‘कास्ट लेस कलेक्टिव’ म्यूजिक बैंड की कहानी

 पिछली जनवरी को अपनी पहली प्रस्तुआति के बाद से ही ‘दि कास्टसलेस कलेक्टिव’ (टीसीसी) चेन्नै में सर्वाधिक चर्चा पाने वाले म्यूीजिक बैंड के रूप में उभरा है। इसने न सिर्फ अपने प्रतिबंध रहित संगीत के माध्यम से प्रभावित किया अपितु एक अनन्वेषित कलात्मजक राजनीतिक पथ का भी प्रदर्शन किया। इसके संगीत की जड़े चेन्नैत के दलित समुदाय के शोरगुल में है, विशेषत: जो दलित समुदाय उत्तर चेन्नै में रहता है, उसमें है। अंत्येष्टि संगीत से उद्भूत संगीत की गण विधा को गाते हुए ये लोग असंख्यो सौंदर्यशास्त्रीरय, सामाजिक और राजनीतिक सवाल कला जगत के समक्ष रखते हैं। इस कला विधा के साथ यह अभिशाप लगा हुआ है कि यह सामाजिक रूप से कब्रिस्ताभन की सुर-लहरी के साथ जुड़ी हुई है। इस बैंड के सदस्या हैं: तेन्माे (नेतृत्व कारी और संगीत प्रोड्यूसर), गायक – मुथु, बाला चंदर, इसइवनि, अरिवु और चेल्लाैमुथु, धरनी (ढोलक), सारथ (सत्ति), गौथम (कट्टा मोलम), नंदन (पराइ और ताविल), मानु (ड्रम) और साहिर (गिटार)। टी.एम. कृष्णाआ ने दि हिन्दू के लिए इनका एक साक्षात्कासर लिया था जो इसके 20 जनवरी वाले रविवारीय अंक में छपा था। इसी का हिन्दी अनुवाद

टीसीसी अस्तित्व में कैसे आया ॽ
तेन्मा: मैं बहुत ही ज्यादा रूढ़ और लांक्षित उत्तरी चेन्नै से आता हूँ। जब मैं 20 साल का था, तब से मैंने पेरियार को पढ़ना शुरु किया लेकिन जब मैं ज्यादा बड़ा हुआ तभी जाकर स्वयं को अभिव्यक्त करना मैंने शुरु किया। मैंने मद्रास इंडी कलेक्टिव शुरु किया था और संगीतकारों को एक साथ लाने की कोशिश कर रहा था। उसी समय पा. रंजीथ की अगुवाई वाले संगठन नीलम का फोन यह पता करने के लिए मुझे आया कि क्या मैं गण गायकों के एक समूह के साथ काम करने को इच्छक हूँ। ठीक अगले दिन ही रंजीथ और मैं मिले और एक घंटे से ज्यायदा हमने बात की। बातचीत राजनीतिक थी, संगीत के बारे में बहुत ही कम थी। एक सप्ताह के अंदर या ऐसे ही कुछ समय में हमने आवाज़ की जाँच हेतु आवेदन निकाल दिया और लगभग 150 उम्मीमदवार आये। उनकी संगीतात्मसक दक्षता के साथ-साथ जो चीज सामान्यदत: महत्व5पूर्ण थी, वह बातचीत ही थी क्योंमकि हम स्पष्टत: एक सामाजिक-संगीतात्मक-राजनीतिक यात्रा की शुरुआत करने जा रहे थे। हम 19 साल के थे जब हमने एक साथ काम करना आरंभ किया। लेकिन एक बैंड कोई परियोजना नहीं होती है, यह एक परिवार होता है जो हमें गले लगाता है और बिना किसी डर के तीक्ष्णता के साथ तर्क करता है। इसने (बैंड निर्माण ने) कुछ समय लिया लेकिन एक दिन हर चीज साफ हो गई, संकोच दूर हो गया और हमने महसूस किया कि हम एक बैंड बन गये हैं–एक इकाई, एक परिवार।

‘दि कास्टकलेस कलेक्टिव’नाम क्यों ॽ
तेन्मा : यह नाम 19वीं सदी के जाति विरोधी आंदोलनकारी और लेखक सी. इयोथी थास द्वारा प्रयुक्त ‘जाथि इल्लाइधा तमिझारगल’ से लिया गया है। भारतीय समाज की मूलभूत समस्या जाति है जो स्वयं को वर्ग जैसी दूसरी संरचनाओं के पीछे छिपाती है। हम जाति व्यवस्था के उन्मूलन की बात कर रहे हैं और यह बैंड इसी विचार को बल प्रदान करता है।

अरिवु : हम जाति के आधार पर और जाति के अंदर लोगों के सुविधाजनक स्तार को चुनौती देते हैं और एक विचार-विमर्श का प्रवर्तन करते हैं। जातीय विशेषाधिकार रखने वाले लोग जाति के बारे में कभी नहीं बोलेंगे क्योंकि उन्होंने उस दर्द को कभी महसूस ही नहीं किया है। जाति चीजों तक पैठ बनाने वाला कार्ड होती है। सिर्फ अस्वीकारता की स्थिति में सवाल उठते हैं। हम उस दौर से आगे बढ़ चुके हैं जब हम अपने अधिकार छोड़ते हुए कुछ नहीं करते थे। हम अब कह रहे हैं कि जाति का उन्मूतलन होना चाहिए।

अगर मैं जोड़ पाऊँ तो इस नाम का दूसरा पक्ष भी है। जाति विहीन स्थिति की अभिव्यक्ति आमतौर पर उस जाति के लोगों द्वारा भी की जाती है जिन्होंने कभी जातीय उत्पीड़न का अनुभव नहीं किया है। किंतु अब जाति विहीनता का दावा करके आप इस पद के अर्थ पुन: गढ़ रहे हैं और जातिविहीन होने की अवधारणा के ऊपर अपना नियंत्रण स्थापित कर रहे हैं। क्या गण और दलितों का संगीत समाज में निंदित हैॽ और क्या टीसीसी ने लोगों का नज़रिया बदला है ॽ

गौथम: जब मैं अंत्येष्टि पर बजाने जाया करता था तो मैं अपना मोलम किसी चाय की दुकान के सामने भी नहीं रख सकता था। वे मांग करते थे कि मैं अपना वाद्य यंत्र हटा लूँ। मैं इस चीज को कभी नहीं समझा हूँ। जब हम अंत्येष्टि पर बजाते हैं तो लोग खुशी से नाचते हैं किंतु हमारी कला को अछूत के रूप में देखते हैं।

सारथ: मंदिरों में, यह राजा-वाद्य है जिसे देवी की पूजा के लिए इस्तेमाल किया जाता है और जब वह गुस्से में होती है तो इसी से उसे शांत किया जाता है। लेकिन लोग तब भी नकारात्मक धारणा रखते हैं। मैं एक बार स्टूडियो रिकार्डिंग के लिए गया था। मैंने सत्ति (वाद्य यंत्र) को भू तल पर रख दिया। शीघ्र ही लोग इकट्ठे हो गये और उन्होंने मुझे इसे दूर ले जाने को बोला और अभद्रता से पूछताछ की कि क्या मैं उनके घरों में मृत्यु चाहता हूँ। जब मेरा एक गीत प्रसिद्ध हो गया और मैं उसी स्टूडियो में वापिस गया तो मुझे पहचान लिया गया और मेरे कार्य की प्रशंसा की गई। मैंने उनसे पूछा कि संगीत का लुफ्त उठाना किंतु वाद्य यंत्रों को गाली देना कैसे सही हैॽ वे बोले कि ‘किंतु आप इसका इस्तेमाल अंत्येष्टियों में करते हैं।’ मैंने उन्हें बताया कि यह वही वाद्य यंत्र है जिसने उस कला की, संगीत की सर्जना की है, जिसे वे सिल्वर स्क्रीन पर इतना ज्यादा प्यार करते हैं।

अरिवु: किसी के द्वारा कर्नाटक संगीत का गायक होने का दावा करने और गण गायक होने के दावा करने के बीच में बहुत भारी अंतर है। इनकी प्रतिद्वंद्विता स्वयं में ही एक कहानी कहती है। लेकिन आज हल्का सा बदलाव आया है और इसका श्रेय जाता है गण पझानि जैसे गायकों को और आज के संदर्भ में टीसीसी को भी इसका श्रेय जाता है। 90 के दौर की गण गायकों की पीढ़ी ने ऐसे गीत लिखकर स्वयं का कद घटाया था जो गाली-गलौज वाले थे और अपनी प्रकृति में कामुकता वाले थे।

बालचंदर: पहले, गायक फर्श पर बैठ जाते थे। तब वे एक चट्टान की जैसे खड़े होते और गाते थे। लेकिन मैंने गाते हुए नाचना शुरु किया, मैंने अपनी देह को गतिशील बनाया, देह की भौतिक जड़ता को तोड़ा। मेरी मान्यता है कि भाव देह से बाहर आने चाहिए। पैरों से शुरुआत करते हुए इन्हें हमें पूर्णत: गिरफ्त में ले लेना चाहिए। संगीत तभी है जब आपकी देह गाती है। बिना किसी संदेह के मैं कह सकता हूँ कि टीसीसी ने गण को सम्मान दिलवाया है। गण विधा एक दमित जाति की तरह है क्योंकि यह उन्हीं लोगों से आती है। और इसीलिए जब हमने बड़े मंच पर प्रदर्शन किया तो यह मेरे लिए एक विजय थी।

मुथु (गायक): मैं हमारे प्रथम प्रदर्शन के दिन रोया था। मैं सिर्फ मौत पर गाया करता था और जीवन के दूसरे छोटे अवसरों पर गाया करता था। लेकिन अब हमारे पास एक बड़ा मंच था जहाँ हजारों लोग हमें देखने वाले होते थे। यह बहुत ही जबर्दस्त था।

कोई (टीसीसी में) कैसे यह सुनिश्चित करता है कि टीसीसी ने वृहत्तर समाज के समक्ष जो यह चुनौती रखी है, वह कलेक्टिव की पहचान के अंदर ही उलझकर न रह जाए, और कोई कैसे यह सुनिश्चित करता है कि यह एक स्वतंत्र सामाजिक और सौंदर्यात्मक आंदोलन बनेॽ

अरिवु: किंतु यह होना तो तय है। हम एक विरोधी संस्कृति निर्मित कर रहे हैं और जो अगड़ी पंक्ति में हैं, वो लोकप्रसिद्धि प्राप्त करेंगे ही। सार्वभौमिक सम्मान और पहचान के अगले चरण में इसे ले जाना होगा।

तेन्मा: कर्नाटक संगीत घराने की जो एकमात्र चीज मुझे पसंद है, वह यही है। आपने इतने अच्छे ढंग से संगीत को संस्थाबद्ध किया है कि यह इस विधा में वैयक्तिक कलाकारों को आगे ले जाता है और वास्तविकता से कहीं बड़ी छवि उनकी हो जाती है। लेकिन वह इसलिए है कि हमारे पास सामाजिक पूँजी है और इसे लेकर विशेषाधिकार है।

तेन्माव: अब जैसे कि हम अपने स्वयं के पारिस्थितिकीय तंत्र के साथ काम कर रहे हैं, इसे समझ रहे हैं, और हिसाब लगा रहे हैं कि इस अंतराल में कौन रहता है। गण के साथ सबसे बड़ी समस्या यह है कि यह उत्तरी चेन्नैै में अटका हुआ है। जब टीसीसी बैंड के उत्तंरी चेन्नै से संबंध न रखने वाले मानु, नन्दयन और अरिवु जैसे सदस्य इस कला रूप के साथ जुड़ते हैं तो धारणा बदलती है, दृष्टिकोण परिवर्तित होता है।

इसइवनि, आप इस बैंड में एकमात्र महिला हैं, ठीक ना ॽ
इसइवनि (गायिका): हाँ, और इस बैंड का हिस्साॽ होने पर मुझे गर्व है। हमारे विचारों में पूर्णत: मतैक्य आ गया है। मेरा परिवार आरंभ में झिझका था, किंतु इस टीम के साथ मिलने के बाद उन्हें लगा कि यह एक महत्वपूर्ण अवसर है। आज मुझे देखने के बाद बहुत सारी लड़कियाँ गण गा रही हैं, और बैंड को अपने में ज्यादा महिलाओं को लेना चाहिए।

तेन्माझ: हमने महिला संगीतकारों के लिए एक खुला बुलावा रखा हुआ है। हम पितृसत्ता को लेकर बहुत सचेत हैं और यह सुनिश्चित करते हैं कि यह टीसीसी के अंदर प्रकट न हो। किंतु टीसीसी का हिस्साख बनने के लिए बहुत ज्यादा महिलाएँ / लड़कियाँ आगे नहीं आ रही हैं। हम बहुत ही धारदार बैंड हैं, हम अपनी राजनीति नहीं छिपाते और वही चीज इसे संभवत: कठिन बना देती है। हमारा संगीत अपरिष्कृ त आदिम वृत्ति के बारे में होता है।

क्या यह संकीर्णतावादी मानसिकता है जो महिलाओं को रोक रही हैॽ और क्या (टीसीसी से जुड़ने के) आकांक्षी सदस्यों के लिए अत्यधिक राजनीतिक होना जरूरी होता हैॽ

अरिवु: अगर वे पितृसत्ता और जाति व्यवस्था का सामान्यीकरण नहीं कर रहे हैं, तो यही पर्याप्त है …
किसी स्त्री की देह जाति का ही संस्थानीकरण होती है। इसीलिए जब कोई महिला जाति के विरोध में गाती है तो उसे स्वीकारना समाज बहुत कठिन पाता है। इस बैंड में एक स्त्री की उपस्थिति से लोग नाराज हैं। मर्द वर्चस्वशील होने, नियंत्रनकारी होने और अपनी पितृसत्ता और जातिवाद के समर्थन में महिलाओं का इस्तेमाल करने का इतना ज्यादा आदी है कि वह उसकी मजबूत आवाज़ नहीं सुन सकता। वह यह नहीं स्वीकार कर सकता कि उसे नीचे उतरने की जरूरत है और उसका नीचे उतरना जो समानता लाता है, उसे वह नहीं चाहता है।

कामुकता के विषय मेंॽ
तेन्मा: हम अपने गीतों में कामुकता के प्रवाह के बारे में बात करते हैं। यौनिकता बहुत आम है। हम आज़ादी और मुक्ति के विषय में बोलते हैं और उन्हींं के अंतर्गत वैयक्तिक चाहतें आती हैं।

क्या तमिल सिनेमा ने गण को आइटम नम्बर तक घटाकर इसे दोयम दर्जे का बना दिया है ॽ
बालचंदर: गण किसी बात को व्यक्त‍ करने का सबसे आसान रास्ता है क्योंकि यह रूपकों का इस्तेमाल नहीं करता है, यह प्रत्यक्ष अभिव्यक्ति वाली कला है और इसीलिए इसका विदोहन भी किया गया है। सिनेमा इसके साथ अभद्रता के साथ पेश आया है। और दोषी हर एक है – गीतकार, संगीत निर्देशक, फिल्म निर्देशक और पार्श्व गायक। सिनेमा उद्योग के भीतरी जातीय वर्चस्व ने भी एक भूमिका अदा की है। यहाँ तक कि गण में उत्तरी चेन्नै की बोली की बारीकियों को भी फिल्म व जगत ने छीन लिया है।

(अनुवादक:– डॉ. प्रमोद मीणा, सहआचार्य, हिन्दी विभाग, मानविकी और भाषा संकाय, महात्मा गाँधी केंद्रीय विश्वयविद्यालय, मोतिहारी,  दूरभाष – 7320920958 )

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