मेरिट में नाम आने के बाद भी नहीं दिया दलित छात्रा को एडमिशन

भोपाल। देश के सभी शिक्षा संस्थान एक खास वर्ग के साथ भेदभाव कर रहे हैं. शिक्षा संस्थान विशेषरूप से दलितों, पिछड़ों की दाखिला प्रक्रिया में हेर-फेर कर रहे हैं. ताज्जुब की बात है की प्रशासन से शिकायत करने के बाद भी प्रशासन कोई कार्रवाई नहीं कर रहा और मनमाने तरीके से सामान्य वर्ग के लोगों को दाखिला कर रहा है.

पहले इसी वर्ष में महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग और जनसंचार में विभाग में दाखिला प्रक्रिया में हेरफेर हुआ. बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में भी एससी/एसटी और ओबीसी के छात्रों के साथ दाखिला प्रक्रिया में भेदभाव हुआ. यहां पूरी तरह से असंवैधानिक प्रक्रिया के तहत दाखिला हुआ. जिसका छात्रों ने विरोध किया और कई विभागों को शिकायत पत्र लिखे. लेकिन छात्रों को कोई लाभ नहीं मिला. उसके बाद दिल्ली विश्वविद्यालय में भी यही हाल रहा, जिसके विरोध में दलित, पिछड़े और आदिवासी छात्रों ने 28 अगस्त को प्रशासन के खिलाफ विरोध प्रदर्शन भी किया. यहां भी दलित, पिछड़े और आदिवासी छात्रों की फरियाद किसी ने नहीं सुनी.

अब भोपाल स्थित मध्य प्रदेश नाट्य विद्यालय से भी ऐसे भेदभाव की घटना सामने आई है. जहां दलित छात्रा पूनम दहिया को दाखिला न देकर किसी सामान्य वर्ग के लड़के को दाखिला दे दिया. यह नाट्य विद्यालय मध्यप्रदेश सरकार के संस्कृति मंत्रालय के अधीन आता है. दो दिन से छुट्टी के कारण उसकी अधिकारियों से बात नहीं हो पायी है.

नाट्य विद्यालय के निदेशक संजय उपाध्याय का कहना है कि पूनम ग्रेजुएशन का अपना सर्टिफिकेट समय पर जमा नहीं करा पाई इसलिए नामांकन एक लड़के को दे दिया गया. संजय उपाध्याय का जबाव अटपटा और गैर जिम्मेदाराना था. क्योंकि दाखिले के दौरान कोई भी दस्तावेज कम होता है. उसका अंडरटेकिंग लेकर दाखिला लिया जाता है और उसे एक निश्चित समय में विद्यालय में दस्तावेज जमा कराना होता है. लेकिन नाट्य विद्यालय ने ऐसा नहीं किया.

पूनम दहिया ने अपने फेसबुक पोस्ट पर लिखा है:

मध्यप्रदेश नाट्य विद्यालय भोपाल में इस साल मैं भी चयनित हुई थी, लेकिन शिक्षा से वंचित कर दी गई. मुझे कारण बताया गया कि “आप का रिजल्ट नहीं आया है इसलिए आप को एडमिशन नही मिलेगा .”
बाद में मेरी ही जैसी स्थिति में एक दूसरे लड़के को एडमिशन दे दिया गया.
मुझे लगातार फोन में कहा गया की ‘इस साल तुम चुप रहो, तुम्हे अगले साल ले लिया जायेगा.
लेकिन मेरा जो ये साल खराब हुआ, उसका क्या? मेरी जगह कोई वेटिंग का पढ़ रहा है, और मैं चयनित हो कर भी अगले साल का इंतेजार करूँ?
एक ही आधार पर एक का चयन कर लिया गया और मेरा नहीं, ये कैसी रंगशाला है?
और जब मैंने पूछा कि ऐसा क्यों किया गया ये गलत है तो मुझे कहा गया कि ‘हमे सही गलत मत बताओ’
मेरी इस लड़ाई में कोई मेरा साथ नहीं है मैं अकेली हूँ. क्या आप मेरा साथ देंगे.

कहा जाता है कि यह दाख़िला भोपाल के एक अन्तर्राष्ट्रीय प्रसिद्धि के रंग-निर्देशक की इच्छा से लिया गया, जिनका विद्यालय के प्रशासन पर अप्रत्यक्ष रूप से लगभग वर्चस्व और एकाधिकार रहता आया है.

पूनम ने इस अन्याय के ख़िलाफ़ लड़ने का फ़ैसला लिया और न केवल फेसबुक पर अपनी आपबीती लिखी, बल्कि एमपी के संस्कृति सचिव को एक औपचारिक शिकायत पत्र दिया है, और उसकी प्रतियां सभी सम्बंधित अधिकारियों को भेजी हैं. उसने मामले की जांच करने के साथ-साथ यह भी मांग रखी है कि उसे इसी सत्र में दाख़िला दिया जाये, ताकि उसके जीवन का क़ीमती एक साल बर्बाद होने से बचे.

2 COMMENTS

  1. Bahut Bura haal hai. Desh ka
    Manuvaadi apne jade faila Raha hai.
    Jaag jaao.
    Ghar se bahar niklo
    Or samaj Ko Jaa jaake gaav gaav is atyachar ke khilaf laamband ho.
    Sher me bitha tabka napusak ho gya hai.
    Usko apni jimmewari nibhana chaiye.
    Dalalo me laat Maro.
    Kanshiram ki rah pakdo
    Tabhi Kalyan hoga

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