राजस्थान। मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय में आरक्षण रोस्टर में हो रही नियमितताओं को लेकर बड़ा खुलासा हुआ है. विश्वविद्यालय के बड़े पदों पर बैठे अधिकारी अपनी मनमानी कर एससी व एसटी आरक्षित सीटों पर वैकेंसी नहीं निकाल रहे हैं जबकि यूजीसी इसकी मंजूरी नहीं देता है. यानी कि नियमों को ताकर पर रखकर पिछड़े तबके के शिक्षित लोगों का संवैधानिक अधिकार छिना जा रहा है.
इसको लेकर कई प्रकार की बातें कही जा रही हैं. इस संदर्भ में राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, एमएचआरडी, यूजीसी, राज्यपाल, मुख्यमंत्री से लेकर एससी व एसटी वेलफेयर, नई दिल्ली समेत दस विभागों को आवेदन लिखा है. साथ ही जांच कराकर योग्य उम्मीदवारों को उनका हक देने की बात कही है.
इस मामले को लेकर विश्वविद्यालय शैक्षणिक एवं गैर-शैक्षणिक रोस्टर संघर्ष समिति, मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर (राजस्थान) ने इस मुद्दे को उठाया है. इस मामले को लेकर हमारी बात प्रोफेसर बीआर बमनिया व डॉ. हरिश से बात हुई. इनका कहना है कि विश्वविद्यालय खुलेआम संविधान का उल्लंघन कर रहा है. अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के अधिकारों को छिना जा रहा है. इसके अलावा विश्वविद्यालय द्वारा गैर शैक्षिक एलडीसी पदों के रोस्टर में महिलाओं के पदों को अलग से आवंटित नहीं किया गया है जिससे महिला आरक्षण का भी अवहेलना हुआ है. कुल मिलाकर समिति का कहना है कि विवि ने वर्ष 2018 में समस्त भर्तियां आरक्षम नितियों के खिलाफ की है.
उच्चस्तरीय जांच
इस मामले को लेकर विश्वविद्यालय शैक्षणिक एवं गैर-शैक्षणिक रोस्टर संघर्ष समिति की ओर से कमिटी गठन कर उच्च स्तरीय जांच की मांग की है. साथ ही भर्ती प्रक्रिया को पूर्णतया प्रभाव से स्थगित किया जाए जिससे आरक्षण नियमों का पालन हो, संवैधानिक अधिकार का हनन से होने बचे व ए ग्रेड प्राप्त विवि की गरिमा बरकरार रहे. बता दें कि 2018 की भर्तियों का विज्ञापन में साफ तौर पर इनको देखा जा सकता है. साथ ही विवि की वेबसाइट पर भी जानकारी मौजूद है.
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