झारखंड: झारखंड के साहिबगंज जिले में काजू की खेती वन समिति के सदस्यों के जीवन में खुशहाली लाने वाली है. इन वन समितियों में आदिवासी व पहाड़ी ग्रामीण शामिल हैं. उत्पादित काजू की बिक्री से जो लाभ मिलेगा उसमें समिति के सदस्य बराबर के हिस्सेदार होंगे.
जो पथरीली जमीन खेती के लिए अब तक अनुपयुक्त थी वही अब काजू की खेती का आधार बनेगी. अच्छी बात यह है कि इससे क्षेत्र में पत्थर के खनन पर भी रोक लग सकती है. साहिबगंज क्षेत्र एक मॉडल के रूप में आसपास के लोगों को काजू की खेती के फायदे और पत्थर के खनन से नुकसान बतायेगा. वन विभाग ने नर्सरी में लगभग दस हजार काजू के पौधे तैयार किए हैं. जिससे वन समिति आस पास के तीन ब्लॉक में जल्दी लगायेगी.
वहां के बोरियो ब्लॉक के बांझी, जसायडी गांव, बरहेट के पतौड़ा और तालझारी के मालीटोक गांव का चयन किया गया है. यहां लगभग 15 एकड़ पथरीली भूमि पर काजू के पौधे लगाए जाएंगे. वन विभाग अपनी तीन नर्सरी में काजू के पौधे तैयार करा रहा है. ये पौधे अभी 6 इंच लंबे हुए हैं. जैसे ही इनकी लंबाई डेढ़ फीट होगी, इन्हें रोपने का काम शुरू किया जाएगा. विभाग के अनुसार एक पौधे के पेड़ बनने व फल देने में लगभग पांच से छह साल का समय लगता है.
एक पेड़ से एक साल में लगभग दस किलो तक काजू का उत्पादन हो सकता है। यानी कुछ एकड़ भूमि पर इसकी खेती कर सालाना पांच से दस लाख रुपये की आमदनी की जा सकती है। जिले की आदिवासी पहाड़िया व अन्य जाति के लोग इसका लाभ ले सकते हैं।
गौरतलब है की झारखंड में आदिवासियों की संख्या काफी आधिक है इस मुहीम से इस तबके जरूर फायदा होगा और जीवन स्तर में सुधार भी जरुर होगा.
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