खुला खतः तुम्हारी लड़ाई सिर्फ BHU से नहीं, समाज में फैली पुरूषवादी मानसिकता से भी है

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कौन हैं आप लोग और आंदोलन भी किसके खिलाफ कर रही हो..?
मेरी नजर में आप सभी लोग निहायती बेवकूफ हो. आप पुरुषों के खिलाफ आंदोलन कर रही हो. आपको चाहिए भी क्या कि छेड़-छाड़ बन्द हो, यूनिवर्सिटी में हर जगह कैमरे लगे, और लाइट की पर्याप्त व्यवस्था हो ताकि आप सुरक्षित महसूस कर सके, इतनी बड़ी मांगें, आपको शर्म नहीं आ रही ये मांगने में..?

शायद आपको पता नहीं ये सब पाना आपका हक ही नहीं है. क्या आपको नहीं पता की ये तुसली दास जी का देश है, जहां वे कहते है कि
ढोर गंवार शुद्र पशु ‘नारी’,
सकल ताड़न के अधिकारी.

आपको इतनी सी बात समझ नहीं आती की जो आपके साथ छेड़-छाड़ की घटनाएं हो रही हैं, इसमें कुछ गलत नहीं हैं. इस देश की महान संस्कृति में आप पशु के बराबर हो. और ये क्या कम है कि वो महान पुरुष जो आपके साथ बदसलूकी कर रहे हैं, वे कम से कम आपको इंसान तो समझ रहे हैं. नहीं तो आपको ये महान भारतीय सभ्यता पशुतुल्य या प्रताड़ना के लायक ही समझती है. और यहां मैं मनुस्मृति की तो बात ही नहीं कर रहा अगर उस पर गया तो ये लेख पत्र की जगह एक किताब बन जाएगा.

और आप क्या समझ रही हैं BHU में सुरक्षा प्राप्त करके आप जीत जाओगी. आप बच कर जाओगी कहां…
जब आप पैदा होने वाली थी तो आपकी मां को ताने मारे जाते थे की लड़की पैदा नहीं होनी चाहिए, पर आप पैदा हो गई. फिर आपकी मां के साथ दोयम दर्जे के नागरिक सा व्यवहार होने लगा. फिर आपकी एक और बहन हुई होगी तो आपकी मां को प्रताड़ित किया जाने लगा होगा. फिर भी अगर एक और लड़की हो गयी तो हो सकता था आपकी मां को घर से बाहर निकाल दिया गया होता या फिर आपके पिता दूसरी शादी कर लेते. नहीं तो अगर 2 या 3 लड़कियों के बाद एक लड़का हो भी गया होता तो, जीवन भर आपको उससे कम प्यार में निकलना पड़ता.

फिर चलो ये क्या कम है कि आपको उसके बाद स्कूल पढ़ने भेज दिया बरना क्या करोगी आप लोग पढ़ कर. शादी के पहले और शादी कि बाद करना तो आपको घर के काम ही है, चाहें फिर आपके पास डिग्री कोई भी हो. और लो इस पुरुषवादी समाज ने आप पर इतना बड़ा उपकार फिर कर दिया, कि आपको कॉलेज भेज दिया पढ़ने के लिए. पर फिर वही बात… कर लो आप पीएचडी भी. फिर भी आपका काम तो बच्चे पैदा करना ही है. उन्हें संभालना ही है और अपने पति की हवस मिटानी है.

और स्कूल, कॉलेज जाने के बीच आपको घर के बाहर और कभी कभी घर के अंदर बैठे हवसी पुरुषों की हवसभरी निगाह से बचना भी है. वो स्कूल जाते समय आपको छेड़ेंगे, ताने कसेंगे फिर आप कॉलेज जाओगी तो रोड-चौराहे पर बैठे ये पुरुष आपके शरीर की बनावट के हिसाब से आपको देखेंगे.

कॉलेज में हर लड़का आपसे दोस्ती इसलिए नहीं करेगा क्योंकि आप पढ़ने में होशियार हो या कमजोर हो बल्कि इसलिए क्योंकि आप एक लड़की हो और आज दोस्ती होगी तो एक न एक दिन आपको प्यार की झूठी बातों में फंसा कर आपके शरीर से अपनी हवस मिटा सकेगा. और हवस मिटाते है फिर किसी बहाने से रिश्ता तोड़ कर फिर वो पुरुष नए शरीर की तलाश में निकल पड़ेगा.

ऐसा नहीं है कि पुरुष की प्रवृति कोई जानता नहीं, पर उस पुरुष को आज की पीढ़ी में स्टंट माना जायेगा या फिर कूल करके सराहा जायेगा और अगर आप लड़की के बारे में इन्हीं लोगों को पता चलेगा कि आपके बॉय फ्रेंड रहे है तो आपको ये समाज ‘चरित्रहीन’ की उपमा देगा. पर आपको तब भी खुश होना चाहिये क्योंकि कम से कम पुरुष आपको इंसान तो समझ रहा है.

आपका सफर यहीं खत्म नहीं होता इसी दौर में आपको समाज की निगाह से बचना भी है आप कैसे कपड़े पहन रही हैं, आप कहां और किसके साथ जा रही हैं, आप किस तरह बोल रही है, किस तरह उठ रही हैं.

जो समाज के 4 लोग है, ‘4 लोग क्या कहेंगे वाले’ ये अपने बच्चे से ज्यादा आपकी फ़िक्र करेंगे और कहीं किसी लड़के के साथ बाजार में या बाइक पर आपको देख लिया. तो बस समाज में आपका और आपके माता-पिता का जीना मुश्किल हो जायेगा, हर कोई आपके माथे पर चरित्रहीन लिखने के लिए दौड़ेगा.

उसके बाद शुरु होता है असली जीवन, आपके पिता आपकी शादी की चिंता में रात भर खोये रहेंगे, वे खाना नहीं खाएंगे, जवान लड़की की शादी करनी है. पूरा परिवार मिल कर आपको ये एहसास कराएगा की आप बोझ है उन पर. फिर आपके पिता निकलेंगे एक लड़का खरीदने जो अब बाकि जीवन उनका बोझ ढो सके.

फिर एक दिन लड़का आएगा आपको देखने और आपकी सारी डिग्रियां एक तरफ रख कर लड़के की मां आपसे पूंछेगी कि…
बेटा खाना बना लेती हो? और ये सवाल काफी होगा आपको ये बताने के लिये की आपका बाकी जीवन कैसा होने वाला है. नहीं तो मान लो लड़के के घर वाले ये दावा करें की वो प्रगतिशील हैं. तब वे कहेंगे देखो बेटे आप को जॉब करनी हो शादी के बाद तो आप कर सकती है. लेकिन साथ में ऑफिस जाने से पहले आपको घर के सारे काम करने पड़ेंगे, फिर ऑफिस से आ कर काम करने पड़ेंगे और रात को सास-ससुर की सेवा के साथ पति के लिए बिस्तर तैयार करना पड़ेगा. इस बीच लड़के और लड़की के माता-पिता दहेज़ की बात करने के लिए आपका मन बहलाने के लिए कहेंगे की बेटा आप लोग अकेले में बात कर लो. और एक पूरी तरह से अंजान लड़के से पांच मिनट बात करके आपको तय करना होगा की अगले 50 साल अपने जीवन के आप इस लड़के के साथ बिताओगे की नहीं? और नब्बे प्रतिशत उम्मीद मानिये की आपके माता-पिता को लड़का पसन्द है तो आपको भी लड़का पसन्द करना ही होगा क्योंकि पैसे की डील तय हो गयी होगी.

और लड़का आपसे केवल 2 सवाल पूछेगा की आपका कोई बॉयफ्रेंड रहा है?
और दूसरा अगर लड़का मेट्रो सिटी से है तो पूछेगा की क्या आप वर्जिन हो?
और मायने ये बिलकुल नहीं रखता की लड़के का इतिहास कैसा रहा हो बल्कि मायने ये रखता है कि आपका इतिहास कैसा है. और आपको पहले सवाल के जबाब में ‘नहीं’ कहना है और दूसरे सवाल के जबाव में ‘हां’ कहना है और लो शादी तय!

और फिर शादी के बाद दिन भर काम और रात को पति के लिए कपड़े उतार कर जब उसका मन हो तब तैयार रहना है. हो सकता है ये आपके लिए ‘मेरिटल रेप’ हो, लेकिन दिल्ली हाईकोर्ट में भारत सरकार ये कहती है कि हम ‘मेरिटल रेप’ की अवधारणा को नहीं मानेंगे. क्योंकि अगर ऐसा होने लगे तो परिवार नाम की संस्था खत्म होने का डर है. तो इस प्रकार ये महान देश आपको आपके ‘शरीर पर भी हक़ नही देता’ शादी के बाद आपका शरीर आपके पति के लिए खिलौना बन जाता है आप मनो या ना मानो.

असल में हम भारतीय दुनिया के सबसे दोगले प्राणी है जो गाय को अपनी माता मानते है और उसके लिए जान लेने को तैयार बैठे है.
हम वर्ष में 18 दिन देवी की पूजा करते है और वो देवी जिसने हमें जन्म दिया है, जो पत्नी या पुत्री के रूप में है, उसे हर रोज किसी ना किसी तरह से प्रताड़ित करते हैं.
हम कहते हैं कि हमारी सभ्यता बहुत महान है क्योंकि हमारे देश में कहा जाता है कि..
“यत्र नारी पूज्यंते रमन्ति तत्र देवताः”
पर फिर भी दुनिया में सबसे ज्यादा महिलाओं के खिलाफ अपराध हमारे ही देश में होता है, हमारे ही देश में सबसे ज्यादा महिला भ्रूण हत्या होती है, सबसे ज्यादा महिलाओं के साथ बलात्कार होता है.

महिलाओं के साथ अन्याय को तो ये समाज गिनता ही नहीं है. तभी अपनी पत्नी को छोड़ने के बाद श्री राम मर्यादा पुरुषोत्तम बन जाते हैं, सिद्धार्थ गौतम अपनी पत्नी को छोड़ कर महात्मा बुद्ध बन जाते हैं. लोग इन दोनों पुरुषों की महानता का बखान करते नहीं थकते. पर कोई ये नहीं देखता की पत्नी के रूप में सीता ने और यशोधरा ने क्या खोया.

क्या उनकी आकांक्षा कोई मायने नहीं रखती. एक पत्नी और महिला होने के नाते?
क्या केवल पुरुष की मर्यादा और उनकी ज्ञान प्राप्ति की ललक ही सब कुछ है?
क्यों शादी के बाद महिला को अपना घर छोड़ना पड़ता है?
क्यों शादी के बाद महिला को अपना पहनावा बदलना पड़ता है ?
क्यों मंगलशूत्र और करवाचौथ केवल महिलाओं के लिए है, पुरुषों के लिए ऐसे विधान क्यों नहीं है?
आप इन सवालों के जबाब मांगिए इस समाज से तब आपकी लड़ाई सार्थक होगी. तब वो समस्या के मूल पर प्रहार करेगी.

आप BHU के बाहर धरना दे कर अगर सोच रही हो क़ि आपकी लड़ाई केवल BHU प्रशासन से है तो आप गलती कर रही हो, आपकी लड़ाई इससे कहीं बड़ी है.
उस मां और दादी से है जो केवल लड़का चाहती है,
आपकी लड़ाई उस पिता से है जो लड़के की पढ़ाई पर पूरा पैसा खर्च करता है पर लड़कियों की नहीं,
आपकी लड़ाई उस पिता से भी है जो अपनी लड़की के साथ गलत हुआ किसी ने छेड़ा है या व्यभिविचार किया है पर उस गलत करने वाले के खिलाफ कुछ नहीं बोलता क्योंकि इसे डर इस बात का है कि लोग उसकी लड़की पर ऊंगली उठाएंगे.
आपकी लड़ाई उस मां के साथ भी है जो अपनी लड़की पर पहले शक करती है जब उसके साथ छेड़-छाड़ हुई हो.
आपकी लड़ाई उस समाज के साथ भी है जो लड़की के कपड़ो से उसका चरित्र तय करता है.
आपकी लड़ाई उन पुरुषों से भी है जो महिलाओं को मात्र सम्भोग की वस्तु समझता है.
आपकी लड़ाई उस सास से भी है जो अपनी बहू को काम वाली बाई समझती है.

इस लड़ाई को इतनी छोटी मत समझो, आप रामलीला मैदान में इस देश की सभी महिलाओं को बुलाओ और मिल कर आवाज़ उठाओ इस पुरुषों के समाज और देश के खिलाफ. आओ घेर लेते हैं पूरी दिल्ली और फिर आज़ादी के लिये आज के हुक्मरानों को मजबूर कर देते है. आओ क्रांति करे और आज़ाद करे 2000 साल से गुलाम महिला को.
आओ दिल्ली…

– सम्राट बौद्ध का खुला पत्र

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