मौर्या जी, आप चले तो गए, करेंगे क्या?

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मौर्या जी, सबसे पहले तो यह नहीं समझ पा रहा हूं कि आपका अभिवादन ‘जय भीम’ से करूं या फिर ‘कुछ और’ कहूं. खैर पाला आपने बदला है, हमारी विचारधारा आज भी वहीं है सो आपको जय भीम. कुछ महीने पहले ही आपसे रायबरेली में मुलाकात हुई थी. आप और मैं दोनों उस कार्यक्रम के अतिथि थे. आपने शानदार बोला था. यहां तक कि बाकी सभी ने आपको सुनने के लिए अपना भाषण संक्षिप्त ही रखा था. आप खूब गरजे थे. फिर से वही गोबर और गणेश की बात सुना डाली थी, जिसको लेकर आप विवादों में भी रहे थे और जिस कारण बहुजन समाज आपका मान-सम्मान करता रहा है, लेकिन वहां मौजूद लोगों ने खूब ताली पीटी थी. बस यह जानकर थोड़ा झटका लगा है कि आप जैसा विचारधारा में जिंदा रहने वाला आदमी एक ऐसी पार्टी में क्यों चला गया, जिससे अम्बेडकरवाद का सबसे ज्यादा संघर्ष है.

आप से जब बाबासाहेब की 125वीं जयंती के मौके पर 14 अप्रैल को लखनऊ में मुलाकात हुई थी तो यह तो समझ में आ गया था कि आप पार्टी से नाराज हैं, लेकिन यह नहीं सोचा था कि इतना नाराज हैं. आपने जब पार्टी से इस्तीफा दे दिया तो भी तमाम लोग कहते रहे कि आप भाजपा में जा रहे हैं, लेकिन मैं सबसे यही कहता रहा कि स्वामी जी भाजपा में नहीं जाएंगे. लेकिन जब आप भाजपा में चले गए हैं तो सोचता हूं कि अच्छा होता कि आपने कांग्रेस ज्वाइन कर लिया होता या फिर किसी अन्य पार्टी में चले गए होते. खैर, जब आपने ‘भगवा’ ओढ़ ही लिया है तो ये बताइए कि अब आप करेंगे क्या?  क्या आप अठावले की तरह ‘बहन जी’ को भला-बुरा कहेंगे (जिसकी शुरुआत आप कर ही चुके हैं). जिस ‘गणेश’ को कल तक आप ‘गोबर गणेश’ कह कर हिन्दूवादी व्यवस्था का मजाक उड़ाते थे, क्या अब उसी के सामने माथा टेकेंगे या फिर अनुप्रिया पटेल की तरह आरक्षण की समीक्षा की मांग उठाएंगे?  जाहिर है आप सब करेंगे.

अच्छा एक बात बताइए, यह सब कर के आपको अगर कुछ लाभ भी हासिल हो जाएगा तो क्या आप संतुष्ट हो पाएंगे? तो क्या बहुजन समाज यह माने कि आज तक आप बाबासाहेब और मान्यवर की बात झूठ कहते आए हैं? सिर्फ अपने फायदे और पद के लिए. खैर बहुजन समाज ने ऐसे कई झटके पहले भी खाए हैं, उसे अब तो आदत सी हो गई है. उसे अब संभलना भी आ गया है. लेकिन मैं सोचता हूं कि आप जहां गए हैं, यूपी चुनाव के बाद अगर उसने आपको दुत्कार दिया तो आप क्या करेंगे?

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