लखनऊ। अपने गठन के समय बहुजन समाज पार्टी की पहचान दलित, पिछड़े और मुस्लिम वर्ग यानि बहुजन समाज के लिए राजनीति करने वाली पार्टी की थी. बाद में बसपा ने खुद को सर्वजन की पार्टी घोषित कर दिया. ऐसे में जहां पार्टी से दलित समाज की कुछ उपजातियां अलग हो गईं तो वहीं पिछड़ा वर्ग भी पार्टी से दूर होने लगा. नतीजा 2014 के लोकसभा चुनाव में पार्टी एक भी सीट न जीत सकी तो 2017 में विधानसभा चुनाव में भी पार्टी महज 19 सीटों पर सीमट गई.
एक के बाद एक इन दो सियासी हारों से सबक लेते हुए बसपा अब पिछड़े समाज को पार्टी से जोड़ने की कवायद में जुट गई है. बसपा प्रमुख मायावती ने 31 अगस्त को पिछड़े समाज के लिए एक अलग विंग बनाया है. ‘भाईचारा बनाओ’ संगठन के नाम से बने इस विंग की कमान बसपा प्रमुख ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पिछड़ों और अतिपिछड़ों को सौंप दिया है.
2007 में यूपी की सत्ता हासिल करने वाली बीएसपी का साथ तब दलित मुस्लिम, पिछड़ों और अति पिछड़ों ने दिया था. लेकिन 2012 विधान सभा, 2014 के लोकसभा और फिर 2017 के विधानसभा में भी पिछड़ों, अतिपिछड़ों और मुस्लिमों ने बीएसपी से दूरी बनाए रखी. इसका नतीजा यह हुआ कि बसपा को लगातार तीन चुनावों में हार का सामना करना पड़ा.
पार्टी की हार की समीक्षा में यह सामने आया था कि मुस्लिम, पिछड़े और अतिपिछड़ों के बसपा से दूर होने से हार मिली है. इसके बाद पार्टी इन वर्गों को अपने साथ जोड़ने की कवायद में जुट गई है.
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