जग्गा जासूस: फिल्म समीक्षा

Jagga jasoos

5 साल के लंबे इंतजार के बाद निर्देशक अनुराग बसु और रणबीर कपूर एक बार फिर फिल्म ‘बर्फी’ वाला मैजिक दर्शकों को फिल्म ‘जग्गा जासूस’ के रूप में चखाने को तैयार हैं. आइए जानते हैं जग्गा के जासूस बनने की कहानी… ‘जग्गा जासूस’ कहानी है जग्गा (रणबीर कपूर) की, जो बादल बागची का गोद लिया हुआ बेटा है और अचानक बादल एक दिन जग्गा को छोड़ कर चला जाता है, ये कहकर की वो जल्दी वापस लौटेगा पर वो नहीं लौटता. जग्गा तेज तर्रार है, लेकिन बोलने में हकलाता है. उसके पिता ने उसे समझाया था कि अगर वो गाकर अपनी बात बोलेगा तो नहीं हकलाएगा और यही से जग्गा को परेशानी का हल मिलता है. साथ ही नींव पड़ती है एक म्यूजिकल फिल्म ‘जग्गा जासूस’ की. वक्त गुजरता है जग्गा बड़ा हो जाता है और बगची वापस नहीं लौटता, इधर जग्गा को हर बात की गहरायी में जाने की आदत पड़ जाती है और इन्हीं सब के चलते वो अपने स्कूल में एक हत्या का केस सुलझता है. अब उसे अपने खोए हुए पिता का पता लगाना है और वह राज जानना है जिसकी वजह से उसके पिता गायब हुए.

‘जग्गा जासूस’ में अहम भूमिकाएं रणबीर कपूर, कैटरीना कैफ, सौरभ शुक्ला और सास्वत चटर्जी ने निभाई हैं. फिल्म का निर्देशन अनुराग बासु ने किया है और वो ही इसके लेखक भी हैं. फिल्म का संगीत प्रीतम ने दिया है और सिनेमेटोग्राफी रवि बर्मन की है.

यह एक म्यूजिकल फिल्म है यानी डायलॉग्ज भी गाकर ही बोले गए हैं और साथ में म्यूजिक भी है. ये फिल्म हिंदी सिनेमा में अपनी तरह की पहली फिल्म है और इसे एक एक्सपेरिमेंट कहा जा सकता है. हालांकि, हॉलीवुड में इस तरह की कई फिल्में बनी हैं. हिंदी सिनेमा की बात करें तो इससे पहले 1970 में चेतन आनंद की एक फिल्म ‘हीर रांझा’ आई थी, जिसे म्यूजिकल तो नहीं कहा जा सकता, पर इस फिल्म के सारे डायलॉग्ज शायरी में थे.

सबसे पहले तारीफ़ करना चाहूंगे निर्देशक अनुराग बासु की, जिन्होंने हिंदी सिनेमा की रीवायत तोड़ने की हिम्मत दिखाई और साथ है फिल्म का बेहतरीन निर्देशन किया है. इस तरह की फिल्म में अमूमन कड़ी मेहनत लगती है और यहां डायरेक्टर, म्यूजिक डायरेक्टर और लिरिक्स राइटर का बेहतरीन तालमेल बहुत जरूरी है, और यहां अनुराग, प्रीतम और लिरिक्स राइटर अमिताभ भट्टाचार्य ने ये काम को खूबसूरती से निभाया है. इस फिल्म की दूसरी बड़ी खूबी है इसकी लोकेशन्स और रवि बर्मन की सिनेमेटोग्राफी, एक तरफ जहां ये फिल्म खूबसूरत लगती है, वही इसके दृश्यों में एक कॉमिक्स का फील भी महसूस होता है. फिल्म की तीसरी खूबी है रणबीर कपूर जिन्होंने वजनदार परफॉर्मेंस दी है. उनके चेहरे पर मासूमियत भी नजर आती है और आंखों में जिज्ञासा भी. साथ ही उनका हकलाना क्लीशे नहीं लगता और जब भी वो हकलाते हैं आपको महसूस होता है कि काश आप उनकी बात पूरी कर दें. कैटरीना फिल्म में ठीक हैं. सारस्वत चटर्जी जो फिल्म में रणबीर के पिता बने हैं, उन्होंने भी उम्दा अभिनय का परिचय दिया है और कई जगह वो आपकी आंखें नम कर जायेंगे. ये फिल्म तकनीकी तौर पर भी काफी अच्छी है पर देखना ये है कि क्या हिंदी सिनेमा के दर्शक इस प्रयोग का अपना पाएंगे.

इस फिल्म की एक खामी है इसका कहानी कहने का तरीका, जहां कैटरीना बच्चों को जग्गा की कहानी किताबों से पढ़कर सुनती हैं. यहां मुश्किल यह है कि फिल्म का ये हिस्सा बोरिंग लगता है साथ ही इसे जो नाटकीय रूप दिया है यानी स्टेज पर नाटक के रूप में दिखाया गया है, वह कहानी के इमोशन से आपको भटकाता है. इस फिल्म के म्यूजिकल होने से जो एक खामी लगी वह यह है कि गाने में कई बार कही गई कहानी के शब्द संगीत और कोरस में कहीं खो जाते हैं और कुछ पहलू आप के कानो तक साफ नहीं पहुंच पाते. एक और बात ये फिल्म एक कॉमिक्स की तरह है इसलिए लॉजिक काम नहीं करेंगे. अगर लॉजिक लगाएंगे तो ये फिल्म की सबसे बड़ी खामी हो जाएगी. इसलिए इस फिल्म को कॉमिक्स की तरह देखें. यही वजह है कि फिल्म में जग्गा की कहानी कैटरीना जग्गा के किस्से नुमा किताब से पढ़ कर बताती हैं. फिल्म को हमारी तरफ से 3.5 स्टार्स.

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