क्या भाजपा का दलित प्रेम खोखला है?

ऩई दिल्ली। रामनाथ कोविंद के रूप में भारत के इतिहास में दूसरी बार एक दलित भारत का राष्ट्रपति बना है. इसके पहले केवल के. आर. नारायणन ही भारत के राष्ट्रपति थे जो कि दलित थे. लेकिन उत्तर भारत से राष्ट्रपति बनने वाले देश के पहले दलित रामनाथ कोविंद ही हैं.

भाजपा के नेताओं द्वारा इसको दलित सम्मान के रूप में देखा जा रहा है. भाजपा के अध्यक्ष अमित शाह हों या उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, सब के सब यह बताने में लगे हुए हैं कि कैसे यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दलितों के प्रति सम्मान और उनके प्रेम का प्रतीक है. यह भी कहा जा रहा है यह प्रधानमंत्री के द्वारा किया गया दलित सशक्तिकरण का अद्भुत नमूना है और इससे उन राजनेताओं और राजनीतिक दलों में खलबली मच गई है जो दलितों के नाम पर अपनी राजनीतिक दुकान चलाते हैं. पर क्या यह सही है कि नरेंद्र मोदी के अधीन भाजपा सरकार बनने के बाद दलितों का सशक्तिकरण हो रहा है? उन्हें उन पदों पर बैठाया जा रहा है जहां वह कभी नहीं पहुंच पाए? क्या उनको उस तरह के पद भी दिए जा रहे हैं जो उनको समाज में प्रभावी बदलाव करने में मदद देंगे?

यह सही है की भाजपा ने कोविंद को राष्ट्रपति बनाकर पहली बार उत्तर भारत के किसी दलित को यह सम्मान दिया है. पर कांग्रेस पार्टी, जो अभी भी इसकी प्रमुख प्रतिद्वंदी है, यह पहले ही कर चुकी है. हालांकि कांग्रेस ने दक्षिण भारत के एक दलित को यह सम्मान दिया था. पर भारत के राष्ट्रपति का पद मूल रूप से रबड़ स्टैम्प का है. यही कारण है कि आजतक कोई भी सशक्त नेता, जिसका बहुत जनाधार हो, कभी राष्ट्रपति बनने की दौड़ में नहीं आया.

इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि आज देश के दो सबसे प्रभावशाली व्यक्ति हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह. नरेंद्र मोदी गुजरात की मोढ घांची जाति से हैं, जो कि उत्तर भारत के तेली जाति के समकक्ष है. यह जाति OBC केटेगरी में आती है. अमित शाह जैन बनिया जाति से आते हैं जो कि सामान्य श्रेणी में आती है. यानी कि भाजपा के दोनों सबसे बड़े व्यक्तियों में से कोई भी दलित नहीं है.

भारत सरकार की सबसे प्रभावी कमेटी होता है कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी. इस कमेटी के सदस्य हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री राजनाथ सिंह, विदेश मंत्री सुषमा स्वराज एवं वित्त मंत्री एवं रक्षा मंत्री अरुण जेटली. जहां राजनाथ सिंह उत्तर प्रदेश के ठाकुर हैं वहीं अरुण जेटली एवं सुषमा स्वराज ब्राह्मण हैं. यानी कि इस समिति में कोई भी दलित समुदाय से नहीं हैं.

किसी भी राज्य में सबसे प्रभावी पद होता है मुख्यमंत्री का. आज भाजपा के नेतृत्व वाले नेशनल डेमोक्रेटिक अलायन्स के कुल 17 मुख्यमंत्री हैं. नार्थ ईस्ट के राज्यों को छोड़कर, जहां के अधिकतर मुख्यमंत्री अनुसूचित जनजाति के हैं, भाजपा या NDA का कोई भी मुख्यमंत्री दलित नहीं है.

पार्टी में अध्यक्ष के बाद सबसे प्रभावशाली पद महासचिव का होता है. वर्तमान में भाजपा के 8 महासचिव है एवं उनमें से कोई भी दलित नहीं है.

2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के टिकट पर कुल 40 दलित सांसद निर्वाचित हुए थे. उनमें से एक भी नरेंद्र मोदी के मंत्री परिषद् में कैबिनेट दर्जे का मंत्री नहीं हैं. उनके मंत्री परिषद् में कुल 24 कैबिनेट स्तर के मंत्री है जिनमें से 2 दलित हैं. ये हैं रामविलास पासवान, जो भाजपा के सहयोगी दल लोक जनशक्ति पार्टी से आते हैं. वहीं भाजपा के एकमात्र दलित कैबिनेट मंत्री थावरचंद गहलोत राज्य सभा के सदस्य है. गहलोत केंद्रीय सामाजिक न्याय व अधिकारिता मंत्री हैं, जो अपेक्षाकृत कम महत्वपूर्ण विभाग माना जाता है.

2011 के जनगणना के मुताबिक, भारत की कुल 16.6 प्रतिशत आबादी दलितों की है. यानी कि करीब 20.14 करोड़ लोग इस श्रेणी के हैं. भाजपा संघटन के विभिन्न पदाधिकारियों एवं पार्टी के द्वारा सरकारी पदों पर बैठे हुए लोगों का आकलन करने पर यह प्रतीत होता है कि या तो दलितों को समुचित प्रतिनिधित्व नहीं दिया गया, और अगर हैं भी तो केवल सांकेतिक हैं. रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति बनाना भी उसी श्रेणी का विस्तार माना जाएगा. ऐसा नहीं है कि अतीत की किसी सरकार ने दलितों के सशक्तिकरण के लिए कोई क्रान्तिकारी कदम उठाया है. कमोवेश भाजपा भी उन्हीं के पदचिन्हों पर चल रही है. फिर भी, अगर इन्हें लगता है कि कोविंद को राष्ट्रपति बनाने से दलित वोट बैंक में सेंध लगाने में सफल हो जाएंगे, तो शायद शासक दल को निराशा ही हाथ लगेगी.

 

(लेखक अशोक उपाध्याय का यह लेख आईचौक इन या इंडिया टुडे ग्रुप हिंदी से साभार लिया गया है. लेख में कोई बदलाव नहीं किया गया है) 

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