जेएनयू ने पीएचडी छात्र को हॉस्टल से निकाला, छात्र ने लिखा ये खत

साथियों, आप सबके लिए कुछ शब्द….

2009 में जे॰एन॰यू॰ आने से लेके आज प्रशासन द्वारा हॉस्टल से ज़बरदस्ती निकाले जाने तक मैंने बहुत कुछ सीखा है, तरह-तरह के लोगों से सामना हुआ है और अच्छे-बुरे सारे अनुभव भी लिए है इन 9 सालों में. वक़्त के साथ सब कुछ बदलना पड़ता है, पर अपने मूल सिद्धांतो को नहीं बदलना चाहिए.

मैंने ऐसा ही करने का प्रयास किया.

सामाजिक न्याय के विचार को सिर्फ़ समझा नहीं…उसके लिए संघर्ष किया और उसे अपने निजी जीवन में भी जीने लगा. सामाजिक न्याय पर जब-जब ख़तरा मंडराया हुआ दिखा, तब मैंने और हम सब साथियों ने साथ मिल कर उसके लिए लड़ाई लड़ी.

ऐसा ही एक ख़तरा तब मंडराया जब 2016 में UGC का गज़ट आया. इस गज़ट में आदिवासी-दलित-पिछड़ों के साथ साफ़-साफ़ अन्याय हो रहा था, उनके मूल हक़ का हनन हो रहा था. इसी के विरोध में 20 जनवरी 2017 को मैं भूख हड़ताल पर बैठ गया. भूख हड़ताल तो 78 घंटे बाद प्रशासन ने पुलिस द्वारा ख़त्म करा दी, पर हम लोगों का UGC गज़ट के खिलाफ संघर्ष जारी रहा. इस संघर्ष का परिणाम ये हुआ की मई 2018 में UGC ने अपना बहुजन-विरोधी गज़ट वापस ले लिए.

UGC से तो हम जीत गए पर हमारी असली लड़ाई संघ-भाजपा जैसी ब्रह्मणवादी ताक़तों से है. इन ब्रह्मणवादी ताक़तों को ये क़तई पसंद नहीं आता है कि बहुजन अपने हक़ की आवाज़ उठाए. ये अपने जनेऊ से लगातार बहूजनो के का गला घोटने की कोशिश में लगे रहते हैं. मैं हक़ के लिए आवाज़ उठाई तो इन्होंने उसको दबाने के लिए मनु के क़ानून का हर पैंतरा अपनाया. 50 हज़ार का फ़ाइन लगाया, सस्पेंड किया, पुलिस कम्प्लेन की, हॉस्टल ट्रान्सफ़र किया और आज उस समय हॉस्टल से निकाल दिया जब मेरी PhD का सबसे अहम समय है…15 दिन में PhD जमा करनी है और मेरे पास रहने-पढ़ने के लिए कोई रूम नहीं है!

पर आज हम डंके की चोट पर कहता हूँ की ना कभी अपनी विचारधारा से समझौता किया है और ना कभी करूँगा. ये चाहे जितने भी ज़ुल्म कर लें पर मैं लगातार बहुजनो के हक़ की लड़ाई लड़ता रहूँगा…इनके जनेऊ को तोड़ कर बहुजनों का छीन लूँगा. पर इस सब के लिए मुझे आप सभी साथियों की ज़रूरत है. मेरे संघर्ष की रीढ़ की हड्डी आप लोग ही हैं. आपसे बस इतना की कहना चाहता हूँ की “साथियों, चाहे जो हो जाए, समझौता नहीं करना है. एकता के साथ लड़ना है और अपना हक़ लेना है. ब्राह्मणवादियों को दिखा देना है की हमारा हौंसला उनके जनेऊ से बहुत-बहुत मजबूत है. अरे हम तो मेहनतकश लोग हैं…मेहनत करके जीना जानते हैं…ये कुछ भी कर लें पर हम अपनी मेहनत से अपना अधिकार लेकर ही रहेंगे.”

जय भीम-जय बिरसा-जय मंडल

सामाजिक न्याय ज़िंदाबाद

साभारः दिलीप यादव का फेसबुक वॉल 

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