अब सीएम योगी का ठाकुरवाद नजर क्यों नहीं आता

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उत्तर प्रदेश की सत्ता में जब भी समाजवादी पार्टी आती है तो उस पर यादववाद का आरोप लगने लगता है. ऐसे ही बसपा की सरकार में कुमारी मायावती के मुख्यमंत्री बनते ही उनपर जाटववाद का आरोप लगता है. मीडिया ढूंढ़-ढूंढ़ कर उन यादव और जाटव अधिकारियों के नाम गिनाती है, जो प्रमुख पदों पर बैठे होते हैं. इन दोनों पार्टियों पर जातिवाद का आरोप लगाया जाता रहता है, लेकिन भाजपा और कांग्रेस की सरकार आते ही ऐसी चर्चा बंद हो जाती है. न तो मीडिया अधिकारियों की जाति की चर्चा करता है न ठाकुरवाद और ब्राह्मणवाद की. लेकिन हकीकत यह है कि भाजपा की सरकार आते ही प्रदेश के सभी प्रमुख पदों पर ठाकुरों और ब्राह्मणों का कब्जा हो जाता है.

यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के एक साल पूरा होने के साथ ही उन पर जातिवाद का आरोप लगने लगा है. कहा जा रहा है कि शासन और प्रशासन में इन दिनों ठाकुरों का वर्चस्व कायम है. योगी सरकार में प्रमुख पदों पर बैठे अफसर इसका सबूत भी हैं.

योगी आदित्यनाथ ने यूपी सरकार के लिए महाधिवक्ता के रूप में राघवेंद्र सिंह को चुना. योगी के महाधिवक्ता भी राजपूत समाज से आते हैं. यूपी के हरदोई के रहने वाले राघवेंद्र सिंह 1980 से इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ में प्रैक्टिस कर रहे हैं. उन्होंने वकालत की शुरुआत 1977 में हरदोई से की थी. इसी तरह उत्तर प्रदेश के थानों में ठाकुरों का कब्जा है. पूर्वांचल के अधिकतर थानों का जिम्मा राजपूतों को सौंपा गया है. एक समय हालत ये थी कि वाराणसी के 24 थानों में 23 पर सवर्ण और उनमें भी ज्यादातर राजपूत काबिज थे. इसी तरह से इलाहाबाद के 44 थानों में से 42 पर सवर्ण कोतवाल और थानाध्यक्ष बनाए गए. इसके अलावा सूबे के ज्यादातर जिलों में डीएम और एसपी राजपूत समाज के नियुक्त किए गए.

अब जरा योगी जी के मंत्रिमंडल में भी झांकते हैं. योगी आदित्यनाथ के मंत्रिमंडल के 44 मंत्रियों में से 7 राजपूत समाज से हैं, जो कि 16 फीसदी है. बीजेपी के 325 विधायकों में से 56 विधायक राजपूत हैं, जो कि 18 फीसदी हैं. जबकि सूबे में राजपूत समाज की आबादी सिर्फ 7 फीसदी के आस-पास है.

योगी आदित्यनाथ भी राजपूत समाज से आते हैं. इसी का नतीजा है कि गोरखपुर में ब्राह्मण और राजपूतों के बीच वर्चस्व की जंग है. राजपूतों का केंद्र मठ बना है तो ब्राह्मण का हाता है. भाजपा के बीच चर्चा तेज है कि सपा को जहां दलितों और पिछड़ों के एकजुट होने का लाभ मिला, तो वहीं ब्राह्मणों और ठाकुरों के बीच वर्चस्व का खामियाजा भुगतना पड़ा.

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