सिर्फ कैशलेस ही नहीं ”कास्ट लेस” इंडिया भी जरूरी

आज जब देश में चारों तरफ नोटबंदी ही चर्चा का विषय बना है तो इस पर एक फिल्म के गाने के कुछ बोल फिट प्रतीत होते हैं “सोने चांदी के महलों में दर्द ज्यादा है चैन थोडा़ है. इस जमाने में पैसे वालों ने प्यार छीना है, दिल को तोड़ा है.”

एक जमाना था जब रोटी कपडा़ और मकान ही लोगों की आवश्यकता हुआ करती थी. इस पर कई फिल्में भी बनीं. आज बदलते युग में दाल और आटा जितना जरूरी है उतना डाटा भी जरूरी बन चुका है. कन्दराओं और गुफाओं से निकला मानव आज चांद और मंगल ग्रह में आशियाना तलासने लगा है. गुफाओं से लेकर मंगल की यात्रा कई हजार सालों के सफर के बाद तय हो पाया है. महीनों में मिलने वाले संदेश आज पल भर में पहुंच जाते हैं. हफ्तों-महीनों का सफर चंद घंटों में तय हो जाता है.

विकास के इस दौर में कई चीजें इतिहास बन कर रह गयीं हैं. आवश्यकताओं ने मनुष्य को आविष्कारक बना डाला है और ये भूख अभी थमी नहीं है. भारत परंपराओं और मान्यताओं का देश रहा है. यहां मंत्रों पर ज्यादा आस्था रही है, और हमने पूरी शक्ति लाखों मंत्रों और टोटकों को खेाजने में लगा दी यही कारण रहा कि देश साहित्य और शास्त्रों में तो आगे रहा मगर साइंस और टेक्नोलॉजी में पिछड़ गया.

यहां तक कि गांधीजी भी चरखे और कुटीर उद्योगों से ही देश को आगे ले जाने के पक्षधर थे. नेहरू जी ने देश में साइंस और टेक्नोलॉजी को पहली प्राथमिकता में रखा. आजादी के बाद स्वतंत्र भारत की पहली सरकार ने “विज्ञान और प्राकृतिक संसाधनों” का एक पृथक मंत्रालय बनाया जिसको नेहरू जी ने अपने पास ही रखा. राजीव गांधी देश को कृषि प्रधान के साथ-साथ कंप्यूटर प्रधान बनाना चाहते थे. देश में सूचना क्रांति का उनको जनक कहा जाये तो अतिशयोक्ति नहीं होगी. मगर उस वक्त भी देश में कंप्यूटर का ऐसा ही विरोध हुआ था जैसा आजकल डीमोनीटाइजेशन का हो रहा है. जो लोग उस वक्त कंप्यूटर के घोर विरोधी थे वही कंप्यूटर उनकी राजनीति के लिए एक बेहतर लुभावना चुनावी जीत का मंत्र बना.

सूचना क्रांति ने कई ऐसी चीजों को इतिहास बना डाला है जो कभी लोगों के जीवन का अभिन्न अंग हुआ करते थे यथा चिट्टी पत्री, अंतरदेशीय पत्र, पोस्टकार्ड, आदि. धीरे-धीरे इनके विकल्प मौजूद हो गये तो ये चलन से बाहर हो गये. इसके लिए कभी मैंने ऐसा नहीं सुना कि लैटरलेस हो जाओ, पोस्टकार्डलेस हो जाओ, या मनीआर्डरलैस हो जाओ. और आगे भी बदलाव होता रहा है एसएमएस, ईमेल, मोबाइल फोन आदि की दस्तक ने 165 वर्ष पुरानी टेलीग्राम सेवा को 14 जुलाई 2013 को प्रचलन से पूर्णतः बंद कर दिया. मगर डाकघरों पर अभी भी निर्भरता बनी हुई है. विकसित भारत और डिजिटल भारत विज्ञान और तकनीक की राह पर चलकर ही संभव हो पायेगा इसमें संदेह की गुंजाइस नहीं है. मगर पल भर में अप्रत्याशित परिणामों की आशा करना जल्दबाजी होगी. हमारा समाज अतीत से पुराने विचारों और रूढ़ियों से जकड़ा हुआ है, इसलिए भारत में रूस, फ्रांस, इंग्लैंड जैसी क्रांतियां नहीं हो सकी. हम या तो धर्म गुरूओं, साधु संतों के इशारे पर चलने के आदि हो चुके हैं या नेताओं और पार्टियों के डोपिंग का शिकार बनते जा रहे हैं.

नोटबंदी का असली मकसद क्या है? ये दिन प्रतिदिन पहेली बनती जा रही है. 8 नवंबर को जब इसका ऐलान हुआ था तब देश में कालेधन की निकासी और 500 और 1000 के नोटों का पाकिस्तान द्धारा जाली नोट बनाकर आतंकियों को दिया जाना था, के खात्मे के लिए तथा देश से कालेधन की सफाई के लिए नोटबंदी करना अति आवश्यक बताया गया था. 50 दिनों के इस सफर में इसके साथ कई और अध्याय जुड़ते जा रहे हैं यानि कि एक तीर से हजार निशाने साधने की कोशिश हो रही है. कैशलैस योजना में डिजिटल खरीददारी और लेन-देन पर अब इनामी लाटरी भी शामिल की गयी है जो इस योजना को अवश्य ही प्रोत्साहन देने का काम करेगी मगर इसमें 25 दिसंबर अटल बिहारी बाजपेयी के जन्म दिवस और 14 अप्रैल 2017 को बाबासाहेब डा. अंबेडकर की जयंती से जोड़ना क्या विशुद्ध रूप से घूमफिर कर फिर वही दलित वोटों की राजनीति पर आकर नहीं टिक गयी है? जिनके सहारे कांग्रेस पार्टी सत्ता का सुख भोगती रही. दिलचस्प बात ये होगी कि 14 अप्रैल 2017 को कितने गरीबों और दलितों का मेगा शो निकलता है जिससे इनकी वास्तविक स्थिति का पता चल जायेगा. तमाम ऐसी योजनायें स्वतंत्रता के बाद देश में लागू की गयी गरीबों और दलितों के उत्थान के लिए मगर कोई भी योजना न तो पूर्ण हो सकी न ही अपना उदेदेश्य पूर्ण कर सकी. क्योंकि इनका असली मकसद गरीब और दलितों के हित नहीं मगर इनके वोट रहे है.

70 प्रतिशत गांवों में बसा भारत जो अब भी अपने पैरों पर खड़ा होना सीख रहा है, अंगूठा टेक से दस्तखत की ओर 100 प्रतिशत नहीं बढ़ पाया है और टेक्नोलॅाजी की ओर धीरे-धीरे चलना सीख रहा है. ऐसे में उसको एकदम 100 मीटर की रेस में जापान और चीन की बुलेट ट्रेन के साथ कंप्टीशन में खड़ा करना न्यायसंगत नहीं लगता है. कैशलैस ट्रांजेक्शन असंभव नहीं है. इसके लिए सर्वप्रथम देश को डिजिटल लिटरेट करने की जरूरत है. इस ओर डिजिटल इंडिया महत्वकांक्षी योजना साबित हो सकती थी. डिजिटल इंडिया के मिशन को पूर्ण कर ही  डिजिटल ट्रांजेक्शन का रास्ता स्वतः ही निकल सकता था. देश के सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों तक बेहतर स्पीड वाली इंटरनेट सेवा को पहुंचाने के साथ ही हर हाथ में एक स्मार्ट मोबाइल फोन का होना भी आवश्यक होगा. बिजली सभी उपकरणों की जननी है इसकी आपूर्ति भी निर्बाध रूप से देश के हर कोने तक पहुंचाने की चुनौती भी हमारे सामने है.

नोटबंदी ने आज राजनीति के शेयर मार्केट में कई पुराने शेयरों को बंद कर दिया है. जिन शेयरों के सहारे भाजपा ने देश की राजनीति में कदम रखा था उनमें सर्व प्रथम राममंदिर तथा हिंदुत्व का मुद्दा प्रमुख था. 2014 में महंगाई का मुद्दा, एक सिर के बदले दस सिर लाने का वायदा, खातों में लाखों रूपया जमा करने का वायदा, महंगाई को कम करने का वायदा, बेरोजगारी को खत्म करने का वायदा आदि-आदि. हैरानी नहीं चिप की दुनिया है एक छोटी सिलिकॉन चिप ने साइंस और तकनीक की दुनिया में क्रांति ला दी. कभी देश और कलाई की धड़कन समझी जाने वाली एचएमटी घड़ियों को 7 फरवरी 2016 को बंद कर दिया. इसी प्रकार नोटबंदी ने भी कई ज्वलंत मुद्दों को इस वक्त बंद कर दिया है. आज आतंकवाद पर कोई डिबेट नहीं होती, आज गाय और दलित पर बहस नहीं होती, आज महंगाई पर बहस बंद है, आज देशभक्ति और वीर शहीदों पर चर्चा नहीं होती है.

अभी कैशलैस होने मात्र से देश का कायापलट होने वाला नहीं है. कई क्षेत्रों में अभी हमको कड़ी मेहनत और ईमानदारी से काम करने की शख्त जरूरत है. अभी देश को हैंगरलेस, अनटचब्लेटीलेस, अनइम्पलामेन्टईलेस, रेपलेस, क्रप्सनलेस और कास्टलेस भारत बनाना है. अब नोटबंदी भी जाति और मजहब के नाम पर बंटने लगी है, और इसमें भी गरीबों, दलितों, अल्पसंख्यकों को मोहरा बनाकर फिर वही तुष्टीकरण की राजनीति होने लगी है. तो एक कदम कैशलेस लेन-देन के साथ-साथ कास्टलेस खानपान और मान-सम्मान का माहौल भी देश में बन जाये तो अवश्य ही डिजिटल इंडिया और स्किल इंडिया का सही मकसद हासिल किया जा सकता है. सिर्फ अंबेडकर को पूज कर वंचित समाज की दशा बदलने वाली नहीं है. 14 अप्रैल 2017 को मोदी मेगा इनाम की घोषणा अगर पांच सौ और दो हजार के नोटों पर बाबा साहेब डा अम्बेडकर की तस्वीर के साथ करेंगे तो तब सही अर्थ में उनका अम्बेडकर प्रेम प्रदर्शित होगा. वरना देश का दलित वर्ग हमेशा राजनीतिक डोपिंग का शिकार ही होता रहा है.

लेखक प्रवक्ता (भौतिक विज्ञान) हैं. अल्मोडा़ (उत्तराखण्ड) में रहते हैं. संपर्क- iphuman88@gmail.com

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