उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी जिले के हेमपुर गांव के ग्रांट नंबर-18 में 1969 के मई महीने में एक बच्चे का जन्म होता है. लेकिन उसकी बदनसीबी ऐसी होती है कि उसके जन्म के दो महीने पहले ही उसके पिता गुजर जाते हैं. जन्म के बाद मां की दूसरी शादी हो जाती है और उस बच्चे को उसके दादा-दादी पालते हैं. जब वह अबोध 11 साल का होता है तो उसके दादा चल बसते हैं और 18 साल का होते-होते उसकी दादी भी साथ छोड़ जाती हैं. और वह अठारह साल का नवयुवा अपने जीवन में अकेला रह जाता है. कहानी थोड़ी फिल्मी है, लेकिन सच है.
आप कल्पना करिए कि कोई आम नवयुवक होता तो ऐसे में क्या करता? शायद वह जिंदगी से निराश हो जाता. ज्यादा संभावना थी कि वह गलत संगत में पर जाता. अगर ये न भी होता तो वह इस दुनिया की भीड़ में तो जरूर खो गया होता. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. क्योंकि इन तमाम नाकारात्मक घटनाओं में एक अच्छी घटना यह हुई कि वह बालक बचपन में ही प्रभुदयाल नामक एक अम्बेडकरवादी व्यक्ति के संपर्क में आ गया. असल में उस बच्चे के पिता एक जागरुक व्यक्ति थे और किसानी के साथ-साथ सामाजिक गतिविधियों में भी हिस्सा लेते रहते थे. उनके पिता के घनिष्ट मित्र थे- प्रभुदयाल, जो कासगंज के कट्टर अम्बेडकरवादी बाबूलाल बौद्ध की संगत में थे. चूंकि प्रभुदयाल और उस बालक के पिता अच्छे मित्र थे, सो अम्बेडकरवाद और आंदोलन की बात उन दोनों से होते हुए उस बालक तक भी पहुंचने लगी.
आखिरकार जीवन में तमाम झटके खाने के बावजूद भटकने की बजाय इस युवा ने अम्बेडकरवाद की राह चुनी और उसी में रम गया. आगे चलकर उसने ‘भारतीय बहुजन महासभा’ (BBM) नाम के एक संगठन की नींव रखी. जी हां, हम जो हकीकत बयां कर रहे हैं वह भारतीय बहुजन महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष एडवोकेट सुरेश राव की है, जिन्होंने भारत भर में अम्बेडकरवाद की मशाल को जला रखा है और मान्यवर कांशीराम के सपने को साकार करने में जुटे हैं. 28 नवंबर 2016 को इस संगठन के पांच साल पूरे हो रहे हैं. इस मौके पर जब ‘दलित दस्तक’ ने एड. राव के संघर्ष के बारे में जानने की कोशिश की तो उनके सामाजिक और आंदोलन के जीवन के साथ-साथ उनके जीवन का जो व्यक्तिगत पक्ष निकल कर सामने आया, उसने एक बार झकझोर कर रख दिया. उनका जीवन कईयों के लिए एक प्रेरणा स्रोत हो सकता है, इसलिए उनके व्यक्तिगत जीवन का जिक्र करना भी जरूरी था.
राव कहते हैं, “प्रभुदयाल मेरे ताऊ जैसे थे. पिताजी के गुजर जाने के बाद उनका भी पारिवारिक जीवन से मोहभंग हो गया और वह अकेले ही रहे. जब मैं 10-12 साल का था तभी से उनके साथ सभा-सम्मेलनों में जाने लगा. वो अनपढ़ थे, लेकिन मिशन को लेकर समर्पित थे. उन्हें बहुजन आंदोलन और महापुरुषों के बारे में जानने का बहुत शौक था. वह किताबें खरीद कर लातें और हमें पैसे देते कि पढ़कर सुनाओ. उन्होंने अपनी जमीनें बेंच दी और बहुजन आंदोलन की किताबें खरीदकर लोगों में बांटने लगे. उनका यह समर्पण देखकर मेरे जीवन में काफी प्रभाव पड़ा. मैंने सोचा कि जब वो अनपढ़ होकर इतना सब कर सकते हैं तो मैं क्यों नहीं?”
राव बताते हैं, “मैंने लखीमपुर से ग्रेजुएशन किया. 1993 में लखनऊ से वकालत की पढ़ाई पूरी की. मैंने बी.एड भी किया और सोशल वर्क में एम.ए भी किया. इस बीच 1990 में ही मैं बामसेफ से जुड़ चुका था. 1990 से लेकर 2005 तक मैं बामसेफ में बहुत सक्रिय रहा. 2005 में बामसेफ में काफी गुटबाजी दिखने लगी. 2006 में जब साहब का परिनिर्वाण हुआ तो एक बार सोचा कि अब क्या करना चाहिए.” राव कहते हैं कि मुझे साहब के सोशल इंजीनियरिंग वाली बात ज्यादा समझ में आती थी. क्योंकि अगर मैं धार्मिक आंदोलन को चुनता तो फिर मुसलमान भाईयों से कैसे जुड़ता? सन् 1963-83 तक साहब ने बंद कमरे में लोगों के बीच कैडर कैंप के जरिए काफी काम किया. मैंने भी वही शुरु किया और ज्योतिबा फुले के परिनिर्वाण दिवस पर 28 नवंबर 2011 को लखनऊ में प्रेस क्लब में ‘भारतीय बहुजन महासभा’ की घोषणा की और यह घोषणा किया कि मान्यवर कांशीराम ने 20 सालों तक जो काम किया, उसी को आगे बढ़ाऊंगा.
राव के काम करने का तरीका भी निराला है. उनकी क्लास (कैडर) पांच घंटे की होती है. वह लोगों को इकट्ठा करते हैं और उन्हें पांच घंटे के लिए एक बंद कमरे में बैठा लेते हैं, फिर शुरू होती है उनकी क्लास और वह ज्यों-ज्यों भारतीय सामाजिक व्यवस्था की परतों को उधेरते जाते हैं, उनके कैडर में मौजूद लोगों के आंखों के सामने से अंधविश्वास का परदा दरकने लगता है. हालांकि एक ही बार में लोग बदल नहीं जाते लेकिन राव सामने वाले के मन में वर्तमान सामाजिक व्यवस्था, बहुजन समाज का इतिहास और मनगढ़ंत धारणाओं और परंपराओं को लेकर कई सवाल छोड़ जाते हैं. फिर दो-तीन मीटिंग के बाद कैडर लेने वाला व्यक्ति अंधविश्वास और मानसिक गुलामी से बाहर निकल चुका होता है.
बहुजन महापुरुषों का जिक्र करते हुए राव कहते हैं कि जितने भी बहुजन नायक हैं, उनके आंदोलन का उद्देश्य मनुवादी व्यवस्था को खतम करके मानवतावादी व्यवस्था की स्थापना करना और उसे बनाए रखना था, क्योंकि इसमें किसी का अहित नहीं था. मैंने भी उसी उद्देश्य को लेकर काम करना शुरु किया. बहुजन समाज की समस्या क्या है?, पूछने पर राव कहते हैं, “असल में मनुवाद की जड़ अंधविश्वास है. यहां लोगों को खुद से ज्यादा भरोसा पत्थर और पेड़ में है. हम इसी उद्देश्य को लेकर काम कर रहे हैं.”
भारतीय इतिहासकारों की साजिशों को लेकर भी राव काफी गुस्से में दिखते हैं. बाबासाहेब का जिक्र करते हुए वह कहते हैं कि बाबासाहेब का कहना था कि भारत का इतिहास ब्राह्मणों और बौद्धों के बीच हुए संघर्ष का इतिहास है. हमारे इतिहासकार लिखते हैं कि ‘गुप्तकाल’ सवर्ण काल था, मेरा सवाल है कि जिस काल में देश की बहुत बड़ी आबादी अभाव और भुखमरी में जी रहे थी, वह सवर्ण काल कैसे हो सकता है? इतिहासकार मौर्य काल को सवर्णिम काल क्यों नहीं कहते जब इस देश में नालंदा और तक्षशिला विश्वविद्यालय थे.
भारतीय बहुजन महासभा (BBM) का उद्देश्य क्या है, पूछने पर राव कहते हैं, “बहुजन समाज के लोगों को अंधविश्वास से बाहर निकालना, उनको उनका इतिहास बताना, बहुजन महापुरुषों के संघर्ष और संघर्ष के इतिहास को बताना है. बहुजन समाज को इकट्ठा करना उद्देश्य है क्योंकि सारे बहुजन 2200 साल पहले बौद्ध थे. बाद में वो विभिन्न जातियों में बंट गए. पांच साल काम करने के बाद बहुजन समाज की स्थिति को वह कैसे आंकते हैं? इस सवाल के जवाब में राव कहते हैं कि बाबासाहेब के तीन मुख्य आंदोलन थे. (1) सामाजिक (2) राजनैतिक और (3) धार्मिक. ज्योतिबा फुले, बाबासाहेब और शाहूजी महाराज ने इस पर काफी काम किया. लेकिन सामाजिक आंदोलन बहुत बड़ा है. देश के 85 फीसदी लोगों को इकट्ठा करना और उन्हें मानसिक गुलामी से बाहर निकालना है. असल में लोग बाबासाहेब को भी मान रहे हैं और हिन्दू धर्म को भी मानते हैं. लोग बीच में हैं; इस वजह से सांस्कृतिक क्रांति नहीं हो पा रही है. वंचितों-बहुजनों की गरीबी का सबसे बड़ा कारण अशिक्षा है. उन्हें यह समझना होगा कि जिस बजट में वे सालों भर तीर्थ करते हैं, उस बजट में वो बच्चों को पढ़ा सकते हैं.
इन पांच सालों में कितनी सफलता मिली, पूछने पर राव कहते है कि लोग अंधविश्वास और परंपराओं से बाहर आ रहे हैं. असल में दिक्कत यह है कि मेहनत व्यक्ति करता है और क्रेडिट धागा और पत्थर ले जाता है. हम इसी से निपटने के लिए काम कर रहे हैं. संगठन कहां-कहां सक्रिय है के जवाब में बताते हैं कि संगठन 15 राज्यों में है और हमारा संगठन फिलहाल उत्तर प्रदेश, दिल्ली, राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, झारखंड, छत्तीसगढ़, जम्मू कश्मीर, उत्तराखंड और मणिपुर में ज्यादा सक्रिय है. आने वाले पांच सालों में वह अपने नेटवर्क को 20-25 राज्यों तक पहुंचाने की बात करते हैं.
बीबीएम राजनैतिक तौर पर बहुजन समाज पार्टी के करीब है लेकिन राव का मानना है कि बहुजन राजनीति में ट्रेंड लोगों की कमी है. इसकी वजह सोशल मूवमेंट का कम होना है. अम्बेडकरवाद और ब्राह्मणवाद के संघर्ष में राव बहुजन आंदोलन में एक और कमी की ओर इशारा करते हैं. कहते हैं, “हमारे यहां सामाजिक, धार्मिक और राजनैतिक आंदोलन चलाने वालों का आपसी तालमेल नहीं है, जबकि हमारे विरोधी पक्ष का अंदरखाने गहरा तालमेल है. मनुवाद और ब्राह्मणवाद से संघर्ष में अम्बेडकरवादियों को बहुत सी बातें सीखने की जरूरत है. मनुवादी आंदोलन में सोशल मूवमेंट श्रेष्ठ है और राजनीतिक मूवमेंट दूसरे नंबर पर है, जबकि हमारे यहां उल्टा है, यह बड़ी दिक्कत है.”
हालांकि राव अपने संगठन के जरिए अपनी पूरी ताकत से ब्राह्मणवादी व्यवस्था का प्रतिकार और बहुजन समाज के लोगों को जगाने में जुटे हैं. इस मुहिम में उनकी पत्नी इंदिरा राव और संगठन के सभी सहयोगी राव की ताकत हैं. राव कहते हैं, “अंतिम उद्देश्य बहुजन समाज को शासक बनाना है. या यूं कहें कि अंतिम उद्देश्य सम्राट अशोक जैसा भारत बनाने का है, क्योंकि वह हमारा स्वर्णिम काल था. सत्ता इसका माध्यम है.”
अशोक दास ‘दलित दस्तक’ के फाउंडर हैं। वह पिछले 15 सालों से पत्रकारिता में हैं। लोकमत, अमर उजाला, भड़ास4मीडिया और देशोन्नति (नागपुर) जैसे प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों से जुड़े रहे हैं। पांच साल (2010-2015) तक राजनीतिक संवाददाता रहने के दौरान उन्होंने विभिन्न मंत्रालयों और भारतीय संसद को कवर किया।
अशोक दास ने बहुजन बुद्धिजीवियों के सहयोग से साल 2012 में ‘दलित दस्तक’ की शुरूआत की। ‘दलित दस्तक’ मासिक पत्रिका, वेबसाइट और यु-ट्यूब चैनल है। इसके अलावा अशोक दास दास पब्लिकेशन के संस्थापक एवं प्रकाशक भी हैं। अमेरिका स्थित विश्वविख्यात हार्वर्ड युनिवर्सिटी में आयोजित हार्वर्ड इंडिया कांफ्रेंस में Caste and Media (15 फरवरी, 2020) विषय पर वक्ता के रूप में शामिल हो चुके हैं। भारत की प्रतिष्ठित आउटलुक मैगजीन ने अशोक दास को अंबेडकर जयंती पर प्रकाशित 50 Dalit, Remaking India की सूची में शामिल किया था। अशोक दास 50 बहुजन नायक, करिश्माई कांशीराम, बहुजन कैलेंडर पुस्तकों के लेखक हैं।
देश के सर्वोच्च मीडिया संस्थान ‘भारतीय जनसंचार संस्थान,, (IIMC) जेएनयू कैंपस दिल्ली’ से पत्रकारिता (2005-06 सत्र) में डिप्लोमा। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में एम.ए हैं।
——————————————————————————————————————————
Ashok Das is the founder of ‘Dalit Dastak’. He is in journalism for last 15 years. He has been associated with reputed media organizations like Lokmat, Amar Ujala, Bhadas4media and Deshonnati As a political correspondent for five years (2010-2015). He covered various ministries and the Indian Parliament.
Ashok Das started ‘Dalit Dastak’ with a group of bahujan intellectual in the year 2012. ‘Dalit Dastak’ is a monthly magazine, website and YouTube channel. Apart from this, Ashok Das is also the founder and publisher of ‘Das Publication’. He has attended the Harvard India Conference held at the world-renowned Harvard University in America as a speaker on the topic of ‘Caste and Media’ (February 15, 2020). India’s prestigious Outlook magazine included Ashok Das in the list of ‘50 Dalit, Remaking India’ published on Ambedkar Jayanti. Ashok Das is the author of 50 Bahujan Nayak, Karishmai Kanshi Ram, Ek mulakat diggajon ke sath and Bahujan Calendar Books.