तो क्या इन मजबूर‍ियों के चलते बार-बार गुजरात जा रहे हैं नरेंद्र मोदी?

Modi

इस साल के आखिर तक होने वाले गुजरात विधानसभा चुनाव ना केवल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए नाक की लड़ाई बनकर रह गई है बल्कि भारतीय जनता पार्टी अध्यक्ष अमित शाह के लिए भी यह प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गया है. चूंकि, दोनों सियासी महारथी इसी राज्य से आते हैं, इसलिए इन्हीं दोनों के कंधों पर गुजरात चुनाव का दारोमदार भी टिका है. मौजूदा दौर में जब प्रधानमंत्री मोदी खुद और उनकी केंद्रीय सरकार गिरती अर्थव्यवस्था के लिए अपनी ही पार्टी के सांसदों और विरोधियों के निशाने पर हैं, तब उनकी लोकप्रियता का आंकड़ा भी पैमाने पर परखे जाने की प्रतीक्षा में आ खड़ा हुआ है. शायद यही वजह है कि इन दोनों नेताओं को अब गुजरात के चक्कर लगाने पड़ रहे हैं. अमित शाह के बाद अब पीएम मोदी शनिवार (7 अक्टूबर) से दो दिवसीय गुजरात दौरे पर हैं. पीएम बनने के बाद पहली बार वो अपने जन्मस्थान वाडनगर भी जाएंगे.

इन दोनों नेताओं और भाजपा के अलावा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के लिए भी गुजरात चुनाव एक लिटमस टेस्ट की तरह बन गया है क्योंकि पिछले दो दशकों से यह पश्चिमी राज्य इन्हीं के कब्जे में रहा है. उधर, 22 सालों से सत्ता के स्वाद से कोसों दूर रहने वाली कांग्रेस भी वर्तमान राजनीतिक घटनाक्रम और वातावरण से उत्साहित नजर आ रही है. राज्यसभा चुनाव में अहमद पटेल की जीत और गिरती अर्थव्यवस्था पर चौतरफा घिरी मोदी सरकार से कांग्रेसी कुनबा गुजरात में वापसी की उम्मीद लगाए हुए है. कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने गुजरात के सघन दौरे के साथ-साथ अब भाजपा की तरह धार्मिक लामबंदी भी शुरू कर दी है.

पाटीदार आरक्षण आंदोलन के नेता हार्दिक पटेल भी पिछले दो सालों से भाजपा के लिए मुश्किलें खड़ी करते रहे हैं. इनके अलावा आम आदमी पार्टी भी कुछ चुनिंदा सीटों पर ताल ठोकने को बेकरार है. आप कोई सीट जीते या नहीं लेकिन सत्ताधारी भाजपा का कई सीटों पर खेल बिगाड़ने में कामयाब हो सकती है. अन्य विपक्षी पार्टियों में मायावती की बहुजन समाज पार्टी भी मोदी-भाजपा-संघ की तिकड़ी को दलित विरोधी ठहराकर उनके खेल को बिगाड़ने की मुहिम में जुटी हुई हैं. ऊना और वडोदरा में दलित समुदाय भाजपा के खिलाफ आवाज बुलंद किए हुए हैं. शरद यादव की अगुवाई वाले जनता दल (यू) के धड़े के कार्यकारी अध्यक्ष और गुजरात से विधायक छोटू भाई वासावा पहले ही अपने इरादे जता चुके हैं कि वो भाजपा का खेल बिगाड़ने के लिए मैदान में डटे हुए हैं.

प्रमोद परवीन का यह लेख जनसत्ता से साभार है.

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