अम्बेडकर विश्वविद्यालय में दलित छात्र से प्रोफेसर कर रहे हैं भेदभाव

ambedkar University

नई दिल्ली। देश में दलितों के साथ भेदभाव लगातार जारी है. ये भेदभाव स्कूलों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में अनवरत रूप से जारी है. डेढ़ साल पहले रोहित वेमुला की हैदराबाद विश्वविद्यालय में संस्थानिक हत्या के बाद, बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय (बीबीएयू) में आठ दलितों के साथ भेदभाव किया गया और विश्वविद्यालय से निकाल दिया गया था. बहुत विरोध प्रदर्शन और तमाम आयोगों को शिकायत पत्र देने के बाद ही छात्रों की बहाली हुई.

अब दिल्ली स्थित अम्बेडकर विश्वविद्यालय में दलित क्वीर छात्र के साथ पिछले कई महीनों से भेदभाव जारी है. 19 वर्षीय आरोह अकुंथ के विश्वविद्यालय प्रशासन से तकरार के बाद वे कैंपस से बाहर हो सकते हैं. आरोह का कहना है कि वो क्वीर हैं और दलित भी, इस वजह से उन्हें भेदभाव का सामना करना पड़ा. अब आरोह ने सोशल मीडिया के जरिए अपनी बातें लोगों तक पहुंचाई है. हालांकि, यूनिवर्सिटी के एक अधिकारी का कहना है कि अभी यह मामला वीसी अपने स्तर पर देख रहे हैं. आरोह ने वीसी को भी मेमो दिया है.

आरोह ने सोशल मीडिया पर एक ओपन लेटर लिखा है. जिसमें उन्हें उन्होंने अपनी पूरी व्यथा बताई और भेदभाव करने वाले प्रोफेसरों के नाम भी बताए हैं.

सेकंड ईयर के स्टूडेंट आरोह का कहना है कि अगर स्टूडेंट ने 14 पेपर पास किए हों, तो उसे अगले साल के लिए प्रमोट कर दिया जाता है. आरोह ने 12 पेपर पास किए, एक में फेल हुए और तीन के रिजल्ट को चैलेंज किया. सुधार के लिए कोई रिड्रेसल सिस्टम नहीं है. इसलिए डीन से मिलने के बाद उन्होंने मुझे मामला सॉल्व होने तक थर्ड ईयर में बैठने की इजाजत दी.

Protest

आरोह का कहना है, जब मैंने अपना असाइनमेंट जमा किया तो मेरी कोर्स कोऑर्डिनेटर ने इसलिए लेने से मना कर दिया क्योंकि वो हाथ से लिखा है और मैं फेल हो गया. उन्होंने ‘दया’ का हवाला देते हुए मेरा वाइवा लिया लेकिन वो असाइनमेंट से आधे नंबर का होता है. कोऑर्डिनेटर ने ईमेल के जरिए कई बार मेरी क्वीर आइडेंटिटी पर सवाल और कमेंट भी किए, जबकि उन्हें पता है कि मैं कैंपस में होमोफोबिक और जातिवादी लोगों का सामना करने के लिए थेरेपी भी ले रहा हूं.

अंडरग्रैजुएट स्टडीज स्कूल के डीन डॉ़ तनुजा कोठियाल ने जांच के लिए चार मेंबर की इंटरनल कमिटी बनाई, जिसमें सभी टीचर्स थे, स्टूडेंट्स की ओर से कोई नहीं था. एक महीने के बाद केस स्टूडेंट्स-फैकल्टी कमिटी में भेजा गया, जहां इसे पर्सनल मैटर बताते हुए मदद से इनकार कर दिया गया. यूजीसी के हिसाब से शिकायतों पर कमिटी को एक हफ्ते से एक महीने के अंदर रिजल्ट देना होता है मगर इस केस में उल्टा आरोह को फैकल्टी के खिलाफ जाने के लिए धमकाया जा रहा है.

उनका यह भी कहना है कि कैंपस में दलित या क्वीर होने की वजह से भेदभाव होता है, मगर इस पर टीचर्स चुप रहते हैं. यूनिवर्सिटी में ना ही इक्वल ऑपर्चुनिटी सेल और ना ही एससी/एसटी सेल है. जेंडर सेंसेटाइजेशन कमिटी अगेंस्ट सेक्सुअल हैरसमेंट (GSCASH) में क्वीर कम्यूनिटी का रिप्रेजेंटेशन नहीं है. स्टूडेंट्स इन सेल की डिमांड और इनमें स्टूडेंट्स के प्रतिनिधित्व के लिए आज प्रोटेस्ट करेंगे.

संपादित-रमेश कुमार

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