मंत्रीमंडल विस्तार पर मोदी और जेटली में ठनी

नई दिल्ली। प्रधानमंत्री बनने के बाद पहली बार नरेन्द्र मोदी और भाजपा के चार बड़े नेताओं के बीच मतभेद की खबर है. मामला इतना बढ़ गया है कि मोदी को गुजरात से दिल्ली लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले एक केंद्रीय मंत्री ने तो मंत्रीपद से इस्तीफे की ही पेशकश कर दी. मामला संघ के शीर्ष पदाधिकारियों तक जा पहुंचा और मोदी को अपने पैर पीछे खींचने पड़े.

रविवार को मंत्रिमंडल में हुए फेरबदल के दौरान मोदी की निगाह गृहमंत्री राजनाथ सिंह और वित्त मंत्री अरुण जेटली की ओर भी थी. इसकी भनक मिलते ही एक सितंबर की रात को गृहमंत्री राजनाथ सिंह के घर एक बैठक हुई. इस बैठक में राजनाथ सिंह के अलावा अरुण जेटली, सुषमा स्वराज और नितिन गडकरी मौजूद थे.

असल में प्रधानमंत्री मोदी सुविधा के लिहाज से बड़े मंत्रियों से और ज्यादा समर्पण चाहते थे, जबकि इन मंत्रियों को लगता था कि वो अपना काम ठीक से कर रहे हैं. यह भी कहा गया कि नोटबंदी को एक साल बीतने के बावजूद गरीब तबके की उम्मीदें पूरी नहीं हुई. इस मामले का ठीकरा सरकार का शीर्ष नेतृत्व जेटली के सिर पर फोड़ना चाहता था. इससे जेटली भी अनमने हुए.

इस बैठक में तीन घंटे तक इन चारों नेताओं के बीच मंथन चला. बैठक में आम राय यह थी कि वे साढ़े तीन साल से अपने मंत्रालय जिम्मेदारी से चला रहे हैं. कार्यकाल के अंतिम दौर में वे अपने मंत्रालय छोड़कर दूसरे मंत्रालयों में जाते हैं तो चुनाव के समय उनके कामों का श्रेय दूसरों को जाएगा. साथ ही चुनावी साल में नए मंत्रालयों की चुनौती होगी.

गडकरी सड़क परिवहन में किए कामों को चुनाव से पहले अंतिम मुकाम तक पहुंचाना चाहते हैं. वहीं सुषमा स्वराज को लगता है कि विदेश मामलों और खासकर चीन के साथ हाल में मिली रणनीतिक सफलता का श्रेय उन्हें जाता है. ऐसे में उनके मंत्रालय से छेड़छाड़ ठीक नहीं है.

आखिरकार बाजी चली राजनाथ सिंह ने. राजनाथ सिंह ने वृंदावन के केशवधाम में चल रही संघ और उसके संगठनों की बैठक में यह संदेश भिजवाया कि वे मंत्रिपद छोड़कर संगठन में काम करना चाहते हैं, ताकि खुलकर काम करने की आजादी मिल सके. राजनाथ सिंह का संदेश वृंदावन में उस समय पहुंचा जब पार्टी और संघ दोनों का शीर्ष नेतृत्व मौजूद था.

खबर पहुंचते ही खलबली मच गई. असल में ऐसा कर राजनाथ सिंह ने विरोध दर्ज करा दिया था. राजनाथ की नाखुशी और बड़े मंत्रियों की सोच को वृंदावन की बैठक ने भी बल दिया. और आखिरकार मोदी और अमित शाह को अपने पैर खिंचने पड़े.

इस मामले ने भाजपा के शीर्ष नेताओं और मोदी-शाह की जोड़ी के बीच एक लकीर तो खिंच ही दी है.

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