विपक्षी मंच से सपा-बसपा के गायब रहने के मायने

नई दिल्ली। तीन राज्यों के चुनावी नतीजों में भाजपा के पिछड़ने की खबर भऱ से ही विपक्ष की बांछे खिल गई है. चुनाव परिणाम आने से एक दिन पहले ही जहां ज्यादातर विपक्षी दलों ने एक साथ आकर भाजपा के खिलाफ मोर्चे की कवायद शुरू कर दी तो वहीं बिहार से एनडीए में शामिल राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने मोदी कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया. कुशवाहा के महागठबंधन में शामिल होने की अटकलें लगाई जा रही है.

गठबंधन से अलग होते ही कुशवाहा को मोदी के द्वारा बिहार के लिए किए गए वादों की याद आ गई. तो चार साल से ज्यादा समय तक सत्ता की मलाई खाने के बाद कुशवाहा को सामाजिक न्याय का एजेंडा भी याद आ गया है. उन्होंने आरोप लगाया कि सामाजिक न्याय के एजेंडे से हटकर RSS के एजेंडे को लागू किया जा रहा है. इससे पहले कुशवाहा तेजस्वी यादव औऱ शरद यादव से भी मुलाकात कर चुके थे.

हालांकि महागठबंधन की कवायद को मायावती और अखिलेश यादव के शामिल नहीं होने से झटका लगा. अखिलेश यादव ने चुनावी नतीजों से पहले महागठबंधन की कवायद को जल्दबाजी बताया. तो वहीं मायावती पहले ही कह चुकी हैं कि जब तक सीटों को लेकर कोई पुख्ता बातचीत नहीं हो जाती, तब तक गठबंधन बनाने का कोई फायदा नहीं है. पिछले दिनों एक प्रेस विज्ञप्ति में बसपा प्रमुख ने कहा था कि चुनाव पूर्व बने गठबंधन अक्सर सीटों के तालमेल के समय टूट जाते हैं, इसलिए सीटों पर सहमति के बाद ही बसपा किसी गठबंधन में घोषित तौर पर शामिल होगी.

दोनों प्रमुख दलों के महागठबंधन की बैठक में शामिल नहीं होने की एक वजह  दोनों की कांग्रेस पार्टी से नाराजगी भी है. अखिलेश यादव खुलकर कांग्रेस से अपनी नाराजगी जता चुके हैं। तो वहीं मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ चुनाव से पूर्व कांग्रेस के अड़ियल रवैये के कारण गठबंधन की बात नहीं बनने पर बसपा प्रमुख मायावती भी कांग्रेस से नाराज हैं.

उत्तर प्रदेश के इन दोनों प्रमुख राजनीतिक दलों के नेताओं के महागठबंधन की बैठक में शामिल नहीं होने से जहां विपक्षी उम्मीदों को झटका लगा है तो वहीं भाजपा इसे अधूरे विपक्ष की गोलबंदी बता रही है. जो भी हो सत्ता और विपक्ष की असली लड़ाई पांच राज्यों के चुनाव परिणाम ही तय करेंगे. इन परिणामों के बाद समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी का रुख क्या होगा, यह भी बड़ा सवाल है.

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