बलात्कारी आशाराम बापू का ‘ब्रह्मज्ञान’

पिछले दिनों बलात्कार के जुर्म के लिए आशाराम को सजा हुई. आशाराम ने कोर्ट में बचाव में जो दलीलें पेश की थीं उनमें एक दलील बड़ी रोचक और ध्यान देने वाली है. बलात्कारी आशाराम की दलील थी कि ब्रह्मज्ञानी व्यक्ति किसी के साथ भी यौन संसर्ग कर सकता है, यह दैवीय कृत्य होता है. ईश्वर को जब किसी के साथ यौन संसर्ग करने की इच्छा होती है तो वह ब्रह्मज्ञानी व्यक्ति के शरीर में प्रवेश करता है.

 इस तरह आशाराम को यह विश्वास था कि ‘ब्रह्मज्ञानी’ व्यक्ति द्वारा लड़की का यौन शोषण आपराधिक कृत्य नहीं होता है. इस तरह हम देखते हैं कि ‘ब्रह्मज्ञान’ इंसान को अमानवीय मूल्यों और आपराधिक कृत्यों के प्रति अपराधबोध से भी मुक्त करता है जिससे समाज में अनाचार फैलता है और ‘ब्रह्मज्ञानी’ व्यक्ति को कानून के साथ-साथ समाज का भी अपराधी बना देता है. इसलिए ब्राह्मणवादी विचारधारा बाकी मनुष्यों के साथ साथ ब्राह्मण के लिए भी खतरनाक साबित होती है. इसको जितनी जल्दी हो सके त्याग देना चाहिए. बहुजन समाज को तो इससे दूर ही रहना चाहिए.

बहुजन संघर्षशील और जुझारू है. अपनी मेहनत के दम पर कुछ भी कर सकते हैं. तमाम बाधाओं और सुविधाओं से महरूम होने के बावजूद आज बहुजन हर क्षेत्र में अपनी प्रतिभा के दम पर आगे बढ़ रहे हैं. सवाल यह है कि तमाम सुविधाओं का भरपूर उपभोग करते हुए भी ब्राह्मण आज तक कोई आविष्कार या खोज क्यों नहीं कर सका ? ब्राह्मण समाज अपने बीच से आज तक कोई वाल्टेयर क्यों नहीं पैदा कर सका ? ब्राह्मण के अंदर वो कौन सी हीन ग्रंथि है जो ब्राह्मण को हमेशा खुद को ही श्रेष्ठ मानने पर मजबूर करती है ? इन सब सवालों पर गंभीर चिंतन होना चाहिए.

कुछ साल पहले की बात है. इलाहाबाद हाईकोर्ट बार एसोसिएशन का चुनाव चल रहा था. अध्यक्ष पद के एक ब्राह्मण प्रत्याशी, जो पूर्व में भी अध्यक्ष रह चुके थे, चैंबर में अधिवक्ताओं को संबोधित कर रहे थे. उनके पैनल से प्रायः सभी पदों पर ब्राह्मण ही चुनाव लड़ रहे थे. एक ठाकुर जाति के अधिवक्ता ने टोक दिया कि हर पद पर ब्राह्मण प्रत्याशी नहीं होना चाहिए.

इस पर उनका जवाब था,”ब्राह्मण आवश्यक बुराई है. आप उसकी लाख आलोचना कर लीजिए लेकिन जन्म से लेकर नामकरण, विवाह होने और मृत्यु तक ब्राह्मण आवश्यक है. ब्राह्मण में लाख बुराईयां हो सकती हैं लेकिन ब्राह्मण के बिना आपका कोई काम नहीं चल सकता.”

मुझे लगा कि पंडित जी ठीक ही कह रहे थे. जब तक आप अपना कोई भी सामाजिक-सांस्कृतिक कार्य बिना ब्राह्मण के सम्पन्न करना नहीं शुरू करते हैं, आपको ब्राह्मणवाद की आलोचना करने का कोई नैतिक अधिकार नहीं बनता है. इसलिए जन्म से लेकर नामकरण, विवाह और मृत्यु तक सारे कार्य खुद करना सीखिए. जब तक आपके किसी कार्य के लिए ब्राह्मण आवश्यक है, ब्राह्मणवाद खत्म नहीं हो सकता. इसीलिए अर्जक संघ ने देश में अर्जकों हेतु एक वैकल्पिक सांस्कृतिक व्यवस्था की स्थापना की है जिससे आपको अपने किसी भी सांस्कृतिक कार्य में ब्राह्मण को बुलाने की मजबूरी न रहे.

आपको जानकर आश्चर्य हो सकता है कि जिस तरह क्षत्रियों, वैश्यों और शूद्रों में तमाम जातियाँ होती हैं उसी तरह ब्राह्मणों में भी तमाम जातियाँ होती हैं. लेकिन सवाल उठता है कि ब्राह्मण एक क्यों दिखता है ? क्या आपने कभी सोचा कि जिस तरह अहीर, गड़ेरिया, कुर्मी, कोइरी, जाट, गुजर, लोध, चमार, पासी, धोबी, लुहार, कुम्हार, तेली, राजपूत जैसी तमाम जातियाँ अपनी अलग पहचान बताती हैं उसी तरह ब्राह्मणों की तमाम जातियाँ अपनी अलग-अलग पहचान क्यों नहीं दिखातीं ?

इसकी वजह है ब्राह्मण का अपना अलग धर्म. ब्राह्मण से जब उसकी जाति पूछी जाती है तब वह अपने धर्म, ब्राह्मण धर्म को बताता है. वह अपनी जाति कभी नहीं बताता. ब्राह्मणों की तमाम जातियों के बीच भी उसी तरह छुआछूत और भेदभाव मौजूद है जैसे बाकी जातियों के बीच. कभी कभी तो ये भेदभाव गैर ब्राह्मण जातियों से भी ज्यादा होता है.

ब्राह्मणों में छुआछूत के उदाहरण के लिए पंक्तिदूषण ब्राह्मण को देखिए. पंक्तिदूषण ब्राह्मण उन ब्राह्मणों को कहा जाता है, जिनके बैठने से ब्रह्मभोज की पंक्ति दूषित समझी जाती है. ऐसे लोगों की बड़ी लम्बी सूची है. इसके विपरीत पंक्तिपावन ब्राह्मण उन ब्राह्मणों को कहा जाता है, जिनके भोजपंक्ति में बैठने से पंक्ति पवित्र मानी जाती है. इन ब्राह्मणों में प्राय: वेदों का स्वाध्याय और पारायण करने वाले श्रोत्रिय ब्राह्मण होते हैं. पंक्तिदूषक ब्राह्मणों की लम्बी सूची देखकर समझा जा सकता है कि पंक्तिपावन ब्राह्मणों की संख्या बहुत बड़ी नहीं हो सकती और ज्यादातर ब्राह्मण ब्राह्मणों में अछूत जैसे ही हैं. इस तरह ब्राह्मणों के बीच भी भयंकर भेदभाव और छुआछूत मौजूद है. इससे निष्कर्ष निकलता है कि ब्राह्मणवाद स्वयं ब्राह्मण के लिए भी हानिकारक है.

एक और महत्वपूर्ण कार्य है जो बहुजनों के लिए बहुत जरूरी है और इसे तत्काल करना चाहिए और वह है ब्राह्मणवादी मीडिया का बहिष्कार. क्या आप जानते हैं कि देश के विभिन्न राज्यों में ब्राह्मणों की तमाम जातियां और उपजातियां आरक्षण का लाभ लेती हैं ? जोशी ब्राह्मण, महाब्राह्मण, गोसाईं, मराठी ब्राह्मण, बैरागी ब्राह्मण, मणिपुरी ब्राह्मण जैसी तमाम जातियां विभिन्न राज्यों में ओबीसी कोटे के तहत आरक्षण का लाभ प्राप्त करती हैं. इसके अतिरिक्त गुजरात में कायस्थ और कर्नाटक तथा गुजरात में राजपूत भी ओबीसी में शामिल हैं और आरक्षण का लाभ प्राप्त करते हैं.

लेकिन सबको प्रतिनिधित्व सुनिश्चित कराने वाली राष्ट्रनिर्माण की पहल आरक्षण की विरोधी ब्राह्मणवादी मीडिया यह भ्रम बनाए रखने में कामयाब हो जाती है कि द्विज जातियों को आरक्षण का लाभ नहीं मिलता है. इस भ्रम को तोड़ना बहुत जरूरी है नहीं तो ये लोग अपनी मुट्ठी भी ताने रहेंगे और इनकी काँख भी नहीं दिखेगी. अश्लील ब्राह्मणवादी मीडिया का बहिष्कार कीजिए और अपने घरों में ब्राह्मणवादी मीडिया द्वारा परोसी जाने वाली अश्लील सामग्री फैलने से रोकिए. अपनी आने वाली पीढियों को ब्राह्मणवादी मीडिया से दूर रखिए.

  • मनोज अभिज्ञान
    अधिवक्ता एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता
    ईमेल : juristverdict@gmail.com

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.