विधानसभा चुनाव के मुहाने पर खड़े राजस्थान में मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व के बीच जारी रस्साकशी सबके लिए कौतुहल का विषय बन गई है. भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व प्रदेशअध्यक्ष के खाली पड़े पद पर अपना उम्मीदवार बैठाना चाहता है, जबकि सीएम वसुंधरा राजे इस पद पर अपना करीबी चाहती हैं.
हाल तक यह रस्सा-कस्सी प्रदेशाध्यक्ष के पद तक सीमित दिखाई दे रहा था, लेकिन केंद्र सरकार का प्रदेश के मुख्य सचिव एनसी गोयल को सेवा विस्तार देने से इंकार करने के बाद मामला गंभीर हो गया है. विगत 16 अप्रैल को अशोक परनामी के इस्तीफे के बाद से ही भाजपा प्रदेश अध्यक्ष का पद खाली है. लोकसभा की दो और विधानसभा की एक सीट के लिए जनवरी में हुए उपचुनावों में पार्टी की करारी हार के बाद परनामी की छुट्टी कर दी गई थी.
18 अप्रैल को अशोक परनामी के इस्तीफे के बाद केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत का नाम तय माना जा रहा था. पार्टी के कई नेताओं ने तो सोशल मीडिया पर शेखावत को प्रदेश अध्यक्ष बनने की बधाई तक दे डाली. लेकिन इस घटनाक्रम के बाद वसुंधरा खेमे की ओर से आई प्रतिक्रियाओं ने पार्टी को मुश्लिम में डाल दिया. जाहिर है इस खेमे के लोग वही बोल रहे थे जो तो वसुंधरा चाहती थीं.
ऐसे समय में जब भाजपा में मोदी-शाह की मर्जी के बिना पत्ता भी नहीं हिलता है तब प्रदेश अध्यक्ष पद पर हो रही कशमकश अप्रत्याशित है. दरअसल, वसुंधरा की राजनीति करने की अपनी शैली है. एकदम रजवाड़ों की मानिंद. ना-नुकुर करने और ऑर्डर देने वालों को वे पसंद नहीं करतीं. वर्तमान में वसुंधरा सत्ता में तो हैं ही, लेकिन संगठन पर भी वे अपनी पकड़ रखना चाहती हैं.
यह बात सबको पता है कि अशोक परनामी वसुंधरा राजे की मर्जी से प्रदेश के अध्यक्ष बने थे. चूंकि अब चुनाव नजदीक हैं इसलिए वसुंधरा ऐसा प्रदेशाध्यक्ष नहीं चाहतीं जो उनके वर्चस्व में बंटवारा कर ले. वे कोई ऐसे नेता को भी इस पद पर नहीं चाहती हैं कि जो उन्हें भविष्य में चुनौती दे सके.
मामला तब और पेंचिदा हो गया जब पार्टी महासचिव रामलाल और वी. सतीश की मौजूदगी में अमित शाह और वसुंधरा राजे की 26 अप्रैल को हुई मैराथन बैठक में भी कोई नतीजा नहीं निकल पाया. वसुंधरा राजस्थान में अपनी पसंद का अध्यक्ष चाहती हैं जिसके पार्टी नेतृत्व फिलहाल तैयार नहीं है. लेकिन यही केंद्रीय नेतृत्व वसुंधरा राजे की बात नहीं मानता तो वो खुल कर विरोध में उतर सकती हैं. इस बीच, केंद्र सरकार का वसुंधरा की इच्छा के बावजूद तत्कालीन मुख्य सचिव एनसी गोयल को सेवा विस्तार देने से इंकार करना इस ओर संकेत है कि पार्टी नेतृत्व फिलहाल आत्मसमर्पण के मूड में नहीं है.