एक्टिविस्टों और नेताओं को आह्वान किया पर, वे उसकी लगातार अनदेखी करते रहे.वे आज भी ‘आरक्षण बचाओ’की लड़ाई में समाज को उलझाये हुए हैं.फलस्वरूप उनकी नाक के नीचे से शासक वर्गों ने आरक्षण को धीरे-धीरे ख़त्म सा कर दिया है .किन्तु डाइवर्सिटी समर्थक बुद्धिजीवी अर्थोपार्जन की समस्त गतिविधियों में हिस्सेदारी की वैचारिक लड़ाई लगातार लड़ते रहे. उनके प्रयासों से कई राज्यों में ठेकों,सप्लाई,डीलरशिप, आउट सोर्सिंग जॉब में आरक्षण लागू हुआ. आज जबकि शासक वर्गों ने बहुजनों को नये सिरे से गुलामी की ओर ठेल दिया है, जरुरत है कि पूरा आरक्षित वर्ग सर्वशक्ति से सर्वव्यापी आरक्षण की लड़ाई में उसी तरह कूद पड़े, जैसे अंग्रेजों के खिलाफ आजादी की लड़ाई में सारे भारतीय कूद पड़े थे. आज बहुजनों के समक्ष भारत के स्वाधीनता संग्राम की भांति संपदा-संसाधनों में अपनी हिस्सेदारी की लड़ाई लड़ने के सिवाय कोई और विकल्प नहीं रह गया है.’

तेरहवें डाइवर्सिटी डे के अवसर पर सबसे पहले मुख्य अतिथि विद्या गौतम ने दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम की शुरुआत किया. उसके बाद गढ़वा, समस्तीपुर, पटना, देवरिया, गोरखपुर, गाजीपुर, भागलपुर,बनारस इत्यादि सहित देश के विभिन अंचलों से आये अतिथियों ने बाबा साहेब डॉ.आंबेडकर और महापंडित राहुल सांकृत्यायन की तस्वीरों पर माल्यार्पण कर उनके प्रति श्रद्धा सुमन अर्पित किया. बाद में एक-एक करके सभागार में उपस्थित लोगों ने पुष्प अर्पित कर श्रद्धा व्यक्त किया.पुष्पार्पण के बाद मंच संचालक डॉ. रामबिलास भारती ने डाइवर्सिटी डे के अवसर पर किताबों के विमोचन की घोषणा की. इस अवसर पर ‘डाइवर्सिटी मैन ऑफ़ इंडिया’ के रूप में विख्यात बहुजन डाइवर्सिटी मिशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष एच.एल.दुसाध की डाइवर्सिटी इयर बुक:2018-19 , हकमार वर्ग(विशेष सन्दर्भ:आरक्षण का वर्गीकरण), धन के न्यायपूर्ण बंटवारे के लिए सर्वव्यापी आरक्षण की जरुरत (विशेष सन्दर्भ: अमेरिकी और दक्षिण अफ़्रीकी आरक्षण) तथा 21वीं सदी में कोरेगांव जैसी चार किताबों का विमोचन हुआ. पुस्तक विमोचन के बाद डाइवर्सिटी मैन ऑफ़ द इयर की घोषणा की गयी. इस सम्मान के लिए सुपर्सिद्ध पत्रकार-लेखक महेंद्र नारायण सिंह यादव, अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त चित्रकार डॉ.लाल रत्नाकर तथा वरिष्ठ पत्रकार सत्येन्द्र प्रताप सिंह के नामों की घोषणा हुई.इनमें सिर्फ सत्येन्द्र प्रताप सिंह ही सशरीर उपस्थित होकर सम्मान ग्रहण कर सके.

चर्चा के लिए निर्दिष्ट विषय ‘धन-दौलत के न्यायपूर्ण बंटवारे की रणनीति’ पर विचार रखने का क्रम पथरदेवा पीजी कॉलेज के डॉ. कौलेश्वर प्रियदर्शी से शुरू हुआ.उन्होंने जोर देकर कहा कि नौकरियों में आरक्षण से आगे बढ़कर सम्पूर्ण भागीदारी का सवाल खड़ा करना आज की सबसे बड़ी जरुरत है और यह काम पूरे देश में ‘बहुजन डाइवर्सिटी मिशन’ ही कर रहा है. इस संगठन द्वारा सुझाये जा रहे उपाय के तहत यदि समस्त क्षेत्रों में सामाजिक और लैंगिक विवधता लागू हो जाय तो देश और बहुजन समाज की सारी समस्यायों का हल स्वतः हो जायेगा. तमाम क्षेत्रों में सामाजिक और लैंगिक विविधता लागू होने से सर्वसमाज का समवेत विकास और सुदृढ़ीकारण हो जायेगा,जो देश को विभेदीकरण से मुक्तकर देश की अखंडता को चिरकाल के लिए मजबूती प्रदान कर देगा.समस्तीपुर से आये सोशल एक्टिविस्ट मन्नू पासवान ने कहा कि देश का बहुजन बहुत ही संकट ही संकट से जूझ रहा है. शासकों ने नवउदारवादी नीति को हथियार बनाकर हमारा सब कुछ ख़त्म कर दिया है. राहत की बात है कि इस संकट में बाबा साहेब डॉ. आंबेडकर के बाद सबसे बड़े लेखक-चिन्तक के रूप में उभरे एच.एल.दुसाध हमारे बीच हैं. दुसाध जी ने इस संकट की घड़ी में डाइवर्सिटी का एजेंडा सामने लाकर हमें इस हालात से उबरने का रास्ता सुझा दिया है. जरुरत इस बात है की है कि हम डाइवर्सिटी को जनांदोलन का रूप दें. सिवान से आये युवा लेखक राजवंशी जे.ए.आंबेडकर ने धन के न्यायपूर्ण बंटवारे की रणनीति पर आलोकपात करते हुए कहा कि बहुजन डाइवर्सिटी मिशन ने सही समय पर धन-दौलत के न्यायपूर्ण बंटवारे का अभियान छेड़ा है. शासकों ने जिस तरह आरक्षण को कागजों की शोभा बनाकर बहुजनों को गुलामी की ओर ठेल दिया है, इस किस्म के आन्दोलन की निहायत ही जरुरत थी.लेकिन इस लड़ाई को लड़ते हुए हमें कुछ ऐसी योजना बनाना पड़ेगा, जिससे इसका लाभ अंतिम व्यक्ति तक पहुंचे.

बलिया के प्रखर वक्ता आर.के .यादव ने धन के न्यायपूर्ण बंटवारे का आन्दोलन चलाने के लिए बहुजन डाइवर्सिटी मिशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष एच. दुसाध को साधुवाद देते हुए कहा कि आज धन का न्यायपूर्ण बंटवारा सबसे बड़ा सवाल है. इसके लिए दलित, आदिवासी,पिछड़े और धार्मिक अल्पसंख्यक समूहों को नए सिरे से संगठित होने की जरुरत है. अगर नहीं संगठित हुए तो विदेशी मूल का शासक वर्ग हमारा बचा-खुचा भी ख़त्म कर देगा. इसलिए धन के न्यायपूर्ण बंटवारे के आन्दोलन को कामयाब बनाने के लिए मूलनिवासियों की एकता पर पहले से कहीं ज्यादा जोर देना पड़ेगा. देवरिया से आये शिक्षा अधिकारी शिवचन्द्र राम ने धन के न्यायपूर्ण बंटवारे की बहुत जोरदार शब्दों में हिमायत की. उन्होंने कहा आरक्षण बचाने की लड़ाई अब बेमानी हो चुकी है. अब जरुरत नौकरियों से आगे बढ़कर सप्लाई, डीलरशिप, ठेकों इत्यादि अर्थोपार्जन की ए टू जेड समस्त गतिविधियों में ही आरक्षण बढ़ाने की लड़ाई लड़ने की है. इतिहास की पुकार है कि बहुजन समाज पूरी ताकत से सर्वव्यापी आरक्षण की लड़ाई के लिए कमर कसे. कानपुर से आये प्राख्यात बहुजन लेखक के. नाथ ने कहा कि आज बड़ी जरुरत अपने आन्दोलनों की आत्म-समीक्षा करने की है. बाबा साहब के जाने के बाद उनका मिशन पूरा करने के लिए मैदान में उतरे आधिकांश संगठन ब्राह्मणवाद के खात्मे को अपना मुख्य लक्ष्य बनाया पर, क्या हम इस दिशा में अपेक्षित कामयाबी हासिल कर पाए? नहीं! बाद में मंडल की रिपोर्ट प्रकाशित होने के बाद जब शासक दल निजीकरण, उदारीकरण,विनिवेशीकरण की दिशा में जोर-शोर से आगे, हमारे कई संगठन और नेता आरक्षण बचाने की लड़ाई में कूद पड़े . आज भी हमारे तमाम संगठन आरक्षण बचाने तथा निजीक्षेत्र में आरक्षण बढ़ाने में मशगूल हैं. पर क्या हम कुछ कामयाब भी हुए? आज आंकडे बताते हैं कि 10% टॉप की आबादी का 90% से अधिक धन-संपदा पर कब्ज़ा हो चुका है और नीचे की 60% आबादी सिर्फ 4% से थोड़े से अधिक धन पर गुजर–बसर करने के लिए मजबूर है . जो आरक्षण दलितों की उन्नति और बचे रहने का आधार था, आज वह लगभग नहीं के बराबर रह गया है . इसलिए अतीत के अनुभवों से सबक लेते हुए ज़रूरी है कि हम बाकी चीजें भूलकर संपदा-संसाधनों में भागीदारी के लिए ताकत लगायें. इसके लिए बहुजन डाइवर्सिटी मिशन का दस सूत्रीय एजेंडा हमारे काम आ सकता है. यदि इस एजेंडे को लागू करव्वाने में हम कामयाब हो गए तो दलित,आदिवासी ,पिछड़े और अल्पसंख्यक न सिर्फ खुद को गुलाम होने से बचा सकते हैं, बल्कि संपदा-संसाधनों में उचित हिस्सेदारी हासिल कर अपनी भावी पीढ़ी का भविष्य भी सुरक्षित कर सकते हैं. अगर स्वाधीनता संग्राम की भांति अर्थोपार्जन के तमाम क्षेत्रों अपने शेयर की लड़ाई न लड़कर, सिर्फ आरक्षण बचाने में जुटे रहे तो हमारा बचा-खुचा शेष होना बिलकुल तय है.

अंत में मुख्य अतिथि विद्या गौतम,जिन्होंने देश की हर ईंट में भागीदारी के लिए 46 दिनों तक भूख हड़ताल करके एक इतिहास रचा है, ने जोरदार शब्दों में आह्वान किया कि आरक्षण बचाने की लड़ाई धोखा साबित हुई है.ऐसे लोगों के कारण ही बाबा साहेब का दिया हुआ आरक्षण दम तोड़ने जा रहा है. आज जरुरत इस बात की है कि बहुजनों का बच्चा- बूढा-जवान, औरत-मर्द उसी शिद्दत के साथ डाइवर्सिटी की लड़ाई लड़ें जैसे अंग्रेजों के खिलाफ राजनीतिक आजादी की लड़ाई लड़ी गयी थी. उन्होंने आंकड़ों के सहारे बताया कि नौकरी में हमारी हिस्सेदारी मात्र 3.95% है .आज भी 1.8% एससी/एसटी के लोग उच्च शिक्षा में हैं. 2018 में दलित बेरोजगारों की तादाद 8 करोड़ है. 54.71% दलितों के एक गज भी जमीन नहीं है. कैसे करेंगे आर्थिक और सामाजिक गैर-बराबरी का खात्मा; कैसे होगा समाज का विकास ?इसलिए हमारे सामने मात्र एक विकल्प रह गया है, और वह है आबादी के अनुपात में हिस्सेदारी.इसके लिए शक्ति के सभी स्रोतों में न्यायपूर्ण बंटवारा ही एक मात्र विकल्प है,जिसमें मुख्य रूप से सभी सरकारी टेंडर में हमारी हिस्सेदारी हो.मूलनिवासी दलित ,आदिवासी ,पिछड़े तभी प्रगति कर सकेंगे, जब प्रगति के सभी रास्तों में हिस्सेदारी हो. इसका यही रास्ता है कि उद्योगपति,सप्लायर, डीलर,ठेकेदार,पत्रकार,फिल्मकार इत्यादि बनने की चाह हमारे लोगों में पैदा हो. हमें इस मुद्दे को पोलिटिकल पार्टियों को चुनावी मुद्दों में शामिल करवाने के लिए विशेष रूप से संघर्ष चलाना होगा. आदरणीय दुसाध साहब की किताबें हम सबके लिए एक रास्ता हैं मंजिल तक पहुँचने के लिए.मैं साधुवाद दूंगी दुसाध साहब को जिन्होंने आपनी किताब डाइवर्सिटी इयर बुक:2018-19 में हमारे संघर्षों को महत्वपूर्ण स्थान दिया है.

शेष में गढ़वा से आये अशर्फीलाल बौद्ध ने सभी अतिथियों तथा बहुजन डाइवर्सिटी मिशन के इस वार्षिक आयोजन को सफल बनाने में अपेक्षित सहयोग के लिए बहुजन कल्याण परिषद्/महाबोधि समाज सेवा समिति एवं भारतीय एकता परिषद्, डॉ.सी.पी.आर्य, लालचंद राम को धन्यवाद दिया. अंत में उन्होंने उपस्थित लोगों से निवेदन किया कि एच.एल.दुसाध ने धन के न्यायपूर्ण बंटवारे का जो अभियान छेड़ा है, उसे पूरा करने के लिए हमें भारत के स्वतंत्रता संग्राम की भांति संघर्ष चलाना होगा. यहाँ से संकल्प लेकर जाइए कि आप अपने-अपने इलाके में लोगों बहुजनों की आजादी की इस नयी लड़ाई से जोड़ेंगे. हम लोग 18 आदमी गढ़वा से चलकर आये हैं. इनकी ओर से मैं आश्वस्त करता हूँ कि झारखण्ड में लड़ाई को हमलोग आगे बढ़ाने के लिए मान्यवर एच.एल. दुसाध और विद्या गौतम को शीघ्र ही अपने इलाके में बुलाएँगे.

तेरहवें डाइवर्सिटी डे आयोजन में देश के विभिन्न अंचलों से आये डाईवर्सिटी समर्थक लेखक, छात्र-गुरुजन और एक्टिविस्टों ने शिरकत किया, जिनमें अतिथि वक्ताओं के अतिरिक्त दयानाथ निगम, चंद्रभूषण सिंह यादव , केसी भारती,हरिवंश प्रसाद,डॉ.राहुल राज, इकबाल अंसारी, वसीम अख्तर,लालचंद राम,राजीव रंजन, मुंद्रिका बौद्ध इत्यादि प्रमख रहे.मंच का सफल संचालन डॉ.राम बिलास भारती के नाम रहा.

डॉ.कविश कुमार

Read it also-मंदिर और मूर्तियों में रुचि रखने वाले शूद्रों(पिछड़ों) और आम महिलाओं से एक विनम्र सवाल!

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.