नई दिल्ली। झारखंड के आंदोलन में रामदयाल मुंडा का नाम उन चुनिंदा लोगों में है, जिनकी वजह से इस प्रदेश की देश भर में एक बौद्धिक पहचान भी बन सकी. आ.डी मुंडा के नाम से दुनिया भर में मशहूर रामदयाल मुंडा शिक्षाविद् के साथ साथ एक लेखक, कलाकार और राजनीतिज्ञ रहे. आदिवासी अधिकारों के लिए झारखंड, बिहार और दिल्ली से लेकर संयुक्त राष्ट्र संघ (यूएनओ) जैसे अंतरराष्ट्रीय मंचों तक से उन्होंने मजबूत आवाज उठायी.
उन्हीं रामदयाल मुंडा को लेकर आदिवासी मामलों पर डाक्यूमेंटरी और शार्ट फिल्में बनाने वाले मेघनाथ और बिजू टोपे ने एक डाक्यूमेंटरी फिल्म बनाई है. 70 मिनट की इस फिल्म का नाम है ‘नाची से बांची’. दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में 10 अगस्त को इस फिल्म की स्क्रीनिंग हुई. इसमें मुंडा को चाहने वालों के अलावा कला क्षेत्र के कई लोगों ने शिरकत की.
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इस फिल्म में झारखंड के उनके गांव से लेकर अमेरिका और आस्ट्रेलिया में बिताए जीवन के महत्वपूर्ण लोगों और घटनाओं को भी शामिल किया गया है. इस डाक्यूमेंटरी फिल्म की स्क्रीनिंग के बाद तमाम लोगों ने मेघनाथ और बिजू टोपे के इस प्रयास की सराहना की, और इसे एक जरूरी फिल्म बनाया.
मुंडा ऐसे विरले शख्सियत थे, जिनको संगीत नाटक अकादमी और पद्मश्री सम्मान दोनों मिला. वो राज्यसभा के सदस्य भी रहे थे. मुंडा के बेटे गुंजल मुंडा के नैरेशन के जरिए बनी यह फिल्म नई पीढ़ी में मुंडा के संदेश ‘जे नाची से बांची’ को पहुंचाने में सफल रही है.
डॉ. पूजा राय पेशे से शिक्षिका हैं। स्त्री मुद्दों पर लगातार लेखन के जरिय सक्रिय हैं। उनके द्वारा लिखी गई पुस्तक ‘आधी आबादी का दर्द’ खासी लोकप्रिय हुई थी।